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23.11.16

जौनपुर के निकम्मे और घूसखोर ARTO की कारस्तानी-कहानी

जौनपुर के निकम्मे और लापरवाह ARTO ऑफिस की करतूतों से आम जनमानस को वाकिफ कराना जरूरी हो गया है। जिला प्रशाशन कुम्भकर्णी निद्रा से नहीं जागा। अभी तक हमें हमारा ड्राइविंग लाइसेंस नहीं मिल सका है। जिलाधिकारी से फोन पर बात करने पर उनके द्वारा आश्वाशन मिलने के बाद आज बीसवीं बार ARTO दफ्तर गया। जहाँ से बेरंग लौटना पड़ा। दोपहर 12:30 तक ARTO और उनके रसूखदार बाबू दोनों दफ्तर में नही आये थे।


इस सम्बन्ध में जब जिलाधिकारी महोदय को वहॉं से फोन करके सूचना देनी चाही तो फोन ही नही उठा. कितना जिम्मेदार है जौनपुर के आला अधिकारी यह एक ड्राइविंग लाइसेंस के लिए करीब 2 साल से दफ्तर का 20 बार चक्कर लगाने से ही स्पष्ट हो जाता है।

आखिर 2012 में बने लाइसेंस को 01/04/2015 को कम्प्यूटरीकृत करवाने के लिए समस्त प्रक्रियाओं को पूर्ण करते हुए 200 की रसीद कटवाने के बाद भी आजतक हमे हमारा लाइसेंस क्यों नही दिया जा रहा है ?  5 बार मेरा चालान हो चूका है आखिर कबतक इन निकम्मों की वजह से हमे बेवजह चालान भरना  पड़ेगा ??

चापलूसी और चाटुकारिता में ही आसानी से दुनिया का हर कार्य संभव : अजय पाण्डेय

जौनपुर : चापलूसी और चाटुकारिता इंसान के अंदर की वह अद्भुद कला होती है जिसके आगे इस कलयुगी दुनियां मे कोई भी मुकाम हासिल करना हो, सबकुछ हासिल कर पाना अत्यधिक आसान हो जाता है। समाज में जिस व्यक्ति को चापलूसी की कला में महारथ हासिल नही होता है या जो इससे कोसो दूर होता है वह दर दर ठोकरे खाता दिखता फिरता है।

मित्रों, हम भी चापलूसी और चाटुकारिता जैसे गुणों से संपन्न लोगो से बहुत चिढ़ रखते है क्योंकि मेरी नज़र में ऐसा करना ठीक नही है।

लेकिन आज देश का सिस्टम ऐसा हो गया है कि एक चपरासी से लेकर उच्चपदासीन अधिकारी सभी सिर्फ उसी को तबज्जो देते है जो अच्छे तरीके से उनकी चापलूसी कर लेता है। उनकी तारीफ में उनकी नाकामी को काबिलियत कहकर उनके कारनामे के आगे सूरज- चाँद को भी फीका कर देता है। उसी का काम होता है।

क्या आपने सोचा है आखिर ऐसा होता क्यों है? सिर्फ इसलिए ताकि चापलूसी और चरणचांपन करके व्यक्ति आसानी पूर्वक अपने इच्छित कार्यो को अधिकारियो/लोगो से करवा सके । उसका हमेशा कृपा पात्र बना रहे ।

उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले का प्रशासनिक सिस्टम इसवक्त सिर्फ और सिर्फ चरणचांपन,चापलूसी और चाटुकारिता की बदौलत चल रहा है। यहां चपरासी से लेकर अधिकारी तक सब तभी संजीदा होकर लोगो का काम करते है जब उनकी आवभगत में लोग अपार तारीफ़े और जी-हुजूरी  करते है। उनके चरणों में जाकर साष्टांग करते है।

इस जिले में आपको कोई भी काम करवाना हो तो आप सम्बंधित दफ्तर जाने से पहले अपनी जेब में माल रखकर जाइये, पहुँचते ही अपना सर बाबुओं और अधिकारियो के चरणों में समर्पित करके सर्वप्रथम उनका कृपापात्र बनिए, फिर अपना काम बताइये और लक्ष्मी जी को देकर पूर्ण रूप से महोदय को अपने मन माफित कीजिये, फिर आपको आपका लक्ष्य आसानी से हासिल हो जायेगा।

अन्यथा आप एक मामूली से काम के लिए बीसो बार दफ्तर का चक्कर काट डालेंगे फिर भी आपका काम नही होगा, आप बहुत करेंगे डीएम से शिकायत करेंगे न तो कर लीजिए, कुछ भी नही होने वाला है ।
यहां पर हर जगह से आपको जिले के जिम्मेदार अधिकारी भी चवन्नी वाला चूरन देकर बेवकूफ बनाते फिरेंगे।

