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12.2.16

"आतंकवाद" और "राष्ट्रवाद" की वास्तविकता

इमामुद्दीन अलीग

वर्तमान परिस्थितियों में वैश्विक स्तर पर जिन दो शब्दों के नाम पर सबसे अधिक खून खराबा, दंगा फसाद और युद्ध बरपा है वो हैं ''आतंकवाद'' और ''राष्ट्रवाद या देशभक्ति'' इंग्लिश में इन शब्दों का अनुवाद "Terrorism" और "Nationalism" होता है। यह दोनों शब्द दुनिया भर  की विभिन्न भाषाओं में आए दिन सुर्खियों में छाए रहते हैं, सरकारों से लेकर विभिन्न संगठनों और आम जनता तक दुनिया में शायद ही कोई बचा होगा जिसने इन दोनों शब्दों का कभी प्रयोग न किया हो, पर आश्चर्य की बात यह है कि ज्यादातर लोगों को इन शब्दों की कोई ठोस 'परिभाषा' पता नहीं है। वास्तव में अब तक इन दोनों शब्दों की ऐसे कोई ठोस 'परिभाषा' निर्धारित ही नहीं की जा सकी है जो वैश्विक स्तर पर सभी को स्वीकार्य हो। यही कारण है कि वैश्विक स्तर पर इन दोनों शब्दों का सबसे अधिक दुरुपयोग होता रहा है।


कई संगठन और सरकारें अपनी अपनी इच्छा और सुविधानुसार अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए इन शब्दों का इस्तेमाल करती रही हैं। इन दोनों की किसी ठोस 'परिभाषा' के अभाव का मूल कारण यह है कि उनका आविष्कार ही दुनिया को भर्मित करने और जनता को भावनात्मक बना कर अपना उल्लू सीधा करने के लिए किया गया है। इन शब्दों के संबंध में यह भी एक तथ्य है कि इन दोनों का ही निर्माण या आविष्कार एक ही तरह के लोगों ने किया है और वह हैं खुद को '' राष्ट्रवादी '' कहलाने वाले लोग । इन शब्दों की आड़ में पूरी दुनिया में तबाही मचाने वाले भी राष्ट्रवादी लोग ही हैं। तथाकथित 'राष्ट्रवादी' शक्तियां "राष्ट्रवाद" को अपने लिए सुरक्षा कवच और ''आतंकवाद'' को अपने 'विरोधियों' के विरुद्ध एक हथयार के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं। इस बात को कोई नकार नहीं सकता है कि दुनिया भर में जितने भी संगठनों पर "आतंकवाद" का लेबल लगा है उनमें से अधिकांश का पालन पोषण राष्ट्रवादी शक्तियों और सरकारों के संरक्षण में ही हुआ है। उनकी उपयोगिता ख़त्म हो जाने या उनका अपने आकाओं के विरुद्ध सिर उठाने के बाद इन्हीं संगठनों को "आतंकवादी" घोषित करते हुए 'राष्ट्रवादी' सरकारों ने पूरी दुनिया में क़यामत बरपा कर रखा है। इसके अलावा अपने अन्य विरोधियों को भी "आतंकवादी" बताना राष्ट्रवादियों की पुरानी परंपरा रही है। अगर कथित आतंकवादियों द्वारा मचाई गई तबाही की तुलना तथाकथित राष्ट्रवादियों द्वारा मचाई गई तबाही से किया जाए तो उनके मुकाबले में कथित आतंकवादियों का खून खराबा ऊंट के मुंह में जीरा समान मालूम होगा।

वैश्विक स्तर पर "आतंकवाद" की कोई ठोस परिभाषा तो सिरे से ही मौजूद नहीं है, इसी के साथ "राष्ट्रवाद" की भी कोई ऐसी ऐसी परिभाषा मौजूद नहीं है जो सभी के लिए स्वीकार्य हो, लेकिन 'हर हाल' में अपने देश का समर्थन करना ही "राष्ट्रवाद" के प्रचलित अवधारणा और विचारधरा की बुनियाद है और यह हर दौर में "राष्ट्रवाद' के प्रचलित विचारधारा का अटूट भाग रहा है। यानी अपना राष्ट्र/देश चाहे गलत ही पर क्यों न हो, चाहे अन्याय व अत्याचार के रास्ते पर ही क्यों न चल रहा हो, हर हाल में आंखें बंद करके उसका समर्थन करना ही "राष्ट्रवाद" और "देशभक्ति" है। जनता के मन में घर कर चुकी राष्ट्रवाद की इस अवधारणा (Concept) में सही व  गलत और न्याय व अन्याय में भेद के लिए कोई गुंजाइश नहीं है। "राष्ट्रवाद" की यह कल्पना ही अपने आप में ही दहशत और आतंक पैदा करने के लिए पर्याप्त है। यही 'अवधारणा' एक लंबे समय से दुनिया भर में आतंकवाद के स्रोत के तौर पर काम करती रही है। "राष्ट्रवाद" या "देशभक्ति" की इस अमानवीय व अनैतिक विचारधारा के जुनून ने आम इंसानों के दिल व दिमाग से ज़ुल्म व न्याय और गलत व सही में भेद करने के प्राकृतिक स्वाद और क्षमता को खत्म कर दिया है, जिसका भरपूर लाभ अवसरवादी और शोषक शक्तियां उठा रही रही हैं।

