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15.11.11

जनता आहत माल्या को राहत?-ब्रज की दुनिया

मित्रों,बात कुछ महीने पहले की है.हम भारतीय स्टेट बैंक की हाजीपुर,प्रधान शाखा से गृह ऋण लेकर घर बनाना चाहते थे.गोदान का होरी जिस तरह गाय को लेकर अपने मन में नित नए सपने बुना करता था उसी तरह हमारे मन में भी तब अपने घर को लेकर अनगिनत सपने कुलांचे भर रहे थे.लेकिन यह क्या,बैंक ने तो पिताजी की ज्यादा उम्र हो जाने का हवाला देते हुए ऋण देने से साफ तौर पर मना ही कर दिया.हम तो आदरणीय विजय माल्या की तरह कभी डिफौल्टर भी नहीं हुए थे लेकिन थे तो आम आदमी;बस यही एक दोष था हममें.हम जैसे छोटी हस्ती के लोगों के साथ सरकारी बैंक कुछ इसी तरह पेश आते हैं.काश हम भी विजय माल्या होते.तब सरकार हमारे पापों को चन्दन की तरह अपने माथे पर ले लेने के लिए बेताब हो जाती.प्रबंधन में गलती हम करते और भरपाई करती सरकार.व्यापार हम करते और जोखिम भी हमारा नहीं होता.इसी का नाम तो अमेरिकेन पूंजीवाद है जिसका हम इन दिनों अन्धानुकरण कर रहे हैं.देखा नहीं आपने अमेरिकी सरकार ने किस तरह अपने अति धनवान ऐय्याश पूंजीपतियों के पापों का ठीकरा खुद अपने ही सिर पर फोड़ लिया और जनता के खजाने में से धनपशुओं को राहत पैकेज दे दिया.
                   मित्रों,पिछले दिनों अपने देश में भी यही सब होने जा रहा था.चूंकि विजय माल्या बहुत बड़े धनपति हैं इसलिए उनको व्यापार में घाटा लगने पर सरकार सारे नियमों को ताक पर रखकर उनकी रक्षा करने को बेताब हो गयी थी परन्तु हमको और आपको अगर व्यापार में दस-बीस हजार या लाख का घाटा लगता है और हमारे समक्ष जीवन-मृत्यु का यक्ष-प्रश्न भी खड़ा हो जाता है तब भी सरकार नहीं आएगी बचाने हमें.वो हमें कर लेने देगी आत्महत्या,हमारे परिवार को हो जाने देगी अनाथ.तब बैंक हमें राहत देने पर विचार करने के लिए सामूहिक मीटिंग भी नहीं करते परन्तु जब अपनी बेटी की उम्र की लड़कियों के साथ ऐय्याशी करनेवाले और पाँच सितारा जीवन जीनेवाले माल्या की कोई छोटी-मोटी कंपनी घाटे में चली जाती है तब देश के प्रधानमंत्री खुद राहत हेतु पहल करने की बात करने लगते हैं.वो तो भला हो विपक्षी दलों,प्रबुद्ध समाज और राहुल बजाज का जिन्होंने सरकारी पहल का जोरदार शब्दों में विरोध करने कदम वापस खींच लेने पर मजबूर कर दिया.यही सही भी है.सिद्धांततः न तो बैंकों को और न ही सरकार को यह हक़ बनता है कि वो किसी धनकुबेर के डूबते व्यापार की रक्षा के लिए जनता के द्वारा महंगाई के युग में पेट काटकर जमा किए गए धन को लुटा दे.ज्ञातव्य है कि टाटा,बिरला और बजाज परिवार के अलावा ऐसा कोई व्यापारिक घराना नहीं है जिसने देशहित में कभी किसी तरह का व्यय किया हो.विजय माल्या ने देश और समाज को सिर्फ शराब पीना सिखाया है,युवा देश की युवा पीढ़ी को नशे का लती बनाया है और फिर उनकी विमानन कंपनी भले ही डूब रही हो उनका शराब का धंधा तो अभी भी पूरे शबाब पर है.इतना ही नहीं उनके पास आईपीएल की खरबों रूपये की टीम भी है और फ़ॉर्मूला वन में भी इनकी महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी है.इस तरह से श्रीमान जब किसी भी तरह से दिवालियेपन के कगार पर नहीं हैं फिर इन्हें जनता की गरीबी और पिछड़ेपन की कीमत पर क्यों सरकार की तरफ से सहायता की जाए?ये अगर सचमुच में कड़की के शिकार होते तो ऐसा सोंचा भी जा सकता था.
