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5.3.11

मजबूरी का नाम महात्मा गांधी है या फिर मनमोहन?

रविकुमार बाबुल
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में, विश्व के सबसे मजबूर शख्स की जिस तस्वीर को दुनियां ने देखा, भारतीय राजनीतिक इतिहास में वह शख्स ही सबसे बड़ा सवाल बन, बाजार को लुभाता भी रहा और भ्रष्टाचार, महंगाई के ढेर पर बैठ विकास की मुरली बजा स्वांत सुखाय उठाता भी रहा है। क्या कहियेगा, तबले की थाप-से इस सुर-ताल को, जनता जिसे महंगाई और भ्रष्टाचार के थाप के रुप में रह-रह कर सहती भी रही है और महसूसती भी रही। ऐसे में ही मिस्टर क्लीन का तमंगा लिये मनमोहन सिंह विकास के बहाने रिद्म से ही बाहर हो चले सुर को सहेजने का प्रयास करते रहे हैं, या यह कहें कि जिद् किये बैठे रहे? जिद् भी ऐसी कि जैसे महंगाई ने कम न होने की कर रखी है या थॉमस ने कुर्सी न छोडऩे की? यह अलग बात है अपनी जिद् को उन्होंने कांग्रेस का हाथ गरीबों के साथ कहते हुये मात्र चीख-चिल्लाकर ही साथ रहने वाली या साथ देने वाली पार्टी को, जिल्लत और जलालत झेल रहे मुल्क के अवाम में वर्तमान हश्र का जिम्मेदार होने का अक्स बनने ही नहीं दिया, गठबंधन सरकार की मजबूरी जतलाकर, दूसरी तरफ कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार चलती रहेगी की इच्छाशक्ति यह बतलाकर जता दी कि देश में हर छ: माह में चुनाव नहीं करवाये जा सकते है? किसी मंजे हुये संगीतज्ञ की तरह एक ऐसा सुर-ताल छेड़ दिया जो गठबंधन का बंधन खुुलने से डर रहे राजनीतिक रसिकों को राहत भी देगा, और भ्रष्टाचार के बहाने मुट्ठी भर राजनीतिज्ञों के राजनीतिक बनवास की आशंका भी दूर करेगा? जी, तय है.....।
जी... जनाब, गलियों-चौबारों में अक्सर कहा जाने वाला जुमला भी इन दिनों मिस्टर क्लीन की छवि लिये मनमोहन सिंह का सा बदल चला है या कहें कि एक नये रुप में जुबान पर चढ़ चला है तो गलत नहीं होगा? अगर भ्रष्टाचार और महंगाई के जिस बेलगाम रथ पर मुल्क की सत्तर फीसदी वह आबादी भी सवार है, जो ब-मुश्किल रोज नौ से बीस रूपये ही अपने जिस्म को मशीन बनाए जुटा पाती है और जिसके सारथी तमाम घपले-घोटालों के बीच मनमोहन सिंह खुद को बनाये रखे हुये है, के बीच अगर जुमले को मुल्क के बच्चे क्या बूढ़े भी, मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी कह कर जिस गांधी के अकाट्य अहिंसा के संदेश या व्यक्तित्व को दरकिनार कर, जुमले में महात्मा गांधी की जगह मनमोहन कहने लगे तब आज के दौर में शर्मसार किसे होना चाहिये? ब्रितानिया हुकूमत को मजबूर करने वाले गांधी को या फिर गांधी सा सत्य और अहिंसा के जज्बे का ढोंग रच, भ्रष्टाचार और महंगाई के सहारे ही गांधी के परछाई में खुद को छिपाकर खुद के मिस्टर क्लीन होने का भरोसा देने वाले और भ्रष्टाचार तथा महंगाई को गठबंधन की राजनीतिक मजबूरी जतलाकर इसे पल्लवित होते रहने की खुली छूट भी दिये रखने का दुस्साहस जुटाने वाले मनमोहन सिंह को? यह तय करना आज के दौर में मुश्किल रह ही कहां गया है?
जी... जनाब कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक मुल्क एक है, लेकिन इसके ही आसरे यह उम्मीद लगा बैठना कि दिल्ली से कश्मीर पहुंचते ही बयान भी एक ही रहेगा या उसका मतलब एक ही रहेगा तो गलत होगा? कैंसर की भीनी खुशबू ने ऐसा जादू बिखेरा कि मनमोहन सिंह ने वहां गठबंधन के धर्म की मजबूरी को दर किनार कर खुद को मजबूत बतलाने से भी गुरेज नहीं किया, और थॉमस के बहाने ही सही उन्होंने देश में मचे लूट-खसोट के लिये जिम्मेदारों में अपना अक्स तलाशने की भले ही ईमानदार कोशिश की हो, लेकिन अंजुरी भर यही ईमानदारी इसे स्वीकारने में भी खर्चनी होगी, तब शायद इस मुल्क के अवाम को इसका जवाब मिल सके कि जिस भ्रष्टाचार और महंगाई के मुहाने पर बैठकर मजबूत सरकार चलाने का दम भरा जा रहा है, उसे दबाने या छिपाने के लिये पामोलीन घोटाले में आरोपित थॉमस की केन्द्रीय सतर्कता आयोग प्रमुख के रूप में (नियुक्ति की बैठक में ही सुषमा स्वराज के एतराज को दरकिनार किया जाना और थॉमस की ताजपोशी कार्यक्रम में भाजपा का सामूहिक बहिष्कार के बाद भी) नियुक्ति इसलिये की गयी कि सी.बी.आई पर सरकारी नियंत्रण के आरोप पर निष्पक्षता का चाबुक चलाकर सार्वजनिक खण्डन भी किया जा सके और सी.बी.सी. के बहाने सी.बी.आई. को मनमुआफिक नियंंत्रित भी किया जा सके, ताकि तमाम घपले-घोटालों पर लीपापोती भी होती रहे और सरकार मजबूती के साथ चलती भी रहे, वजहें ही सवाल खड़ी करती हैं और जवाब भी चाहती है, ऐसे में ही मजबूरी का नाम महात्मा गांधी है या फिर मनमोहन पांच राज्यों के चुनावों के बीच ही मिस्टर क्लीन को यह साफ (क्लीन) तो करना ही होगा?

