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31.12.12

हम नहीं चाहते हैं कि बुराइयाँ रुके ........


हम नहीं चाहते हैं कि बुराइयाँ रुके ........

अँधेरे का विकराल अस्तित्व तब तक कायम है जब तक कोई लौ जलती नहीं है।हम कब तक
अँधेरा -अँधेरा पुकारते रहेंगे और एक दुसरे से कहते रहेंगे कि देखो,अँधेरा कितना भयावह हो
गया है।हमारे चीखने और चिल्लाने भर से अँधेरा खत्म हो जाता तो अब तक हुआ क्यों नहीं ?
हम गला फाड़ -फाड़ कर सालों से चिल्ला रहे हैं।हम दोष दर्शन कर रुक जाते हैं,हम दुसरे पर
दोष डालने के आदी हो गए हैं।हम चाहते हैं कि मैं कुछ भी कर सकता हूँ मगर दुनिया सदैव
मेरे साथ अच्छा सलूक करे।

        समस्या मूल रूप से यह है कि हम खुद को नैतिक,ईमानदार,सदाचारी और निर्भीक नहीं
बनाना चाहते हैं मगर हम चाहते हैं कि मुझ को छोड़कर सब नैतिक बन जाये!!

    भ्रष्टाचार की लड़ाई में लाखों लोग झुड़े मगर किसे ने भी सामूहिक रूप से सच्ची निष्ठा के
साथ यह कसम नहीं खायी कि मैं और मेरे बच्चे अब से भ्रष्ट आचरण नहीं करेंगे।नतीजा
ढाक के तीन पात .......

  बलात्कार जैसे जघन्य अपराध पर हमने खूब प्रदर्शन किया मगर किसी ने भी सामूहिक
रूप से सच्ची निष्ठां के साथ यह कसम नहीं खायी कि अब से हम या हमारे परिवार से किसी
को बलात्कारी नहीं बनने देंगे .....

  हमने सामजिक बुराइयों को हटाने के लिए कभी ठोस संकल्प नहीं लिया।हम चाहते हैं की
सामाजिक बुराई से कोई और व्यक्ति लड़े और मैं दूर से देखता रहूँ ,यह स्वप्न कैसे सच हो
सकता है ?

   हम या हमारा पुत्र जब रिश्वत का पैसा घर लाता है तो हम खुद को बुरा या पुत्र को बुरा नहीं
कहते हैं हम उसे समझदारी मान लेते हैं और दूसरा वैसा ही काम करता है तो हमारा नजरिया
बदल जाता है और वह भ्रष्ट आचरण लगने लगता है ,यह दोहरा नजरिया ही समस्या का मूल
है।

   जब हम गलत काम करते हैं और पकड़े जाते हैं तो खुद को निर्दोष साबित करने की पुरजोर
कोशिश करते हैं और दूसरा वैसा ही कर्म करता है तो उसे अपराधी मान लेते हैं।यह दोगलापन
कभी सभ्य और सुंदर समाज का निर्माण नहीं कर पायेगा।

 हम चाहते हैं कि पहले मैं या मेरा परिवार अकेला ही क्यों सुधरे,पहले वो सुधरे जिन्होंने बड़ा
अपराध किया है।हम खुद के अपराध को छोटा मानते हैं और दूसरों के अपराध को बड़ा।हम
इन्तजार करते हैं कि पहले जग सुधर जाए, खुद को बाद में सुधार ही लेंगे।

   यदि हम देश को सुधारने के फेर में पड़ेंगे तो बहुत समय गँवा देंगे मगर उससे ज्यादा नहीं
उपजा पायेंगे।यदि हम खुद को सुधार ले तो देश सुधरने में वक्त नहीं लगेगा।

  हम अनैतिकता का डटकर विरोध करे यह कदम अति आवश्यक है लेकिन साथ ही साथ
हम सामुहिक रूप से दृढ संकल्प करे कि हम खुद नैतिक और सदाचारी बनेगें।क्या हम
ऐसा करेंगे .... ? या यह प्रतीक्षा करेंगे कि पहले दुसरे लोग ऐसी प्रतिज्ञा करे और उसका पालन
करे ,यदि दुसरे लोग सुधर जायेंगे तो हम भी सुधर जायेंगे। 

  देश के निर्माण के लिए हम ना तो अपराध करे और ना ही अपराध सहें।अच्छे परिणाम के
लिए हमे अपने कर्म अच्छे बनाने पड़ेंगे,यही एक रास्ता है जिस पर देर सवेर चलना पड़ेगा।
                     

3 comments:

Vandana Ramasingh said...

बहुत सही चिंतन

Rajput said...

सार्थक पोस्ट

Dr Om Prakash Pandey said...

sangathan ewam sangharsa ke bina akele charitra nirman paryapt naheen .