                        मित्रों,किसी भी व्यापार में लाभ या हानि के लिए व्यापारी खुद ही जिम्मेदार होता है.अगर माल्या को विमानन में लाभ होता और शराब के व्यवसाय में तो वे लाभ में हैं भी तो क्या वे लाभ की राशि को देश को भेंट कर देते या देंगे?अगर नहीं तो फिर यह कहाँ का न्याय है कि व्यापार में लाभ हो तो विशुद्ध रूप से मेरा और अगर हानि हुई तो देश का?ऐसे तो भारत में रोजाना करोड़ों छोटे-बड़े व्यापारियों को घाटा होता है तो क्या उन सबको जो हानि होती है उसकी भरपाई सरकार को जनता के खाते से करनी चाहिए?नहीं न?सरकार तो सिर्फ उन कंपनियों की हानि की भरपाई के लिए जिम्मेदार है जिनका मालिकाना उसके पास है.अर्थशास्त्र का सीधा सूत्र है जिसका लाभ उसी की हानि.
                        मित्रों,कुछ लोग इस मामले में पूंजीवाद के गौड फादर अमेरिका का उदहारण दे सकते हैं कि किस तरह वहाँ की सरकार ने डूब रही कंपनियों को कुएँ से निकालनेवाला पैकेज दिया.लेकिन ऐसा कहनेवाले को यह भी याद रखना चाहिए कि जहाँ अमेरिका घोषित रूप से एक पूंजीवादी देश है वहीं भारत संवैधानिक रूप से समाजवादी राष्ट्र है और समाजवाद धन के संकेन्द्रण को बढ़ावा नहीं देता बल्कि उसके न्यायोचित वितरण पर बल देता है चाहे इसके लिए डंडे का सहारा ही क्यों न लेना पड़े.आपलोग भी जानते हैं कि विजय माल्या की गिनती बीपीएल में नहीं होती बल्कि देश के शीर्षस्थ अमीरों में होती है.वे अपने रंगीनमिजाज बेटे के बालिग होने पर गिफ्ट में पूरी-की-पूरी एयरलाईन ही दे डालते हैं और घर भी बनाते हैं तो लाखों,करोड़ों का नहीं अरबों का.पैसा कमाना बुरा नहीं है बशर्ते कमाई का तरीका उचित हो और समाज के लिए लाभकारी भी हो.वे अरबों-खरबों के घर में रहें तो इससे हमें या देश को क्या लाभ?माल्या को शराब के अलावे किसी दूसरे उद्योग में पैसा लगाना चाहिए था क्योंकि उनका व्यापार जितना ही फलेगा-फूलेगा वे तो और भी धनवान होते जाएँगे लेकिन बदले में करोड़ों गरीबों का कुछ हजारों रूपये की कम कीमत वाला घर बर्बाद हो जाएगा.आप सभी जानते हैं कि कोई भी व्यापारी समाज के बीच ही व्यापार करता है और उसके लाभ में समाज का योगदान अहम होता है इसलिए उसको अपने लाभ में से वापस कुछ-न-कुछ समाज को लौटाना भी चाहिए न कि ऐय्याशी में पैसा उड़ा देना चाहिए.अगर कोई पूंजीपति ऐसा करता है तभी उसका हक़ बनता है डूबने के समय समाज की तरफ हाथ बढ़ाकर सहायता मांगने का और प्राप्त करने का.समझे श्रीमान विजय माल्या जी!समझाया तो कबीर ने भी था ५०० साल पहले ही लेकिन शायद आपने महात्मा कबीर को नहीं पढ़ा या पढ़ा भी तो पढ़कर अनसुना कर दिया-
जो जल बाढ़े नाव में,घर में बाढ़े दाम;
दोऊ हाथ उलीचिए,यही सयानो काम.

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