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3.3.11

कभी तो खुश हो जाएं

कई तरह के टेस्ट कराने के बाद जब रिपोर्ट निल आती है तब भी हम यह खुशी नहीं मनाते कि कोई बीमारी नहीं निकली। हम तो सिर्फ इसलिए दुखी हो जाते हैं कि टेस्ट और एमआरआई के नाम पर हजारों रु खर्च हो गए। दरअसल हमने दुखों का इतना मोटा कम्बल ओढ़ रखा है कि छोटी-छोटी खुशियो की गरमाहट महसूस ही नहीं होती। हम तो किसी परिचित की मिजाजपुर्सी के लिए अस्पताल भी जाते हंै तो सीधे उसी पलंग से ताल्लुक रखते हैं। आसपास के बेड पर दर्द से कराह रहे मरीज का हालचाल जानने, मुस्कुराते हुए उसे दिलासा देने का ख्याल भी नहीं आता। किसी दिन जब हमें खुद मरीज के रूप में अस्पताल में दाखिल होना पडे तब जरूर मन ही मन चाहते हंै कि वार्ड में जितने भी लोग अन्य मरीजों के पास आए वो सब हमसे भी हंस-बोल कर जाएं।
अस्पताल से लौट रहे एक मित्र का चेहरा बड़ा उतरा-उतरा सा दिखा तो सहज रूप से पूछ लिया कोई चिंता की बात तो नहीं?
उनका जवाब था-अभी क्या बताऊ। डॉक्टर ने ढेर सारी जांच कराने का पर्चा थमा दिया है। कल सुबह जाना है लेब पर, सारे टेस्ट होंगे, एमआरआई भी कराना है। रिपोर्ट मिलेगी फिर डॉक्टर को दिखाउंगा तब पता चलेगा क्या बीमारी है।
सारे टेस्ट की जानकारी देने के साथ ही उनकी चिंता यह भी थी कि यदि कोई गंभीर बीमारी निकल आई तो? इस तो के साथ उनकी चिंता परिवार, बच्चो आदि को लेकर भी थी। मंैने उन्हें ढांढस बंधाया कि ईश्वर पर भरोसा रखिए, सब ठीक ही होगा।
दो दिन बाद मंैने उन्हें टेस्ट रिपोर्ट का परिणाम जानने के साथ ही हालचाल पूछने के लिए मोबाइल लगाया। उनकी आवाज से आभास हो रहा था कि सब कुछ नॉर्मल ही होगा। बातचीत में उनकी पीड़ा कुछ और ही थी कि 5-7 हजार रु बेमतलब के खर्च हो गए, कोई बीमारी तो निकली ही नहीं। वर्षों से उनके परिवार से जुड़े उन डॉक्टर के प्रति शंका का भाव यह था कि ये सारे डॉक्टर लोग अपने कमीशन के चक्कर में बेवजह फालतू के महंगे टेस्ट कराते रहते हंै।
मानव स्वभाव भी क्या है जब तक टेस्ट रिपोर्ट नही आई थी तब तक उस डॉक्टर के प्रति खूब भरोसा था साथ ही अपने परिवार, बच्चों के भविष्य को लेकर भी चिंता का भाव था। जब रिपोर्ट नार्मल निकली तो वही डॉक्टर कमीशंनखोर नजर आने लगा साथ ही इस बात का भी अफसोस कि कोई बीमारी तो निकली ही नही, यानी हमारा पैसा
खर्च हुआ है तो कोई तो बीमारी रिपोर्ट में आना ही चाहिए थी।
हम जिस मेहनत से पैसा कमाते हंै तो नहीं चाहते कि एक पैसा भी व्यर्थ खर्च हो, इसी मानसिकता के कारण टेस्ट रिपोर्ट नॉर्मल आने पर हमें इस बात की खुशी नही होती कि हम पूर्णत; स्वस्थ तो हैं। हम तो प्रतिमाह हेल्थ इंश्योरेंस की किस्ते जमा कराते वक्त भी यह दुख पाले रहते हंै कि इतने साल में इंश्योरेंस का लाभ एक बार भी नहीं लिया। हमें उन दोस्तों से जलन होती है जो डॉक्टर और बीमा एजेंट से साठगांठ के किस्से बढ़ा-चढ़ाकर बताते रहते हैं। साथ ही फर्जी तरीके से बीमा क्लेम की राशि लेने के दावे भरते रहते हैं।
