29.2.12
आपदा से कम नहीं सडक हादसे
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ये है मिशन लन्दन ओलंपिक !
आठ साल बाद मिला है मौका .
लक्ष्य हो बस ओलंपिक पुरुष हॉकी GOLD !
भारतीय पुरुष हॉकी टीम को हार्दिक शुभकामनायें !
[यू ट्यूब पर मेरे द्वारा रचित व् स्वरबद्ध यह गीत भारतीय हॉकी टीम को प्रोत्साहित करने वाली भावनाओं से ही ओतप्रोत है .आप सुने व् सुनाएँ .स्वयं भी गायें .]
ये है मिशन लन्दन ओलंपिक
[फेसबुक पर मैंने यह पेज बनाया है आप इसे लाइक कर सकते हैं .]
YE HAI MISSION LONDON OLYMPIC !
शिखा कौशिक
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विश्वास
अगर मैं तुम्हारी हूं
तो मुझ पर विश्वास करो की
मैं सिर्फ तुम्हारी हूं
मैं कोई हवा नहीं हूं जो
किसी की भी सांस बनजाऊ।
न ही कोई उपन्यास हूं जो
हर किसी को लुभा जाऊं।
मैं सिर्फ और सिर्फ एक हूं
अगर में बेटी हूं तो सिर्फ अपने
मां बाप की
अगर में मां हूं तो सिर्फ अपने बच्चों की
और अगर में पत्नी हूं
तो सिर्फ अपने परमेश्वर की
अगर मुझ पर विश्वास करोगे तो मुझको पाओगे
नहीं तो मुझको इस संसार से खोता महसूस कर पाओगे।
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28.2.12
ब्लॉग पहेली-१५
ब्लॉग पहेली-१५ [ब्लॉग पहेली चलो हल करते हैं ]
इस बार आपके लिए हैं तीन प्रश्न .सर्वप्रथम व् सही उत्तर देकर बने विजेता .
शुभकामनाओं के साथ
शिखा कौशिक
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मीडिया में छाने को ले रहे हैं आयोग से पंगा
उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव के दौरान चुनाव आयोग को नाराज करने के एक के बाद एक मामले सामने आने से दो ही बातें समझ में आती हैं, या तो कांग्रेस के नेता वाकई आचार संहिता को नहीं जानते और मासूम हैं अथवा संयोग से गलती कर रहे हैं और या फिर जानबूझ कर ऐसी बयानबाजी कर रहे हैं, ताकि आयोग नाराज हो और कांग्रेस मीडिया में चर्चा में बनी रहे। संभव है कि कानून मंत्री सलमान खुर्शीद, गृह राज्य मंत्री प्रकाश जायसवाल व बेनीप्रसाद शर्मा के पास बयान देने का ठोस तार्किक आधार हो अथवा अपने बयान को अलग संदर्भ में कह कर बचने की कोशिश करें, मगर उनका जो रवैया दिखाई दे रहा था, वह साफ तौर पर आयोग को चिढ़ाने जैसा ही था। वे आयोग पर ऐसे गुर्रा रहे थे मानो उन्हें उसका कोई डर ही नहीं है। असल बात तो यह नजर आती है कि उन्होंने इतनी अधिक सीमा लांघी कि आयोग को नोटिस देना ही पड़ा। उनके बयानों से यह कहीं से भी नहीं दिखाई देता कि उन्हें इस बात का अहसास ही नहीं था कि उनके बयान पर आयोग ऐतराज जाहिर करते हुए नोटिस दे देगा। कम से कम ऐसा तो कत्तई नहीं लगा कि उनसे गलती हो गई अथवा जुबान फिसल गई थी, ठोक बजा कर जो बयान दे रहे थे। बयान आचार संहिता का उल्लंघन कर रहे थे या नहीं, इस में नहीं पड़ें, तब भी होना जाना क्या है? फांसी तो होनी नहीं है। हद से हद यही कहना है कि उनका मकसद आचार संहिता का उल्लंघन करना नहीं था, वे आयोग का सम्मान करते हैं अथवा आयोग के सामने पेश हो कर खेद प्रकट कर देने से मामला रफा-दफा हो जाएगा। वैसे भी इस प्रकार की विवादास्पद बयानबाजी का मतलब चुनाव पूरे होने तक है। उसके बाद पूछता कौन है कि आपने ऐसा कैसे कह दिया? असल में ऐसा प्रतीत होता कि कांग्रेस की यह सोची समझी चाल है। वह चुनाव की सरगरमी के दौरान मीडिया को अपनी ओर आकर्षित करने की फिराक में है, ताकि वहीं छायी रहे। वह असल मुद्दों से जनता का ध्यान हटाना चाहती है साथ ही अपने मकसद में कामयाब भी होना चाहती है। मुस्लिम आरक्षण का ही मामला लीजिए। माना कि इस पर बाद में माफीनामे अथवा खेद प्रकट करने की स्थिति आती है, मगर जिस मकसद से बयान दिया वह तो मुसलमानों को कम्युनिकेट हो ही गया। आयोग लाख माफी