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6.11.09

दिल्ली सरकार हाय हाय.........
दिल्ली सरकार हाय-हाय..... शिला दिक्सित मुर्दाबाद, डीटीसी बसों का किराया कम करो, या दिहाडी मजदूरों की मजदूरी बढाओ....... ऐसा कुछ भी देखने सुनने को नही मिला दिल्ली में। बड़ी ही निरश जगह लगी दिल्ली इन सब मामलों में। यहाँ की मीडिया भी सरकार के खिलाफ जाने को तैयार नही। लोगों की परेशानियों को तो लिख दिए लेकिन सरकार से इसका उपाय नही जाने की वो गरीब लोग कहा जायेंगे जिन्हें दिहाडी पैर १०० रुपये मिलते हैं, वे लोग कहा जायेंगे जिन्हें ३००० से ५००० हजार रुपये महिना मिलते हैं। सरकार ने ये कहके किराया तो बढ़ा दिया की डीटीसी घाटे में है, लेकिन उन तमाम लोगों का क्या होगा जो इतनी कम पगार पाते हैं। गरीबों के हित में ये फ़ैसला नही लगता। ऐसा कदम किसी और राज्य में वह की सरकार उठातीतो वह की जनता आन्दोलन करने लगती। जिन्दा बाद मुर्दाबाद के नारे लगते, मुख्यमंत्री से इस्तीफे की मांग की जाती। लेकिन यहाँ पैर ऐसा कुछ नही हुआ, बड़ी ताज्जुब हुयी मुझे। देश की राजधानी दिल्ली .......... और यहाँ के हालत ऐसे। ये समझ के परे था। है। और रहेगा। डीटीसी का किराया बढाया गया, डेढ़ गुना , दुगना और कईयों के लिए तिगुना भी। इसके पहले महंगाई ने कमर तोड़ राखी है। क्या ऐसे में वो गरीब लोग यहाँ रहने की सोच सकते हैं आगे। शायद नही। क्युकी कोई भी हो यहाँ कमाने आता है, कुछ पैसा बचाने आता है । ऐसे हालत में तो उसके जीने के लिए भी ये पैसा काफ़ी कम है। सरकारी नौकरी वालों के ख़िलाफ़ नही कहता लेकिन फ़िर भी वो यहाँ जीने की सोच सकते हैं , क्युकी छठा वेतन आयोग लागू होने से उनकी सेलरी लगभग दुगनी हो गई है, लेकिन प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले लोग कहा जायेंगे। ऐसे में सारकार को चाहिए की इस महंगाई के दौर में सबसे पहले कोई ऐसा कानून बनाये जिसके जरिये ३००० हजार से ५००० हजार की पगार पाने वाले मजदूरो की मजदूरी ७००० से १०००० हजार अनिवार्य कर देनी चाहिए ताकि वे लोग भी ठीकठाक जिन्दगी जी सके। विश्व के आठवें नम्बर के सबसे महंगे शहर में सरकार को ये अनिवार्य कर देनी चाहिए की यहाँ की छोटी से छोटी कंपनी को भी या दूकानदार को किसी भी मजदुर या अन्य लोगों को कम से कम ७००० हजार रुपये देना अनिवार्य है। इसे कानून बना देना चाहिए दिल्ली एनसीआर में। लेकिन सरकार ये भी नही कर सकती। सरकार गरीबी नही बल्कि गरीब को ही दिल्ली से हटाना चाहती है। यहाँ का विपक्ष भी इस मुद्दे को उठाना नही चाहता, ऐसे में ये कहना ठीक होगा की ' चोर चोर मौसेरे भाई' । क्या डीटीसी बसों का बढ़ा किराया उचित है ? शायद नही। यहाँ तक मैं इस मामले मीडिया को भी दोषी मानता हु, क्युकी मीडिया ने इस मामले को उतना ज्यादा नही उठाया जितना की एक बच्चे के खायी में गिरने पैर तूल देता है, sansdon ke मामले में तूल देता है, या किसी अन्य मामले में देता है। वैसा ही अगर इस मामले में करता तो शायद किराया बढ़ता ही नही.

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