4 comments:

Shalini kaushik said...

अब ये तो विपक्ष की भी मज्बोरी कही जाएगी कि वह कोई मजबूत कदम इस दिशा में उठाकर प्रधानमंत्री जी को मजबूरी से मुक्त नहीं कर पा रहा है.
http://shalinikaushik2.blogspot.com

Hochzeitsfotograf said...

I think compulsion is the name of Manmohan. Truly happy to post my comment on your blog. I'm glad that you shared this helpful info with us. Thanks.

babul said...

आदरणीय शालिनी कौशिक जी,

यथायोग्य अभिवादन् ।

जी... आपने सही फरमाया। मैं सहमत हूं। सच तो यह है कि फिलवक्त मजबूरी में दोनों ही हैं, विपक्ष की स्थिति भी ्मिस्टर क्लीन की मजबूरी से अलहदा नहीं है? जब दहेज लेना-देना, रिश्वत लेना-देना अपराध हो, ऐसे में विपक्ष मजबूती के साथ मजबूर सत्ता पक्ष को बेचारगी भरी नजरों से सिर्फ निहारता भर हो, तो विपक्ष की अनकही मजबूरी भी समझी जा सकती है?

धन्यवाद।

रविकुमार बाबुल

babul said...

Hochzeitsfotograf ji,

यथायोग्य अभिवादन् ।

जी... आपके विचारों से अवगत हुआ। आपने कहा कि आपके कमेन्ट को मैनें अपने ब्लॉग पर सांझा किया है? जी... जनाब मैने आपके कमेन्ट को जब पढा ही नहीं है तो सांझा करने की बात कहां से आती है? लेकिन इतना महसूस कर सकता हूं कि आपने जो भी लिखा होगा बहुत ही बेहतरीन लिखा होगा, अगर आपका लिखा हुआ पढने को मिल जाये तो मैं आपका आभारी रहूंगा।

हां, अपने दायित्वों के चलते ग्वालियर, इन्दौर, झांसी, आगरा, धौलपुर, रायपुर एवं दिल्ली से प्रकाशित बीपीएन टाइम्स तथा राष्ट्रीय पत्रिका बीपीएन टुडे के पाठकों से सतत् सम्पर्क में रहने के कारण मैैनें उनकी भावनाओं एवं पीएम मनमोहन सिंह की स्वीकारोक्ति के बाद अपने विचारों को शब्दों में अभिव्यक्त किया था, सो आपके विचार भी मुल्क के अवाम से अलहदा नहीं हैं, जानकर अच्छा लगा।

रविकुमार सिंह