मंगवा ले, मगर उसे डीकम्युनिकेट कैसे करवा पाएगा। तब तक तो वोट ही पड़ चुके होंगे। मुस्लिम आरक्षण के मुद्दे पर कांग्रेस के आला मंत्रियों ने चुनाव आयोग पर वार पर वार करने की योजना चल ही रही थी कि कांग्रेस युवराज राहुल गांधी ने कानपुर में जानबूझ कर रोड शो किया और पूरे 24 घंटे तक वे मीडिया की सुर्खियां बने रहे। इतना ही नहीं, राहुल का सपा का घोषणा पत्र फाडऩे वाला नाटक भी साफ तौर पर मीडिया में सुर्खी पाने के लिए था। इससे मीडिया ही नहीं, बल्कि राजनीतिक दल भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। जाहिर तौर पर इससे भाजपा को बड़ी तकलीफ हुई होगी। मीडिया में छाये रहने के गुर तो भाजपाइयों को ही आते हैं। इस मामले में उनका कोई सानी नहीं। मगर पहली बार कांग्रेस के इस प्रकार मीडिया पर बने रहने से भाजपाई सकते में हैं। इसी बीच आयोग को कमजोर करने का मुद्दा उभर आया। आयोग ने जब इस प्रकार की किसी भी कोशिश का नाकाम करने की बात कही तो सरकार की ओर से कहा गया कि ऐसा कोई विचार ही नहीं था। ऐसे में भाजपा के दिग्गज अरुण जेटली ने मोर्चा संभाला और कांग्रेस को सीरियल अपराधी करार दे दिया, मगर मीडिया ने उसे कोई खास तवज्जो नहीं दी। पूरा प्रकरण मीडिया मैनेजमेंट से जुड़ा हुआ नजर आया।
-tejwanig@gmail.com
Posted by तेजवानी गिरधर 1 comments
34 साल बनाम 34 सप्ताह
शंकर जालान
कोलकाता, माकपा की अगुवाई वाली वाममोर्चा सरकार को मन से उतारने में राज्य की जनता को 34 साल लग गए थे और जिस चाव से जनता ने तृणमूल कांग्रेस को जीत दिला कर ममता बनर्जी को मुख्यमंत्री बनने का मौका दिया था 34 सप्ताह जाते न जाते अब उसी जनता की आंखों में ममता बनर्जी की वह ममता नहीं देख रही है, जिसकी उन्हें उम्मीद थी। दूसरे शब्दों में कहे तो ममता बनर्जी की ममता राज्य की जनता से दूर होती जा रही है। महानगर के विभिन्न क्षेत्रों के लोगों का कहना है कि ममता को जीताने के पीछे उनकी जो मंशा थी वह सब लगभग धरी की धरी रह गई। लोगों के मुताबिक उन लोगों ने एक कहावत सुन रखी थी- दूर का ढोल सुहावना लगता है। ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री बनने के बाद लोगों को यह कहावत चरितार्थ होती नजर आ रही है।
आम लोगों या साधारण जनता की तो विसात ही क्या। ममता इन 34 सप्ताह में उसकी सहयोगी पार्टी कांग्रेस, जिसकी अगुवाई में केंद्र की सरकार चल रही है और तृणमूल कांग्रेस जिसमें शरीक है के साथ कई मुद्दों पर टकरा चुकी हैं। इनमें ज्यादातर मुद्दों पर केंद्र सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर होना पड़ा है। राज्य में कांग्रेस के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ने के बाद ममता बनर्जी ने जब से मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली तब से उन्हें उम्मीद ही नहीं, पूरा भरोसा था कि केंद्र सरकार हर स्तर पर उन्हें राजकाज चलाने में मदद करेगी। पर, उनकी उम्मीद पूरी नहीं हुई। विशेष आर्थिक पैकेज को लेकर सर्वप्रथम केंद्र के साथ विवाद शुरू हुआ था जो धीरे-धीरे गहराता चला गया। अगस्त में जब पेट्रोल की कीमत बढ़ी तो अचानक ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और अल्टीमेटम दे डाला कि यदि बढ़ी हुई कीमत वापस नहीं ली गई तो तृणमूल कांग्रेस संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) से बाहर निकल आएगी। इसे लेकर कई दिनों तक राजनीतिक सरगर्मी तेज रही। इस मसले को जैसे-तैसे केंद्र सरकार ने सुलझा लिया। इसके तुरंत बाद बांग्लादेश से तिस्ता जल बंटवारे पर ममता ने मोर्चा खोल दिया और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ तय ढाका दौरे पर जाने से मना कर दिया। जिस कारण वर्षों से विवादित तिस्ता समझौता आज भी अधर में है। भूमि