धीरे धीरे खेत कार्पोरेट फार्मिंग करने वालों या फिर बिल्डरों के हाथ में आजायेंगे. फिर ऐसा समय आएगा कि न खेत बचेंगे न कोई काम बचेगा,आखिर नरेगा - सरेगा में कब तक काम रहेगा(बांस गाड के ऊपर नीचे करने का भी पेमेंट होने लगे तो अलग बात) .फिर वो मजदूर बन चुका किसान आखिर में शहर कि और ही भागेगा,और हर शहर एक एडवेंचरस स्लम टूरिस्म कि संभावनों को अपने आप में समाये रहेगा.
फिर किसी दिल्ली वाले को गाँव कि ओर भागने कि जरूरत नहीं पड़ेगी,बोर होने पर वह इन्ही गलियों में निकल जायेगा जहाँ आदमी टाईप के लोग मिलेंगे,और वो वोटर भी होंगे.
1 comment:
बहुत सही बात कही मान्यवर आपने
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