अजय कुमार, लखनऊ
25 वर्षों तक मुलायम सिंह यादव की सरपस्ती में जो ‘समाजवादी कुनबा’ समाजवादी पार्टी की ताकत बना रहा, वह अब पार्टी की कमजोरी बन गया है। इसका खामियाजा सपा को अगले वर्ष होने वाले विधान सभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। आज की तारीख में 2017 के विधान सभा चुनाव की तैयारी में जुटी सपा अगर बैकफुट पर नजर आ रही हैं तो इसकी मुख्य वजह सत्ता विरोधी लहर से अधिक परिवार का अंतर्कलह है। आश्चर्य तो इस बात का भी है कि सपा में बड़े से बड़ा और छोटे से छोटा नेता भी मुलायम सिंह का हर आदेश मानने की सौगंध खाते मिल जायेगा, लेकिन मुलायम की सियासत और बातों में अब वजन नहीं दिखाई पड़ता है।चचा शिवपाल और भतीजे अखिलेश के मनमुटाव ने पार्टी को तार-तार कर दिया है। इसी के चलते अखिलेश के पक्ष में खड़े रहने वाले और सपा के बड़े रणनीतिकार माने जाने वाले प्रोफेसर रामगोपाल यादव सहित तमाम सपा नेताओं को शिवपाल यादव ने बाहर का रास्ता दिखा दिया तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने चचा शिवपाल और उनके करीबी मंत्रियों को अपने मंत्रिमंडल से बर्खास्त करके पारिवारिक जंग को और हवा देने का काम किया।
यहां तक की लखनऊ में हुए दो बड़े आयोजनों तीन नवंबर को शुरू हुई अखिलेश की समाजवादी विकास रथ यात्रा और 05 नवंबर को समाजवादी पार्टी का रजत जयंती समारोह भी इससे अछूता नहीं रह पाया। दोंनो ही जगह चाचा-भतीजे और उनके समर्थक एक-दूसरे पर तंज कसते नजर आये। शिवपाल यादव सवाल खड़ा कर रहे थे ‘उनसे कितना त्याग लिया जायेगा’ शिवपाल ने जैसे ही अखिलेश को यूपी का लोकप्रिय मुख्यमंत्री कहा, पंडाल में युवाओं की नारेबाजे शुरू हो गई। शिवपाल ने गुस्से में कहा, मुझे मुख्यमंत्री नही बनना, कभी नहीं बनना। चाहे मेरा जितना अपमान कर लेना। बर्खास्त कर लेना। खून माँगेंगे तो दूँगा। इसके थोड़ी देर बाद भाषण देने आये मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी पूरे रौ में दिखे। अखिलेश ने अपने संबोधन में कहा,‘ किसी को परीक्षा लेनी है तो मैं देने के लिए तैयार हूं। उन्होंने भ्रष्टाचार के आरोपी एक मंत्री पर तंज कसते हुए कहा कि तलवार तो देते हो पर उसे चलाने का अधिकार नहीं देते। वहीं डा0 राममनोहर लोहिया का उद्वरण देते हुआ कहा,‘ कुछ लोग सुनेंगे जरूर पर समाजवादी पार्टी का सब बिगड़ने के बाद। इस मौके पर अखिलेश ने रजत जयंती समारोह स्थल जनेश्वर मिश्र पार्क नहीं भरने पर चचा शिवपाल यादव पर तंज भी कसा। हद तो तब हो गई जब शिवपाल यादव ने एक सपा नेता आब्दी को उसका भाषण इस लिये नहीं पूरा करने दिया क्योंकि वह अखिलेश की तारीफ कर रहा था। शिवपाल ने आब्दी को माइक के सामने से धक्का देकर हटा दिया। इस बीच लालू यादव ने बढ़-चढ़कर और अन्य नेताओं ने संयमित लहजे में चचा-भतीजे के बीच की दूरियां कम करने का प्रयास किया,लेकिन ऐसा होता नहीं दिखा। हॉ, एक जज्बा मंच पर सभी नेताओं के भाषण में दिखा,वह था साम्प्रदायिक शक्तियों के खिलाफ एकजुट होने का। अंत में मुलायम सिंह भी बोले लेकिन वह अतीत की यादों में ही डूबे रहे। हॉ,उन्होंने जमीनों पर कब्जा करने वाले सपा नेताओं की जरूर क्लास लगाई। बात महागठबंधन की भी चली,लेकिन यह कैसे खड़ा हो सकता है,इसका खाका किसी के पास नहीं था।
बहरहाल, बात मुलायम के समाजवादी कुनबे में सिरफुटव्वल की कि जाये तो समाजवादी पार्टी में परिवार के बीच भीतर घिरे संग्राम ने भारतीय राजनीति में परिवारवाद के मुद्दे को एक बार फिर से ताजा कर दिया है। ऐसा नहीं है कि भारतीय राजनीति में परिवारवाद का बोलबाला सपा तक ही सीमित रहा है। शायद ही कोई राजनैतिक दल ऐसी हो, जिसमें परिवारवाद और वंशवाद की बेल दिखाई नहीं पड़ती हो। कांग्रेस से लेकर तमाम क्षेत्रीय दलों में परिवारवाद की जड़ें काफी मजबूत हैं। काडर आधारित कम्युनिस्ट पार्टियों और भाजपा में परिवारवाद भले न दिखाई पड़े, पर