अधिग्रहण बिल को लेकर भी ममता ने विरोध किया और तीन बार केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश को कोलकाता आना पड़ा। इसके बाद खुदरा क्षेत्र में विदेशी पूंजी निवेश (एफडीआई) को बनर्जी ने जनविरोधी करार देते हुए केंद्र सरकार की खिलाफत शुरू कर दी और विरोध की वजह से केंद्र को पीछे हटना पड़ा। लोकपाल बिल के मसले पर लोकसभा में साथ देने के बावजूद राज्यसभा में लोकायुक्त के प्रावधान के मुद्दे पर ऐन वक्त पर पलटी मार दी और राज्यसभा में लोकपाल बिल लटक गया। कोयले के दर में बढ़ोतरी के मामले में भी केंद्र को ममता के दबाव के आगे झुकना पड़ा। अब एनसीटीसी को ममता ने मुद्दा बनाकर केंद्र सरकार के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है। इस मसले पर केंद्र सरकार बनर्जी के आगे झुकती है या नहीं, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
राजनीति के जानकारों की मानें तो राज्य में सत्तासीन होने के बाद तृणमूल कांग्रेस शासित सरकार ने ताबड़तोड़ कई ऐसे एलान किए, जिसे किसी भी मायने में सही नहीं ठहराया जा सकता। कहने को तो राज्य में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस की सरकार है, लेकिन तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी के अलावा जब तृणमूल कांग्रेस के मंत्रियों व विधायकों को कुछ बोलने की आजादी नहीं है। ऐसे में कांग्रेस के विधायकों और नेताओं की हैसियत की क्या है? जानकार मानते हैं कि लोकतंत्र के लिए इसे शुभ नहीं माना जा सकता।
ममता बनर्जी को मुख्यमंत्री बने लगभग 34 सप्ताह हो गए हैं और कहना गलत नहीं होगा कि जो गलती वाममोर्चा ने 34 सालों के शासन के बाद की थी, लगभग वहीं भूल ममता महज 34 सप्ताह के दौरान कर रही हैं। माओवादी समस्या हो या गोरखालैंड का मसला या फिर जमीन अधिग्रहण की बात हो या राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल। हर क्षेत्र में राज्य सरकार की किरकिरी हुई है।
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रामदेव को मार, आतंकवादियों के लिए 'छलका' दुलार!देश के प्रति यह कैसा प्यार?
19 सितंबर, 2008 को इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादियों का दिल्ली पुलिस ने एनकाउंटर किया था।यह एनकाउंटर बटला हाउस, जामिया नगर, नई दिल्ली में हुआ था जिसमें दिल्ली पुलिस ने दो आतंकवादियों को मार गिराया था, दो को गिरफ्तार किया था और एक आतंकवादी फरार हो गया था।इस पूरे एनकाउंटर का नेतृत्व किया था एनकाउंटर विशेषज्ञ और दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर श्री मोहन चंद शर्मा ने, जो कि इस घटना में शहीद हो गए।बस तभी से कुछ नेताओं ने इस एनकाउंटर पर भी मुस्लिम वोट-बैंक की गंदी राजनीति शुरू कर दी।कुछ नेताओं ने इस एनकाउंटर को फर्जी बताया।यहाँ तक कि गृह मंत्री के इस एनकाउंटर को सही ठहराने के बयान के बावजूद भी दिग्विजय सिंह जैसे कुछ नेता बाज नहीं आ रहे हैं और इस एनकाउंटर को लगातार फर्जी बता रहे हैं।समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी भी इस मुद्दे पर गंदी राजनीति करने से नहीं चुके और उन्होंने भी इस एनकाउंटर की न्यायिक जाँच की माँग की।केन्द्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने एक चुनावी रैली में बड़े गर्व से कहा कि बटला हाउस एनकाउंटर की तस्वीरें देखने के बाद सोनिया गाँधी के आँसू छलक आए।यह सब बातें बोलकर सलमान खुर्शीद और दिग्विजय सिंह जैसे नेता आखिर क्या साबित करना चाहते हैं?यही कि उनकी पार्टी मुस्लिमों की सबसे बड़ी शुभचिंतक है?ये सब राष्ट्र विरोधी और आतंकवाद समर्थित बातें बोलकर मुस्लिमों को क्या संदेश देना चाहते हैं?क्या यह संदेश देना चाहते हैं कि आप हमें वोट दे दो तो हम आतंकवादियों की भी खुशामद करेंगे?क्या ये नेता यह संदेश देना चाहते हैं कि आप हमें वोट दे दो तो हम शहीदों की शहादत की भी धज्जियां उड़ा देंगे?क्या ये नेता यह संदेश देना चाहते हैं कि हमारे लिए वोट सर्वोपरि है, चाहे वह वोट देश पर अपनी जान कुर्बान करने वाले शहीदों का अपमान करके ही क्यों न मिला हो।