हमारा स्वभाव भी क्या है भगवान से तो प्रार्थना स्वस्थ रखने की करते हैं लेकिन जब जांच रिपोर्ट नॉर्मल निकलती है तो मन ही मन दुखी भी होते है कि हाय हमें कुछ क्यों नहीं हुआ। दरअसल यह सारा व्यवहार हमें अपने आसपास से ही देखने-सीखने को मिलता है। हमारे किसी अपने को सर्दी-जुकाम-बुखार की जानकारी मिले तो हम फोन पर ही हालचाल पूछ लेते हंै और उसकी बीमारी को गंभीरता से नहीं लेते। और यदि उन्ही में से किसी मित्र को हार्टअटैक या अन्य कोई गम्भीर बीमारी होने की सूचना मिले तो पहली फुरसत में अस्पताल जाकर अपना चेहरा दिखाने के साथ ही मिजाजपुर्सी का मौका नहीं गवाना चाहते। हम तो मान कर ही चलते हैं कि अगला आदमी पता नही अस्पताल से अब वापस घर आए या नहीं, इसलिए जितनी जल्दी हो अपने सामाजिक होने की जिम्मेदारी निभा दी जाए।
हम खुशी के अवसर खोते जा रहे हंै इसलिए स्वस्थ होने का सर्टिफिकेट मिलने पर भी हम खुश नहीं होते। हमारे परिजनों, मित्रों को तो टेस्ट रिपोर्ट नॉर्मल होने की खुशी होती है पर हम उस खुशी को महसूस नहीं कर पाते क्यों कि हमें तो अपना पैसा पानी में बहाने का गम सता रहा होता है। हमें तो अपनी बीमारी में भी तब खुशी होती है जब हम से ज्यादा गंभीर बीमारी के उपचार के लिए हमारा कोई पुराना दुश्मन समीप के पलंग पर कराहता नजर आता है। तब हमें अपनी बीमारी को बडाचडा कर बताना अच्छा लगता है। यही नहीं तब हम अपने बेड पर पड़े-पड़े इसलिए कसमसाते रहते है कि पड़ौस वाले मरीज का हालचाल पूछने ज्यादा लोग क्यों आ रहे हंै? हम अस्पताल में दाखिल उस मरीज से भी कुछ सीखना नहीं चाहते जो अपनी बीमारी भूल कर वार्ड में एक से दूसरे बेड पर जाकर मरीजो के हालचाल पूछने के साथ ही उनके तीमारदारों के आने तक उनकी छोटीमोटी परेशानी अपने स्तर पर दूर करने के साथ ही डॉक्टरों-नर्सों को सहायता के लिए बुला कर ले आता है।
हम तो इतने स्वार्थी होते जा रहे हंै कि अस्पताल मे किसी परिचित की तबीयत पूछने जाना भी पड़े तो वार्ड में सीधे उस पलंग से ही ताल्लुक रखते हैं। आसपास के बेड पर उपचार के लिए दाखिल मरीजों की बीमारी जानने, उन्हें दिलासा देने जैसी औपचारिकता भी नहीं दिखा पाते। परिचित मरीज का हाल जानने के लिए तो सभी जाते हंै, कभी अपरिचित मरीज की तरफ एक बार मुस्कुरा कर ही देख लीजिए, उसके चेहरे पर जो खुशी नजर आएगी वह आप को भी सुकून तो देगी ही।

4 comments:

vishwas said...

bilkul shi sir.

vishwas said...

bilkul shi sir.

vishwas said...

bilkul shi.

आशुतोष की कलम said...

ati utttam rachna
manushya ke maya jal bhram ko dikhati hue