दिल के ज़ख़्म ।(गीत)
मेरे कानों में कुछ, कह गया है कोई ।
मेरे मन को फिर, छू गया है कोई ।
अंतरा-१.
दिल के ज़ख़्मों को यादें सहलाती रही,
मेरे दिल को तनहाई बहलाती रही ।
रगबत आग़ोश में ले गया है कोई ।
मेरे मन को फिर, छू गया है कोई ।
(रगबत = आरज़ू, इच्छा )
अंतरा-२.
मेरी बातें कुछ सुनी-अनसुनी सी रही,
बाक़ी संगमन सी वो भी अधूरी रही ।
आज चुपके से फिर, मिल गया है कोई ।
मेरे मन को फिर, छू गया है कोई ।
( संगमन=मिलन)
अंतरा-३.
ज़िंदगी का सफर यूँ ही कट जायेगा ।
वक़्त गुज़रा था जो न लौट आयेगा ।
मेरे दिल को फिर समझाता है कोई ।
मेरे मन को फिर, छू गया है कोई ।
अंतरा-४.
जिनकी हसरत लिए मैं तो फिरता रहा ,
जिनको अक्सर ख़यालों में मिलता रहा ।
लो, फिर मुझ से रूबरू हो गया है कोई ।
मेरे मन को फिर, छू गया है कोई ।
मेरे कानों में कुछ, कह गया है कोई ।
मेरे मन को फिर, छू गया है कोई ।
मार्कण्ड दवे । दिनांक-२५-११-२०११.
2 comments:
आज चुपके से फिर, मिल गया है कोई ।
मेरे मन को फिर, छू गया है कोई ।
behad khoobsurat......
abhinav geet........waah !
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