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5.11.16

नौ नवंबर लोकतंत्र के लिए काला दिन

एनडीटीवी पर प्रसारण मंत्रालय द्वारा लगाई गयी रोक को लेकर मीडिया जगत में आक्रोश है कई मीडिया घराने सरकार के इस कदम को  अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला बताते हुए इसे आपातकाल की शुरूआत बता रहें है. मीडिया के लोगों का मानना है कि  यदि सरकार के इरादों पर  मीडिया  सवाल उठायेंगी तो क्या सरकार द्वारा मीडिया को इस तरह प्रतिबंधित कर दिया जाएगा? इस बहस ने  तत्कालीन प्रधानंमत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा भारत में 1975 में लगाया गए आपातकाल की यादें ताज़ा कर दी हैं, ‘आपातकाल’  भारत के लोकतांत्रिक इतिहास की सबसे बड़ी घटना के रूप में देखा गया है नयी पीढ़ी आपातकाल के बारे में सुनती जरूर है लेकिन उस दौर में घटित क्या - क्या हुआ, आपातकाल का  देश और तब की राजनीति पर असर क्या हुआ इसके बारे में कम ही पता है। इसी तरह भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने भी केंद्र में सरकार के गठन के कुछ महीने बाद ही देश में आपातकाल जैसी स्थित बनने की आशंका जताकर तीखी बहस छेड़ दी थी ठीक उसी तरह फिर से यह बहस मीडिया जगत की इस हलचल से ताज़ा हो चली है!


बताया जाता है की  अब से चालीस वर्ष पूर्व 25-26 जून1975 की रात  से 21 मार्च 1977 तक देश में आपातकाल घोषित हुआ था उस समय  राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी थी जिसे   स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक समय माना  गया बताया यह जाता है की इसकी जड़ में 1971 में हुए लोकसभा का चुनाव ही मुख्य वज़ह था, कमोवेश वही स्थित वर्तमान में यहाँ भी है.देश के कई  राज्यों में  चुनाव होने जा रहे हैं उसमे देश का सबसे बड़ा सूबा उत्तर प्रदेश भी शामिल है कहा जाता है की देश की शीर्ष सत्ता का रास्ता इसी सूबे से होकर निकलता है ऐसे में सत्ता में बैठे लोग न केवल सरकारी मशीनरी को ही अपने तरीके से प्रयोग करने का कुचक्र रच रहे हैं बल्कि सत्ता की हनक में  किये और कराये जा रहे कृत्यों पर सवाल उठा रहे मीडिया को भी रौब में लेने का प्रयास कर रहें हैं इसी कड़ी में आगामी 9 नवम्बर को एनडीटीवी के प्रसारण को रोक भी दिया गया है !

हालांकि एनडीटीवी इस मामले को गंभीरता से लेते हुए सरकार के इस निर्णय पर संबैधानिक रास्ते क्या हो सकते हैं इसके मंथन में जुट गया है इधर देश के विभिन्न हिस्सों  में मीडिया द्वारा सरकार के इस निर्णय का विरोध भी हो रहा है मीडिया के लोगों का मानना है की सवाल मीडिया द्वारा नहीं उठाये जायेंगें तो फिर कौन उठाएगा ?...अगर सवालों के बिना पर मीडिया पर शिकंजा कसा जाएगा तो आपात काल की यादें ताज़ा होना स्वाभाविक है हिंदी समाचार चैनल ‘एनडीटीवी इंडिया’ को एक दिन के लिए ऑफ एयर करने के फैसले की राजधानी लखनऊ में भी विभिन्न पत्रकार संघठनो व पत्रकारों ने निंदा की है जनजागरण मीडिया मंच के प्रमुख रिजवान चंचल मंच के सचिव आर के पाण्डेय ने एनडीटीवी के प्रसारण पर लगाये गए रोक के आदेश को तत्काल निरस्त किये जाने की मांग सरकार से की है लोहिया नामा के संपादक नवेद शिकोह ने कहा की अगर सरकार के इस फैसले का पत्रकार संगठनो ने विरोध करने में कोताही की तो आज एनडीटीवी के प्रसारण पर रोक लगी है कल दूसरे की बारी है यह ध्यान रहना चाहिए ! वरिष्ठ साहित्यकार पत्रकार हरि पाल सिंह ने भी सरकार के इस फैसले की  कटु आलोचना की है, एडीटर्स गिल्ड ने भी कड़ी आलोचना करते हुए इस फैसले को प्रेस की आजादी का सीधा उल्लंघन करार देते हुए तत्काल इस आदेश को रद किये जाने की  मांग की है।