अब आप अगर बेहद परेशांन होकर अपनी पीड़ा जिलाधिकारी से कहना चाहेंगे तो आप ज्यो ही डीएम को फोन करेंगे तो जल्दी तो फोन भी नही उठेगा, और उठेगा भी तो ऐसा जवाब मिलेगा की पैरो के नीचे की जमीन खिसक जायेगी। साथ ही आपको झूठे आश्वाशन का अंबार भी मिलेगा । जब आप उनके आदेशानुसार अगले दिन दफ्तर जायेंगे तो एकदम खाटी बेवकूफ बनकर वापस घर लौटेंगे। हाँ  जिलाधिकारी महोदय का फोन कौन अटेंड कर रहा है यह बात भी अहम है। जो भी है फ़िलहाल वह जिम्मेदार ब्यक्ति ही होगा।

अब अगले दिन की बात करते है जब आप पुनः सम्बन्धित  दफ्तर जाते है तो आपकी उम्मीदों में पलीता लगाने भी उसदिन भी कोई कोर कसर नही छोड़ी जाती है। दफ्तर का बाबू और जिले स्तर का अधिकारी दोनों दोपहर 12:30 बजे तक नदारत मिलते है।

आप सोचेंगे कि अब इसकी शिकायत आखिर किससे करे ?  तो परेशान न होइये आप पुनः डीएम साहब से कहना चाहेंगे न तो कोई बात नही फोन उठाईये कहकर देख लीजिए कुछ नही होगा मेरा दावा है। आप 1 नही कई बार फोन ट्राई करेंगे लेकिन  कर लीजिए फोन लगेगा ही नही। लगा तो उठेगा ही नही।

बड़ी हंसी आती है आखिर सीयूजी को खिलौने की तरह लेकर  ऐसे जिम्मेदार लोग क्यों घूमते है?  जब उनके पास उसपर आने वाली कॉल्स को अटेंड करने का वक्त ही नही है तो बेवजह बोझ लेकर घूमने का क्या औचित्य बनता है?

फिलहाल अब आप सब इस सच्चाई को स्वीकार कीजिए और अब सुधार लाइए अपने अंदर और अभी से जुट जाइये संवेदनहीन नौकरशाहों के चरण चांपन में। तभी सब कुछ हो पाना सम्भव होगा अन्यथा मेरी तरह आप  परेशान होते रहेंगे संवेदनहीन अधिकारियो के कानों में जूँ तक नही रेंगेंगी ।

एक सच्चाई और सुनिये, जौनपुर ARTO ऑफिस जिले का ऐसा ऑफिस है जिसके आगे जिलाधिकारी महोदय भी लाचार होकर चुप्पी साध लेते है। जिलाधिकारी जी को आप 1 नही 1 हज़ार ट्वीट कीजिये कुछ नही होने वाला है, आप फोन से शिकायत करना चाहेंगे न तो फोन ही नही उठेगा जिलाधिकारी महोदय का !

👉2012 में बने हुए ड्राइविंग लाइसेंस को कम्प्यूटरीकृत करवाने में लगभग 2 साल का समय लग जाता है ? 1 दिन का काम 1 साल से ज्यादा बीतने के बाद भी क्यों नही हो रहा है?

👉आखिर वह कौन सी डाक है जो 01/04/2015 को निर्गत हुए लाइसेंस को गंतव्य तक नही पहुंचा पा रही है।

👉आखिर जौनपुर  ARTO प्रशासन के निक्कमेपन की वजह से यदि लाइसेंस रहने के बावजूद न मिलने के कारण  5 बार यदि व्यक्ति का चालान हो तो क्या यह जायज है ?

इन सवालों का जवाब जौनपुर के किसी भी अधिकारी के पास नही है।

इन सबसे तो यही साबित होता है अखिलेश सरकार के हाईटेक होने के सारे दावे सिर्फ खोखले है। जब उनके नौकरशाह ही मनमानी कर रहे है, तो अब जनता आखिर अपनी पीड़ा किसे सुनाये ? कौन करेगा जनता की समस्या का समाधान ? है किसी अधिकारी में हिम्मत आरटीओ के निकम्मेपन और लापरवाही के खिलाफ कुछ बोलने और करने की ? नही ......कोई इसकी जुर्रत भी नही कर सकता मैंने देखा लिया 2 सालो में।

ऐसे भ्रष्ट सिस्टम से आस लगाना भी बेवकूफी है। इसलिए अब चापलूसी, चाटुकारिता और चरण चांपन की अचूक विधि अपनाइये और अपने हर काम को आसानी पूर्वक करवाइये ।

करप्सन को और बढ़ाइये, अधिकारियो और बाबुओं की जेबें  बेहिचक गरम कीजिये, तभी व्यक्तिगत जीवन में लाभ सम्भव है। वरना दर दर ठोकरे खाते फिरेंगे जिले का कोई भी नुमाइंदा आपकी बात नही सुनेगा ।

हाँ लाइसेंस बने होने के बावजूद भी अब बिना लाइसेंस के ही चलूँगा । क्योंकि जौनपुर का #निकम्मा_ARTO_प्रसाशन  डेढ़ साल बीतने के बाद भी हमे हमारा लाइसेंस दे ही नही रहा है । अब जिसको भी चालान करना हो मिले हमसे सादर आमंत्रित करता हूँ ।

- अजय पांडेय
शाहगंज, जौनपुर
9453-86-6464
9454-86-6464

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