आतंकवादियों की मौत देखकर सोनिया गाँधी के आँसू छलक आए!क्या शहीदों की शहादत पर उनके आँसू नहीं आए?राहुल गाँधी पूरे उत्तर प्रदेश में विकास करने का ढोल पीट रहे हैं।राहुल जी! किसे बेवकूफ़ बना रहे हैं?आपके पार्टी के नेता रोज खुलेआम शहीदों का उपहास उड़ा रहे हैं और आप विकास की बातें कर रहे हैं!आपकी पूरी पार्टी को देशभक्ति का शुरूआती अक्षर 'द' भी नहीं पता है।जिसे राष्ट्र की इज्जत करना नही आता हो, जिसे शहीदों की देशभक्ति की भी कद्र नहीं हो, वह भला विकास क्या करेगा।आपकी पूरी पार्टी को पहले राष्ट्रवाद और देशभक्ति का पाठ पढ़ने की जरूरत है।
सोनिया जी! आपके आँसू उस वक्त कहाँ थे जब रामलीला मैदान में सोए हुए मासूम, निर्दोष लोगों पर पुलिस ने आधी रात को मानवता और इंसानियत की धज्जियां उड़ाते हुए, बेरहमी से लाठीचार्ज किया।अपने देश में सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि यहाँ के नेता हर एक चीज को वोट-बैंक से जोड़ देते हैं।हर एक काम, हर एक बयान देते हैं वोट-बैंक को ध्यान में रखते हुए।बाबा रामदेव जैसे देशभक्त और उनके समर्थकों को आधी रात को बेरहमी से पीटा गया क्योंकि बाबा में कांग्रेस को कोई वोट-बैंक नजर नहीं आया।जहाँ इन कांग्रेसी नेताओं को वोट-बैंक नजर आता है वहाँ पर तो ये नेता बिल्कुल नहीं चुकते हैं।चाहे उसके लिए इन नेताओं को अफ़जल और कसाब जैसे आतंकवादियों की फाँसी रोकवा कर इनकी खुशामद क्यों न करनी पड़े।अफ़जल और कसाब को फाँसी न देकर ये सरकार उन शहीदों का घोर अपमान कर रही है जिन्होंने एक पल भी यह नहीं सोचा कि उनके बाद उनके परिवार का क्या होगा और देश पर अपनी जान कुर्बान कर दी।सोचो कि अफ़जल जब संसद में बलास्ट करने वाला था उस वक्त वहाँ पर मौजूद जवानों ने कुर्बानी न दी होती तो हो सकता था कि आपमें से कोई नहीं बचता।उन जवानों ने आप नेताओं के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी और आपलोग हैं कि चंद वोटों के लिए उनकी मान-मर्यादा के साथ खिलवाड़ करते हैं।
दोस्तों, जाटों के आंदोलन को तो आप जानते ही होंगे।न जाने कब से वो आरक्षण की माँग को लेकर रेलवे पटरी जाम करके आंदोलन करते आए हैं।वे तो आरक्षण की माँग करके देश को और ज्यादा खोखला करने की माँग करते हैं, फिर भी उन पर सरकार ने आज तक कोई कार्रवाई नहीं की क्योंकि उनमें सरकार को वोट-बैंक नजर आता है, उल्टा सरकार उनके सामने बेबसी ही दिखाती है।जबकि बाबा रामदेव अपने समर्थकों के साथ रामलीला मैदान में काले-धन, महँगाई और भ्रष्टाचार जैसे जनहित और देशहित मामलों पर शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन कर रहे थे, फिर भी उन पर और उनके समर्थकों पर बड़ी ही बेरहमी से पुलिस ने कार्रवाई की।पुलिस ने कारण बताया कि बाबा के आंदोलन की वजह से कानून व्यवस्था ढीली पड़ रही थी इसलिए उन्होंने कार्रवाई की।क्या जाटों के आंदोलन से कानून व्यवस्था नहीं गड़बड़ाती है जब उनकी बेकार माँग की वजह से कितनी ही रेलगाड़ियों को रद्द करना पड़ता है।यह नेताओं का वोट-बैंक ही है जिसकी वजह से देशहित का मामला उठाने वाले बाबा रामदेव और उनको समर्थकों को भी मार खानी पड़ी और देश को खोखला करने वाले आरक्षण की माँग करने वाले जाट अपनी मन-मर्जी के मुताबिक समय-समय पर रेल-पटरी जाम करते रहते हैं और रेलगाड़ियों को प्रभावित करते रहते हैं, जैसे यह सब उनकी नीजि संपत्ति हो।