ज्ञात हो की सूचना और प्रसारण मंत्रालय की ओर से गठित अंतर मंत्रालयी समिति ने जनवरी में वायुसेना के पठानकोट बेस पर आतंकी हमले के दौरान पाया की एनडीटीवी इंडिया ने अत्यंत महत्वपूर्ण और रणनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील जानकारी उजागर कर दी थी जिसके चलते सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने नौ नवंबर को रात 12 बजेसे10 नवंबर रात 12 बजे तक एनडीटीवी इंडिया का प्रसारण बंद करने का आदेश दिया है इस तरह के आदेश से तो ऐसा लगता है कि जैसे सरकार ने खुद को मीडिया की कार्यप्रणाली में हस्तक्षेप करने व  कवरेज से सहमत न होने पर मनमानी दंडात्मक कार्यवाही करने की सारी शक्ति अपने हांथों में ले  ली है  जबकि किसी भी गैरजिम्मेदार मीडिया कवरेज के खिलाफ कार्रवाई के लिए कोई भी नागरिक और सरकार अदालत जाकर कानूनी मदद हासिल कर सकता  है  बिना न्यायिक हस्तक्षेप या परीक्षण के प्रतिबंध लागू करना आजादी और न्याय के मूलभूत सिद्धांत का उल्लंघन है । ब्रॉडकास्ट एडीटर्स एसोसिएशन (बीईए) ने भी इसी तरह की प्रतिक्रिया दी है आतंकी हमले की कवरेज को लेकर किसी टीवी चैनल के खिलाफ पहली बार ऐसा आदेश दिया गया है जब की सरकार की ओर से दिए गए कारण बताओ नोटिस के जवाब में एनडीटीवी ने स्पष्ट कहा है कि उसकी कवरेज संयमित थी और उसमें ऐसी कोई सूचना नहीं थी जो सार्वजनिक नहीं थी और जिसे बाकी मीडिया ने कवर न किया हो एनडीटीवी इंडिया पर एक दिन का प्रतिबंध लगाने की विपक्षी दलों ने भी कड़ी निंदा की है दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने तो सभी अखबारों और चैनलों को अपना विरोध दर्ज कराने के लिए उस दिन साहस दिखाने और प्रकाशन और प्रसारण नहीं करने का सुझाव दिया है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी इसकी कड़ी आलोचना की है, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कहना है, यह फैसला दिखाता है कि देश में आपातकाल जैसे हालात हैं कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने फैसले की निंदा करते हुए इसे चौंकाने वाला और अभूतपूर्व करार दिया। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए पूछा है कि क्या इन्हीं अच्छे दिनों का वादा किया गया था बीजू जनता दल के नेता तथागत सतपथी ने कहा, अभिव्यक्ति की आजादी की मौत, लोकतंत्र की मौत है। खुद ओडिशा के दो प्रमुख समाचार पत्रों के संपादक सतपथी ने कहा, मुझे लगता है कि सत्ता में शामिल लोग बेहद उन्मादी हो गए हैं। कोई भी प्रशासन उन्माद की अवस्था में समभाव के साथ काम नहीं कर सकता मीडिया पर इस तरह की रोक के चलते यदि ये कहा जाये की  नौ नवंबर लोकतंत्र के लिए काला दिन है तो गलत न होगा ।

रिजवान चंचल
redfile.news@gmail.com

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