मित्रों,वर्ष १९८४ में भारतीय क्रिकेट के क्षितिज पर अपने पहले तीनों टेस्ट मैचों में लगातार तीन शतक ठोंकता हुआ उदित हुआ एक ऐसा सितारा खिलाडी जिसे पूरी दुनिया की मीडिया ने वंडर बॉय की संज्ञा दी.वह बैटिंग में तो लाजवाब था ही फील्डिंग के क्षेत्र में भी उसका कोई जोड़ा नहीं था.उसके हाथों में जब गेंद जाती तो बल्लेबाज सहम कर अपने पैर वापस क्रीज में खींच लेते.उसकी कलाई थी या घूमनेवाला दरवाजा था?गेंद चाहे कैसी भी हो,कितनी भी चतुराई से फेंकी गयी हो उसकी कलाई घूमती और दूसरे ही क्षण गेंद सीमा रेखा को चूमती हुई नजर आती.
मित्रों,वह लगातार अद्भुत प्रदर्शन करता रहा और एक दिन ऐसा भी आया जब उसे भारतीय क्रिकेट टीम का कप्तान बना दिया गया.अब करोड़ों भारतीयों की आसमान छूती उम्मीदों पर खरा उतरने की जिम्मेदारी उसके कन्धों पर आ गयी.कप्तानी में भी वह लाजवाब निकला और जल्दी ही उसकी गिनती भारत के सफलतम कप्तानों में होने लगी.लेकिन तभी उस पर पैसा लेकर मैच हारने के आरोप लगने लगे.इसी बीच उसने अपने परिवार की ओर से हो रहे भारी विरोध को नज़रन्दाज करते हुए फिल्म स्टार संगीता बिजलानी से शादी कर ली.ज़िन्दगी में ग्लैमर का तड़का लगने की देरी थी कि शायद उसकी जिंदगी पाँच सितारा हो गयी.ज़िन्दगी की जरूरतें बढीं तो पैसों की ज़रुरत भी बढ़ गयी.कदाचित अब उसके पास अकूत धन भी था लेकिन विवाद बढ़ने के चलते उसका क्रिकेट कैरियर ढलान पर आने से पहले ही अचानक समाप्त हो गया.
मित्रों,अब तक यह तो आप समझ ही गए होंगे कि मैं भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व,विवादस्पद कप्तान और सांसद अजहरूद्दीन की बात कर रहा हूँ.बाद में १९९८ में जब वाजपेयी सरकार ने रिसर्जेंट बौंड ऑफ़ इंडिया के जारी काले धन को श्वेत करने की देशविरोधी योजना पेश की तब कथित तौर पर इसने सैंकड़ों करोड़ रूपये की काली कमाई को सफ़ेद बनाया.बाद में जैसा कि हर रसूखदार से जुड़े मामले का हमारे देश में होता आया है इसके मामले में भी हुआ और यह आरोपमुक्त कर दिया गया.अब अगर अजहर नहीं बताएँगे तो फिर कौन बताएगा कि उस ज़माने में जब क्रिकेटरों की आमदनी करोड़ों तो क्या लाखों में भी नहीं थी उनके पास अगर इतना धन आया तो कहाँ से आया?क्या उनके आँगन में पैसा बरसानेवाले बादलों ने चुपके से आकर धन बरसा दिया?
मित्रों,मुझे याद आ रहा है कि अजहर और कुछ अन्य भारतीय खिलाडियों पर जब निहायत गंभीर आरोप लगे तब मुझे खुद पर भी अपना कीमती वक़्त जाया करके दिन-दिन भर कमेंट्री सुनने के लिए गुस्सा आ रहा था.लग रहा था जैसे मेरे साथ गंभीर धोखा किया गया है,ठगी की गयी हैं;मेरी भावनाओं के साथ भद्दा मजाक किया गया है.मैंने कई महीनों तक क्रिकेट मैच टी.वी. पर देखना,रेडियो पर सुनना और अख़बारों में उससे जुडी ख़बरों को पढना भी बंद कर दिया था.आरोप लगने के बाद अजहर ने चुप्पी साध ली और कुछ समय के लिए पूरे परिदृश्य से गायब से हो गए.बाद में फिर से राष्ट्रीय क्षितिज पर नजर आए तो खिलाडी के रूप में नहीं एक सधे हुए राजनेता के रूप में.जैसे राजनीति में उनके ही जैसे कथित भ्रष्ट खिलाड़ी की कमी थी,एक ऐसे खिलाड़ी की जो सचमुच में बहुत बड़ा खिलाड़ी रह चुका था बहुत बड़ा परन्तु कथित रूप से भ्रष्ट खिलाड़ी.क्रिकेट जिसे भारत में धर्म का अघोषित दर्जा प्राप्त है;में रहस्यात्मक रूप से सट्टेबाजी को प्रश्रय देने वाला खिलाड़ी और इस प्रकार करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों के जज्बातों के साथ गन्दा खेल खेलनेवाला खिलाड़ी.