नेताओं को सोचने की जरूरत है कि अगर कभी कोई आतंकवादी किसी नेता के घर में घुस जाता है और उस वक्त पुलिस अगर यह कहकर टाल दे कि आपको मदद की क्या जरूरत है क्योंकि आपलोगों को तो इनकी मौत पर आँसू आ जाते हैं, तब आपका क्या होगा?जरा सोचिए कि उस वक्त आपका क्या होगा जब आतंकवादी आपके घर में हो और पुलिस यह कह दे कि आपको मदद कि क्या जरूरत है, आपलोगों को तो हम जवानों से ज्यादा ये आतंकवादी ही प्यारे हैं।वैसे घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि ये जवान कभी ऐसा करेंगे नहीं।ये आपलोगों की तरह नहीं हैं।भले ही भ्रष्टाचार हर जगह है लेकिन आज भी इस भ्रष्टाचार के युग में भी ऐसे कुछ देश के जाँबाज सिपाही बचे हैं जिनका दिल देश के लिए धड़कता है।वैसे इन नेताओं का कोई भरोसा नहीं है।जैसी परिस्थिति मैंने कल्पना की है, उस परिस्थिति में अगर पुलिस अपनी जान की बाजी लगा कर इनकी जान भी बचा ले, तब भी ये नेता कहीं इस मुठभेड़ को भी फर्जी ही बताएँगे।
कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने तो सारी हदें पार कर दी।खुलेआम शहीदों का मजाक उड़ाते हैं।बटला हाउस एनकाउंटर को फर्जी बताकर वो शहीद मोहन चंद शर्मा का तो मजाक बना ही रहे हैं।साथ-साथ वो पूरे पुलिस-फोर्स का मनोबल गिरा रहे हैं।आखिर वो भी तो सर्वप्रथम इस देश के नागरिक हैं।क्या उनकी अंतरात्मा उन्हें इस बात की अनुमति दे देती है कि आप देश के नागरिकों के लिए शहीद होने वाले जवानों का भी खुलेआम मजाक उड़ाएं?मेरे ख्याल से भारत के किसी भी सच्चे नागरिक को उनकी अंतरात्मा इस बात की अनुमति नहीं देगी।
आखिर क्या हो गया है मुस्लिम समाज के बुद्धिजीवियों को?ये सरकार उन्हें वोट-बैंक की तरह इस्तेमाल कर रही है जिसके लिए रोज इस सरकार के नेता शहीदों की देशभक्ति के चिथड़े उड़ा रहे हैं।इतना सब होने के बावजूद भी वो क्यों चुप हैं?जो भी मुसलमान भाई खुद को इस देश का नागरिक मानते हैं उन्हें इस सरकार के खिलाफ आंदोलन छेड़ना चाहिए।आखिर उन्हें क्या समझा जा रहा है?कसाब और अफ़जल को फाँसी न देकर यह सरकार आतंकवादियों को आपका आदर्श बनाने पर तुली हुई है।आखिर आप अपना आदर्श किसे मानते हैं?इन आतंकवादियों को या भारत माता के सच्चे सेवक डॉ कलाम साहब को?फैसला आपको करना है।
दोस्तों, हमारे देश के प्रधानमंत्री की मशहूर 'चुप्पी' से तो आप वाकिफ होंगे ही।इस गंभीर मुद्दे पर भी उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की।क्या प्रधानमंत्री होने के नाते उनका यह फर्ज नहीं बनता कि वह अपने सभी आतंकवाद समर्थित नेताओं को फटकार लगाएँ।खैर, जब तक वो हैं तब तक यह सोचना तो बेकार ही है कि वह गलती करने वाले अपने नेताओं को फटकार लगाएँ।जब डॉ मनमोहन सिंह ट्वीटर पर आए थे तो हर अखबार में यह चर्चा थी कि अब प्रधानमंत्री किसी मुद्दे पर अपनी चुप्पी नहीं रखेंगे और हर मुद्दे पर अपनी राय जाहिर करेंगे।लेकिन मुझे तो उनका ट्वीटर पर आने का कोई फायदा नजर नहीं आ रहा।अगर वह आतंकवाद जैसे संवेदनशील मुद्दे पर अपने कुछ नेताओं के बयानों पर प्रतिक्रिया भी नहीं दे सकते, तो उनका ट्वीटर पर रहना व्यर्थ है।
इस सरकार ने सत्ता में रहने का अधिकार खो दिया है।आप ही बताइए कि कोई भी आतंकवाद समर्थित और राष्ट्र-विरोधी सरकार को सत्ता में रहने का अधिकार है?जिस तरह से यह सरकार मुस्लिमों को सिर्फ एक वोट-बैंक की तरह इस्तेमाल कर रही है, उसके बावजूद भी अगर मुस्लिम कांग्रेस को वोट देते हैं तो इसमें मुस्लिमों की ही ज्यादा गलती होगी। कांग्रेस खुलेआम आतंकवाद को बढ़ावा दे रही है, ऐसे में कांग्रेस को वोट देना तो आतंकवाद को समर्थन देना ही माना जाएगा।आप ही बताइए कि जहाँ आतंकवाद पूरी दुनिया में खतरा बना हुआ है, वहाँ अगर अपने देश की सत्ताधारी पार्टी ही आतंकवाद समर्थित बयान दे तो कैसे खत्म होगा आतंकवाद?