दूसरी ओर जनता अपने दिल और दिमाग पर हावी इस जुनून के कारण अपने ही शोषण पर शोक करने के बजाय जश्न मना रही हैं। अब भला कोई न्यायप्रिय व्यक्ति किसी ऐसे "राष्ट्रवाद" को कैसे गंवारा कर सकता है जिस के कारण इंसान  गलत सही में भेद करने की अपनी प्राकृतिक क्षमता और स्वाद गंवाकर हैवान बन जाए।  मोजूदा समय में हर न्यायप्रिय इंसान का यह दायित्व और कर्तव् बनता है कि वह ऐसे "राष्ट्रवाद" और देशभक्ति का विरोध करे और उसके प्रभाव को जनता के दिमाग से खुरचने का प्रयास करे जिसके कारण एक देश का नागरिक खुद को दूसरे देश के नागरिक बेहतर या कमतर समझने लगता है, जिसकी वजह से कोई देश अपने एक या कुछ नागरिकों की जान के बदले दूसरे देश के अनगिनत नागरिकों को मौत के घाट उतार देता है। ऐसे खतरनाक "राष्ट्रवाद" को खारिज करके जनता में सही गलत और न्याय व अत्याचार में फर्क करने की स्वाभाविक और प्राकृतिक स्वाद को फिर से जगाने की जरूरत है। यदि यह प्राकृतिक स्वाद और क्षमता जनता में जाग गयी तो ढकोसलेबाज़ राष्ट्रवादियों को काफी हद तक लगाम लग जाएगी और दुनिया भर के अधिकांश पीड़ित व प्रताड़ित देशों और जनता को बड़ी हद तक आतंक और भय से मुक्ति मिल जाएगी।

राष्टीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर घटित होने वाली घटनाओं और मौजूदा हालात से यह बात सिद्ध होती है कि "राष्ट्रवाद" इस विचारधारा के साथ साथ किसी व्यक्ति के अंदर न्याय अन्याय और गलत सही में भेद करने की क्षमता का बाक़ी रहना बहुत मुश्किल बात है। राष्ट्रवादियों की कथन और कर्म इस बात के सबूत हैं कि "राष्ट्रवाद" और "न्याय" दो अलग  बातें हैं जो एक दुसरे के इतने विपरीत हैं कि एक साथ एक व्यक्त में हो ही नहीं सकते। कोई व्यक्ति शुद्ध "राष्ट्रवादी" होते हुए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय हर मामले में न्याय का पक्षधर हो, असंभव है क्योंकि "राष्ट्रवाद" के लिए यह शर्त अनिवार्य है कि राष्ट्रवादियों को अपनी आँख बंद करके देश का समर्थन करना है, अगर उन्हों अपनी आँखें खोलीं तो उनकी "देशभक्ति" खतरे में पड़ जाएगी। इसीलिए कहा जाता है कि राष्ट्रवाद के समर्थक और "भक्त" जानवरों के झुंड समान होते हैं जो अपने झुंड के साथ गड्ढे में गिर जाएंगे मगर अपनी आँखें नहीं खोलेंगे, कभी यह पता करने का प्रयास नहीं करेंगे कि जिस रास्ते पर वह चल रहे हैं वह रास्ता जाता किधर है।

मौजूदा दौर में "राष्ट्रवाद" की जितनी भी अवधारणाएं विचारधाराएँ प्रचलित हैं वे सब कहीं न कहीं से पृथिवी पर बसने वाली सम्पूर्ण मानव जाति के लिए हानिकारक और खतरनाक हैं।  गलत सही, हक़ नाहक़ और न्याय अन्याय में भेद से परे "राष्ट्रवाद" के इस जुनून की महामारी से दुनिया को छुटकारा दिलाने की सख्त जरूरत है। "राष्ट्रवाद" और "देशभक्ति" के इस खतरनाक भूत को नियंत्रित किए बिना दुनिया आतंकवाद से छुटकारा पा ही नहीं सकती  है क्योंकि दुनिया भर में ज्यादातर भय, आतंक और टेरर का खेल इन्हीं द्वारा खेला जा रहा है। वैसे भी अपने देश से प्रेम करने के लिए "राष्ट्रवाद" जैसे किसी खोखले नारे या किसी विचारधारा की कतई आवश्यकता नहीं है। अपने वतन से प्यार करना तो एक प्राकृतिक भावना है जिसे जिसे प्रकृति ने मनुष्य तो क्या पशुओं और पक्षियों में भी डाल रखा है। एक पक्षी भी दाने की खोज में दिन भर भटकने के बाद खुद से अपने घोंसले में वापस आता है। मौसम के परिवर्तन के कारण दूसरे देश पलायन करने वाले पक्षी भी मौसम के सुखद होते ही अपने वतन को लौट जाते हैं। पक्षियों और जानवरों को अपने वतन से लगाव का यह आलम है कि वे अपने घोंसलों की रक्षा के लिए खुद से कई गुना शक्तिशाली जीव से भी टकरा जाते हैं। जानवरों और पक्षियों में वतन से लगाव की यह स्वाभाविक भावना "राष्ट्रवाद या देशभक्ति" के नारे या विचारधरा की बदौलत नहीं उत्पन्न होती, यह भावना ऊपर वाले द्वारा बनाए गए ऑटोमेटिक सिस्टम के तहत ही हर प्राणी के अंदर पैदा हो जाती है।

Thanks and Regards
Imamuddin
jamia nagar, bagla house, new delhi
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