मित्रों,भारत की जनता के बारे में कहा जाता है कि इसकी याददाश्त काफी कमजोर है.यह पापियों के पापों को बहुत जल्दी भूल जाती है.कदाचित अजहर के पापों को भी भूल गयी और शायद इसलिए वे बिना किसी खास जद्दोजहद के लोकसभा के माननीय सदस्य बन बैठे.लेकिन पाप तो फिर भी पाप होता है मरते दम तक पीछा थोड़े ही छोड़ता है.देखिए न १५ साल बाद किस तरह विनोद काम्बली ने १९९६ के विश्व कप के सेमीफाइनल में भारत की रहस्यपूर्ण और शर्मनाक हार की याद ताजा कर दी.उस मैच में पहला झटका तो भारत की भोलीभाली जनता को तभी लगा जब टॉस जीत कर कप्तान अजहर ने फील्डिंग करने का फैसला किया.जबकि पिच क्यूरेटर पहले ही कह चुके थे कि उसकी समझ से टॉस जीतने के बाद पहले बल्लेबाजी करना ठीक रहेगा;फिर भी अजहर ने पहले क्षेत्ररक्षण करने का आत्मघाती निर्णय क्यों लिया;एक साथ हजारों प्रश्न खड़े करता है?बाद में श्रीलंका के २५१ रनों का पीछा करते हुए भारतीय टीम का स्कोर जब ९८ रनों पर एक विकेट था तब तक तो सबकुछ ठीक-ठाक था लेकिन जैसे ही सचिन आऊट हुए और स्कोर ९८ पर दो हुआ मानो विकेटों का पतझड़ लग गया.लगा जैसे विनोद काम्बली जिन्होंने कई दिन पहले रो-रोकर अजहर पर पैसा लेकर मैच हरने का आरोप लगाया है,को छोड़कर बाँकी सारे खिलाड़ी स्टोव पर मैगी चढ़ाकर आए थे और डर रहे थे कि उतारने में या चूल्हा बंद करने में देरी होने पर कहीं वह जल न जाए.लोग आते गए और कारवां बनता गया.आश्चर्यजनक रूप से मात्र २२ रन बनाने में ६ विकेट ढेर हो गए.कप्तान अजहर और सट्टेबाजी के एक और आरोपी अजय जडेजा शून्य रन बनाकर खेत रहे.शायद ये लोग बैंक में खाता खोल कर आए थे और वह भी पांच सौ या हजार रूपये की न्यूनतम राशि से नहीं बल्कि करोड़ों रूपये की बड़ी रकम से.संयोग से उस समय महनार में बिजली थी और मैं भी टी.वी. पर मैच देख रहा था.तब मेरी आँखों में आंसूं थे और मन अतिक्रोधित था.मुझे तब इस बात की भनक तक नहीं थी कि हो क्या रहा है या जो हो रहा है उसके पीछे क्या-क्या कारण हो सकते हैं?क्यों अजहर ने सबकुछ जानते हुए,क्यूरेटर द्वारा सचेत करने के बाद भी पहले क्षेत्ररक्षण करने का निर्णय लिया?बाद में जब अजहर पर सट्टेबाजों के हाथों में खेलकर करोड़ों रूपये बनाने का गंभीर आरोप लगा और उन्हें बहुत बेआबरू करके क्रिकेट के कूचे से हमेशा के लिए निकाल-बाहर कर दिया गया तब मुझे भी संदेह हुआ था कि कहीं यह मैच भी फिक्स तो नहीं था.लेकिन मुझे नहीं लगता कि दोषी होने पर भी;विनोद काम्बली की आँखों में आसुओं को दोबारा १५ साल बाद देखकर भी राजनेता बन चुके अजहर का दिल पसीज जानेवाला है और वे दिवंगत हैन्सी क्रोन्ये की अपना अपराध कबूल करते हुए माफ़ी मांग लेनेवाले हैं.आप ही बताइए नेताओं का सच्चाई से कोई दूर का रिश्ता भी होता है क्या?वैसे अगर वे ऐसा करते तो उनके लिए ही ज्यादा अच्छा होता और उनके दिल से बहुत बड़ा बोझ भी उतर जाता.साथ ही सट्टेबाजी की काली दुनिया के सफ़ेद संचालकों का चेहरा भी दुनिया के सामने बेनकाब हो जाता.लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि क्या राजनेता अजहर सच बोलने का जोखिम उठाएंगे?क्या उस मैच का वास्तविक रहस्य कभी सामने आ पाएगा?
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