पहले नेताओं को समाज का नेतृत्व माना जाता था लेकिन मैं आज के नेताओं को ऐसा नहीं मानता।आखिर समाज का नेतृत्व दिग्विजय सिंह और सलमान खुर्शीद जैसे नेता कैसे कर सकते हैं?जब समाज का नेतृत्व ही दिग्विजय सिंह जैसे आतंकवाद समर्थित नेता करेंगे तो बेड़ा गर्क तो होना ही है ऐसे समाज का।आज के समाज के हीरो शहीद मोहन चंद शर्मा, शहीद हेमंत करकरे और उनके जैसे और भी कई भारत माता के सच्चे सेवक हैं जोकि भारत माता पर आँच आने पर अपनी जान कुर्बान कर देते हैं।मुझे समझ नहीं आता कि कांग्रेस के नेताओं को सोनिया गाँधी में नेतृत्व क्षमता क्यों दिखाई देती है?जिन्हें आतंकवादियों की मौत पर आँसू आ जाए, वो भला देश का नेतृत्व क्या करेंगी।जिस भारत में बच्चों को विद्यालय से ही देश के जाँबाज स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में बताया जाता है, जिस भारत में वन्दे-मात्रम सुनते ही बच्चों की आँखों में आँसू आ जाते हैं, उस भारत में दिग्विजय सिंह, सलमान खुर्शीद और सोनिया गाँधी जैसे नेता आखिर समाज को क्या संदेश देंगे?क्या यह संदेश देंगे कि देश के शहीदों पर नहीं बल्कि आतंकवादियों के एनकाउंटर पर आँसू बहाओ?मेरी जनता से यह गुजारिश है कि जो भी नेता शहीदों का मजाक उड़ाएं, उन्हें अच्छी तरह से पहचान लो।उन नेताओं को आने वाले लोकसभा चुनाव में बिल्कुल वोट मत देना।उन्हें कोई अधिकार नहीं है शहीदों का अपमान करके संसद में जाने का।शहीदों का अपमान करने वाले एक-एक नेताओं को सबक सिखाओ।भारत माता के सच्चे सेवकों का जिन-जिन नेताओं ने मजाक उड़ाया है उन्हें कतई वोट मत देना।जो भी खुद को भारत के सच्चे नागरिक मानते हैं, वो कांग्रेस को कभी वोट नहीं देंगे।जिनमें भारत माता के प्रति थोड़ी भी आस्था होगी, वो कांग्रेस को कभी वोट नहीं देंगे।देश को कोई जरूरत नहीं है ऐसे नेताओं कि जो शहीदों का सम्मान करना भी नहीं जानते हो।उन सभी नेताओं पर मुकदमा चलना चाहिए जिन्होंने खुलेआम शहीदों का अपमान करके उनकी देशभक्ति की भावना को ठेस पहुँचाई है।अत: मैं आप सभी से गुजारिश करता हूँ कि अगर अपने देश का भला चाहते हैं तो कांग्रेस को कभी वोट मत देना।कांग्रेस ने शहीदों के साथ-साथ भारत माता के प्रति उनकी मर-मिटने की भावना को भी चोट पहुँचाई है, जिसकी सजा उसे मिलनी चाहिए।आइए हम सब कांग्रेस को वोट न देकर शहीदों को नमन करें और भारत माता की जयजयकार करें।वे (शहीद) हमारे दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगे और हमें हमेशा देशभक्ति का पाठ पढ़ाते रहेंगे।
जय हिंद! जय भारत!
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एक वोट डाल कर मैदान मार ले!
वोट डाल ले ...वोट डाल ले ..
अब के इलेक्शन में वोट डाल ले .
सबसे जरूरी ये काम जान ले ;
कर न बहाना ये बात मान ले ;
वोट डाल ले ...वोट डाल ले .
वोटिंग का दिन है ये छुट्टी नहीं
इससे बड़ी कोई ड्यूटी नहीं ;
चल बूथ पर वोटर कार्ड साथ ले ;
वोट डाल ले .....
दादा चलें संग दादी चले ;
भैया के संग संग भाभी चले
घर घर से वोटर साथ ले
वोट डाल ले .......
हमको मिला मत का अधिकार ;
चुन सकते मनचाही सरकार ;
लोकतंत्र का बढ़ हाथ थाम ले .
वोट डाल ले .......
साइकिल से जा या रिक्शा से जा ;
कार से जा या स्कूटर से जा ;
कुछ न मिले पैदल भाग ले
वोट डाल ले .......
कैसा हो M .P .....M .L .A ?
तुझको ही करना है ये निर्णय ;
एक वोट डाल कर मैदान मार ले .
वोट डाल ले .....
जय हिंद !
शिखा कौशिक
[नेता जी क्या कहते हैं ]
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Labels: song vote shikha kaushik
एक अनिश्चित बात कि मैं जिंदा हूं .....
एक अनिश्चित बात कि मैं जिंदा हूं .....
अबकी बारी मेंने कलम पकड़ी तो
ख्याल आया कि कुछ ऐसा लिखा
जाए जो अनिश्चित हो
तो एक बात याद आई
जो बात सबसे अनिश्चित है
कि
मैं अभी जिन्दा हूं
पर क्या मैं आगे भी जिन्दा रह पाऊंगी
क्या मैं इससे पहले जिन्दा थी
जब एक बूढी मां को मेरे सामने
उसका जवान बेटा घर से निकाल रहा था
या फिर तब...
जब स्कूल जाती एक लड़की का दुपट्टा
मंनचलों ने खींच लिया था
या फिर तब...
जब मेरे ही किसी रिश्तेदार ने
एक भारत की बेटी को
भारत मां की गोद में आने से पहले
मां की कोख में ही मार दिया था
या तब...
जब बिना गलती के भी
मेरे ही घर में नौकरों को फटकारा जाता था
क्योंकि सबको व्यर्थ में ही अपना गुस्सा
उतारना होता था
शायद नहीं
तब मैं जिन्दा तो थी पर मरे होने का आभास कर रही थी
पर अगर आज मैं यह सब लिख रही हूं तो
यह इसका प्रमाण है कि मैं अभी जिन्दा हूं
पर क्या मैं आगे ज्यादा दिन जिन्दा रह पाऊंगी
अंत में यही सवाल मुझे झकझोर देता है।
Posted by SHASHIKALA 1 comments
आज विज्ञान दिवस है.....???
आज विज्ञान दिवस है और इस देश में आज विज्ञान की हालत बदतर से बदतरीन की हालत में जा चुकी है,इसका कारण महज इतना है कि विज्ञान नाम की चीज़ को यहाँ की भाषाओं में पेश ही नहीं किया गया कभी,एक अर्धसाक्षर देश के कम-पढ़े-लिखे लोगों को उचित प्रकार से शिक्षा से ही नहीं जोड़ा जा सका आज तक,तब वैज्ञानिक सोच की बात करना तो और भी दूर की कौड़ी है !
