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7.2.10

एक बात

तुम्हारे साथ
मै अकेला नही होता
मेरा साथ होता
मेरा अकेलापन
जिसको बिसरा कर
तुम आग्रह पर आग्रह किए जाती हो
और मै सापेक्ष अभिनय
इस नाट्यशाला मे ऐसा नही
मुझे हमेशा द्वन्द होता हो
कभी कभी मै लुफ्त भी ले रहा होता हू
बिना तुम्हे बताए
तुम्हारी अपेक्षाओं के अनुसार मै हर
चीज उधार की ले आया हूं
ये जो हंसी है
यह भी किस्तो पर है
जिसकी
ईएमआई मुझे देनी पडेगी
अवसाद के आलाप के साथ
सच कहूँ तो
मुझे कभी कभी जलन भी होती है
तुमसे
जब तुम हंसती हो बिना वजह
मै कोई नीरस जीवन के एकाकीपन
को मिटाने वाला
साधन तो नही बन गया हू
तुम्हारे जीवन मे
ऐसा भी नही है
कि मेरा कोई विकल्प न हो तुम्हारे पास
फिर कोई अकारण बिना किसी राग के
कैसे साथ-साथ घंटो बिता सकते है
बौद्धिक चवर्णा करते हुए
जिसका कोई अर्थ भी नही है
मै कभी कभी सोचता हूँ
कंही ऐसा तो नही
कि
तुम्हारा अपने वर्ग से बहिष्कार किया गया हो
सपने बुनने वाली विलासित पीढी से
आउटडेटड होकर तुम दार्शनिक बन गई हो
कुछ भी हो
मैने एक बात का अनुभव किया है
नदी और स्त्री तट से विद्रोह करके
एक अंजानी प्यास मे आगे बढती जाती है
कही तुम विद्रोहणी तो नही
अन्यथा मत लेना
इस आभासी दूनिया की इस
आभासी यात्रा मे
न तो तुम मेरी सहयात्री हो
न ही सम्बन्धी
न मित्र
न परिचित
फिर ऐसा क्या है कि
अक्सर हम असहमत होते हुए भी
सहमत होते है
और सच कहूँ
तुम्हारे सत्संग से
मै तो
निरुद्देश्य जीवन जीने का अभ्यस्त सा हो गया हू
क्योंकि तुम्हारे पास
प्रेमी-प्रेमिका वाली लम्बी चौडी योजनाए नही है
न ही तुम्हारी दिलचस्पी
मेरी आर्थिक प्रगति मे है
तुमने आज तक नही पूछा कि
मुझे क्या बनना है
जीवन मे
इस तरह से तो तुम
इस निजता के ध्यान मे सहयोग ही कर रही हो
सच-सच बताना
क्या तुम सच मे जी सकती हो
बिना सम्बोधन के
बिना बंधन के
सोच समझ के जवाब देना
अभी कोई जल्दी नही है
वैसे मुझे पता है तुम्हारा जवाब
तुम जोर से हंसोगी
और कहोगी
तुम तो पागल हो
चलो कही कॉफी पीते है चल के
अब मै क्या कहूँ ...।

डॉ.अजीत
www.shesh-fir.blogspot.com

1 comment:

Amitraghat said...

",इस दुनिया में खुद को समझना ही बहुत मुश्किल होता है तो दूसरों की बात ही क्या करें केवल अंदाज़े ही लगा सकते हैं, बहुत सुन्दर रचना.....।"
प्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com