लगा गुलाल
गया मलाल
मन में उमड़ा
प्रीत का ज्वार
दोनों मिले
बाहें पसार।
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आया भरतार
लगाया ना रंग ,
प्यासी गौरी
लग गई अंग।
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रंग छोड़ के
अंग लगा ले
हो जाउंगी लाल रे,
मौका और
दस्तूर भी है
तू
बात ना मेरी टाल रे।
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झीने कपड़ों पर
साजन ने मारी
प्रेम भरी पिचकारी ,
सकुचा कर
अपने आप में
सिमट गई सजनी
सारी की सारी।
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17.3.11
होली के रंग निराले
Posted by गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर
Labels: कविता.चुटकी
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2 comments:
होली की हार्दिक शुभकामनायें।
होली है भाई होली है
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