पराई भाषा से भारत का वंचित तबका ना तो अब तक जुड़ पाया है और ना ही कभी जुड़ भी पायेगा क्योंकि जिस भाषा में उसका ह्रदय धडकता है वह भाषा महज उसके आपस की दैनिक बातचीत को आदान-प्रदान करने का माध्यम भर है मगर दुर्भाग्य यह है कि उस भाषा में उसकी शिक्षा का अवसर नहीं,तो क्या आश्चर्य कि भारत,जो कभी विश्व को नौ प्रतिशत वैज्ञानिक योगदान दिया करता था,आज महज ढाई प्रतिशत के आंकड़े पर जा गिरा है और यहाँ तक कि वैज्ञानिकता के नाम पर भारत के वैज्ञानिक महज कुछ बहुराष्ट्रीय कंपनियों की चाकरी कर संतुष्ट है,इस सन्दर्भ में कटु सत्य तो यह है कि भारत के पास अपने होनहार वैज्ञानिकों के लिए काम ही नहीं है !
अंग्रेजी के शिक्षा-जगत में पूर्ण वर्चस्व के कारण भारत का बहुसंख्य तबका शिक्षा की अच्छाईयों से पूर्ण-रूपेन कट गया यहाँ तक कि इस बहुसंख्या को शिक्षा तक पराई प्रतीत होती है,ऐसे विज्ञान को कौन पूछे जब शिक्षा ही पराई हो,वैज्ञानिकता का भाव तो शिक्षा के बाद ही पैदा होता है !
मगर उसके बाद भी कुछ ऐसे अवसर थे जहां भारत के लोग अगुआ बन सकते थे,वो क्षेत्र थे देशी तकनीक और वैज्ञानिकता के क्षेत्र,मगर अपने देशी ज्ञान को दीन-हीन मानकर हमने उसका भी सत्यानाश कर डाला और आज हालत यह है कि हम ना यहाँ के हैं और ना वहाँ के,देशी ज्ञान को भी हम खो चुके हैं और विदेशी ज्ञान जो एक कठिन और पराई भाषा में है,उसका लाभ यहाँ के लोग ले नहीं पा रहे क्योंकि वो उसे समझते ही नहीं !
मगर हद तो इस बात है कि हम जो हिंदी-हिंदी-हिंदी कहते-करते नहीं अघाते,उस हिंदी को हमने महज भावुकता की-कविता की-साहित्य की भाषा भर बना डाला और तरह-तरह के पखवाड़े आयोजित कर उसका सम्मान करते रह गए तथा भांति-भांति की गोष्ठियां कर आपस में ही तालियाँ पिटवाते रह गए...हिंदी को हमने साहित्य के अलावा ज्ञान-विज्ञान के लिए निकृष्ट भाषा बना डाला और अब जब हम विश्व में अनेकानेक क्षेत्रों में विश्व के छोटे-छोटे देशों से पिछड़ चुके हैं तब भी हमें होश आ गया हो,यह संभावना मुझे अब भी दिखाई नहीं देती और तब ऐसे में विज्ञान तो विज्ञान,देश के करोड़ों होनहारों को वास्तविक शिक्षा दे पाने की सोच पाना भी एक सपना ही है....!!(राजीव थेपड़ा)
Posted by राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) 0 comments
केजरीवाल ! चुप भी करो भाई.....क्योंकि यह सच्चाई नग्न है !!
संविधान ने भारत के हर नागरिक को अभिव्यक्ति की आजादी दी यह सही है मगर आम नागरिक
यदि चुने हुए नेता के खिलाफ कडवा सत्य बोलता है और उनकी पाप की गठरी को बीच सड़क पर
खुला करता है तो उसके विरुद्ध विशेषाधिकार हनन का मामला ठोक-पीट कर बनाना ही चाहिये .
आप कडवा सच कहने के अपराधी हैं केजरीवाल सा'ब ! आप जानते हैं की चुनाव जीतना भारत में
बाहुबलियों के लिए कठिन काम नहीं है .इस देश में वोट झूठे वादों के नाम पर ,संविधान के विरुद्ध
नया कानून बनाने की बात कह कर ,अल्पसंख्यको की कुहनी पर गु ड़ लगाकर,विकास की परछाई
दिखा कर ,बूथ केप्चर करके,बाहुबल पर भी चुनाव जीता जाता है और ये आपराधिक प्रवृति के लोग
जनता द्वारा चुनकर आये हैं ,चुने हुए लोगों के पास खुद की ताकत और बहुमत पर नाचते शक्तिशाली
झूठ की भी ताकत है और आप तो कमल से कोमल हैं, अरविन्द हैं ,आपके मुंह से कडवी सच्ची बातें
अच्छी नहीं लगती है और सा'ब ये सतयुग भी नहीं है .इस युग में झूठ बोलना पुण्य हो गया है .अगर
आपने थोड़ी चमचागिरी सीख ली होती तो आप भी संसद के अन्दर होते मगर अफसोस... !
