मैं न तो महान् ज्योतिषाचार्य हूँ न महान् वास्तुशास्त्री हूँ । इस स्वनिर्मित `महान´ शब्द से तो मैं सदैव कौसों दूर रहना चाहता हूँ । मैं इतना अवश्य जानता हूँ कि संगीत संसार का जिंदा जादू था, है और रहेगा। सरगम के सांचों मेंढला हुआ शब्द चरमोत्कर्ष पाकर शब्द-ब्रह्म बन जाता है। संगीत की सिद्ध स्वर-लहरियाँ गायक को ही नहीं, श्रोताओंको भी अमर करने की सामथ्र्य रखती हैं, यथा-श्रीकृष्ण व गोपियाँ ।
में आप सभी का में स्वागत करता हुआ मेरे इस ब्लॉग पर जहाँ में मेरी स्वरचित पुस्तक "शिल्प कला पर सो कुंडलिया " से ली गई कुछ बहतरीन कुंडलिया जो पूर्ण तह : भारतीय वास्तु पर आधारित हें |
आशा करता हुआ मेरा ये प्रयास आप के जीवन को और अच्चा बनाये गा |
अमृत 'वाणी'
ब्लॉग पर जाने यहाँ क्लिक करें ।
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