आपकी जबान प्रेक्टिकल नहीं है .अरे.. !क्या जरुरत है ढोल पीट पीट कर सच बोलने की .अन्दर ही
अन्दर नस पकड़ कर मरोड़ते तो आप रुआब से रहते मगर ये सच बोलने वाली जबान का क्या किया
जाए ...संसद के अन्दर बैठकर "काम" की ब्लू फ़िल्म देखने पर भी आपको एतराज है ...संसद में
बैठकर विधेयक की प्रतियां फाड़ने पर भी आपको एतराज है ...संसद के माइक और कुर्सियां तोड़ने
पर भी आपको एतराज है .आखिर आपका चिंतन ही कहीं नेगेटिव तो नहीं हो गया है .ये चुने हुए लोग
हैं इनकी अपनी भी गरिमा है और उसके अनुरूप ये कुछ मनोरंजन कर लेते हैं तो क्या बिगड़ जाता
है करोडो लोगों का .जब भगवान् के मंदिर में औरतों के साथ धक्का मुक्की की जा सकती है तो फिर
संसद के मंदिर में शांति से बैठकर मस्त कैबरे डांस क्यों नहीं देखा जा सकता .आप किस युग के
प्राणी हैं ?अरे सा'ब ,युग परिवर्तन का समय है ,कुछ जोड़ तोड़ को समझो ,झूठ बोलना एक आर्ट है
इस कला से और मक्खन लगाने से आप भी बड़े ओहदे पर जा सकते थे मगर आप ठहरे फिस्सडी
जब भी उगलते हैं सच ही उगलते हैं और कोलावरी फेलाते हैं .
आप नेताओ की नाक में दम कर देते हैं ,क्या जरुरत है सा'ब ये सब करने की .आप और अन्ना
जगे हुए लोगों को जगाना चाहते हैं! हम जबान वाले गूंगे भारतीय हैं ,हम सुई की आवाज को भी
सुनने वाले बहरे हैं .हम सत्य को देख कर आँखे बंद कर लेते हैं .हम सहन करने वाले लोग हैं
हम अत्याचार ,अनाचार ,दुराचार सब सहन कर लेते हैं और जिन्दगी जी लेते हैं मगर आप हैं कि
रुकने का नाम नहीं लेते ....कभी भ्रष्टाचार के खिलाफ तो कभी कालेधन के खिलाफ कभी अन्याय
के खिलाफ तो कभी लुटरे लोगों के खिलाफ कुछ ना कुछ खुरापात चालु रखते हैं .आप बागी हैं
और बागी लोग इस स्व + तंत्र वाले भारत में मसल कर रख दिए जाते हैं .देखना आपकी ये जबान
आपको विशेषाधिकार हनन में ना फंसा दे या आप पर राष्ट्र द्रोह का मामला ना चलवा दे .
'इस संसद में ऐसे 15 सांसद हैं जिन पर हत्या करने के आरोप हैं, 23 ऐसे सांसद हैं जिन
पर हत्याके प्रयास के आरोप है, 11 सांसदों के खिलाफ धारा 420 के तहत धोखाधड़ी करने
और 13 के विरुद्ध अपहरण के मामले दर्ज हैं.'' ये सब विशेषण हैं सा'ब .विशेष योग्यता रखने वाले
सांसद हैं हमारे .आपको इनकी लिस्ट बनाने की कहाँ जरुरत थी .अरे !सा'ब ये सब तो अब आदरणीय
हैं इनके पदचिन्हों पर चलकर देश की राजधानी के कुछ युवा जेल रूपी सुसराल में पहुँच गए हैं .
हमें संसद और इन सांसदों पर भरोसा होना चाहिए .हम लोकतंत्र में जीते हैं .हमें अपने पूज्य सांसदों
पर गर्व होना चाहिए .इनके कर्म कैसे भी हो हमें चुप बेठना चाहिए .इनका अपमान भारत के संविधान
का अपमान है .इनका चरित्र राष्ट्र के निर्माण में सहायक बनेगा ,देश उन्नति करेगा चाहे दिशा कोई सी
भी हो .इसलिए केजरीवाल सा'ब आप भी पवित्र संसद की गरिमा के लिए अपवित्र सांसदों के कर्मो
पर अंगुली मत उठाईये .
अगर अब भी आप अपनी बात पर डटे रहेंगे तो हम आपको अड़ियल कहेंगे और आपके
अड़ियलपन पर गर्व करेंगें .
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Labels: vyangya
27.2.12
फिल्मे केवल तिन कारणों से चलती है : entertainment entertainment entertainment
भारत सरकार केवल तीन कारणों से चल रही है ; भ्रष्टाचार , भ्रष्टाचार , भ्रष्टाचार ,
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मैं आज़ाद हूं...
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गंगा तेरे वास्ते...
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crossroadshelpline : एक धोखा धडी कंपनी :
crossroadshelpline नाम है उस कंपनी का जो कहती है कि उसका काम है सड़क पर अचानक खराब कार को ठीक करना और उसके लिए वो अच्छी खासी रकम भी , सालाना लेती है ,
please be aware of fraud companies like crossroadshelpline
i am not talking of their sending the help in some-times in more than one hour.
but this time they just took the money, and denied the service for some funny reasons .
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