दक्षिण की क्षेत्रीय पार्टियां हों या उत्तर भारत के अनेकानेक दल, सभी में परिवारवाद और वंशवाद मजबूत दिखाई देता है। परिवारवाद को लोकतंत्र के लिए कभी अच्छा नहीं समझा गया, लेकिन तथ्य यह है कि कांग्रेस में इस प्रवृत्ति की शुरुआत हुई और धीरे-धीरे यह संक्रामक की तरफ फैलती गई। कांग्रेस की आज जो भी पहचान है वह नेहरू-गांधी परिवार तक सीमित होकर रह गई है। प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी, संजय गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, मेनका गांधी के बाद आजकल राहुल गांधी, वरूण गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा सियासत में जमंे हुए हैं। यह और बात है कि मेनका गांधी और वरूण गांधी इस समय बीजेपी से जुड़े हुए हैं। मेनका केन्द्र में मंत्री हैं तो वरूण गांधी सांसद हैं।
कांग्रेस के अलावा यह प्रवृत्ति सबसे अधिक समाजवादी कहे जाने वाले नेताओं और पार्टियों में भी दिखलाई पड़ती है। बिहार का लालू यादव, यूपी का मुलायम सिंह, कश्मीर का अब्दुल्ला परिवार हो या फिर बिहार के ही रामविलास पासवान,सब के सब राजनीति में परिवारवाद और वंशवाद को आगे बढ़ाने के मोह से बच नहीं पाए। बात सपा की ही कि जाये तो यह बात बिल्कुल साफ है कि देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी में परिवारवाद काफी मजबूत होकर उभरा है। आज समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष पद पर मुलायम सिंह यादव, प्रदेश अध्यक्ष के पद पर उनके भाई शिवपाल यादव विराजमान हैं तो मुलायम के पुत्र अखिलेश यादव यूपी के सीएम हैं। अब तो मुलायम के परिवार की तीसरी पीढ़ी का भी अब राजनीति में पदार्पण हो चुका है। मुलायम परिवार की महिलाएं भी राजनीति में आगे बढ़ रही हैं। वर्तमान में मुलायम सिंह के परिवार के 20 सदस्यों का सक्रिय राजनीति में होना इस बात का प्रमाण है। बीस सदस्यों के साथ मुलायम का कुटुंब किसी भी पार्टी में सबसे बड़े राजनीतिक परिवार के होने का दावा कर सकता है। कुछ समय पूर्व हुए जिला पंचायत चुनाव में सपा सुप्रीमो परिवार के दो सदस्यों की राजनीतिक एंट्री से मुलायम का परिवार सबसे बड़ा सियासी कुनबा बन गया। संध्या यादव को मैनपुरी से जबकि अंशुल यादव को इटावा से निर्विरोध जिला पंचायत अध्यक्ष चुना गया है. बता दें कि संध्या यादव सांसद धर्मेंद्र यादव की बहन हैं, जबकि अंशुल यादव, राजपाल और प्रेमलता यादव के बेटे हैं।
मुलायम सिंह यादव समाजवादी पार्टी के अगुआ और पार्टी संस्थापक हैं। मुलायम के अलावा उनके अनुज शिवपाल यादव, रामगोपाल सिंह यादव, (अब सपा से निष्कासित) बेटा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, बहू डिंपल यादव, भतीजा, धर्मेंद्र यादव, अक्षय यादव, पोता तेज प्रताप यादव, मुलायम सिंह के छोटे भाई राजपाल यादव की पत्नी प्रेमलता यादव, सपा के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव की पत्नी सरला यादव, शिवपाल यादव के बेटे आदित्य अंशुल यादव, (राजपाल और प्रेमलता यादव के बेटे), सपा सुप्रीमो की भतीजी और सांसद धर्मेंद्र यादव की बहन संध्या यादव सियासी चोला ओढ़ चुके हैं।आज प्रोफेसर रामगोपाल भले ही सपा से बाहर हों, लेकिन उनकी आज जो भी पहचान है, उसके पीछे मुलायम सिंह का ही चेहरा है। मुलायम अपने परिवार के अलावा, चचेरे भाई प्रोफेसर रामगोपाल यादव के परिवार को भी पूरा संरक्षण देते रहे हैं। इसी क्रम में मुलायम की चचेरी बहन और रामगोपाल यादव की सगी बहन 72 वर्षीया गीता देवी के बेटे अरविंद यादव ने 2006 में सक्रिय राजनीति में कदम रखा। शीला यादव मुलायम के कुनबे की पहली बेटी थी जिन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। शीला यादव जिला विकास परिषद की सदस्य निर्वाचित हुई हैं, साथ ही बहनोई अजंत सिंह यादव बीडीसी सदस्य चुन गए हैं। समाजवादी परिवार के कुछ चर्चित चेहरोे की सियासी हैसियत।
मुलायम सिंह यादव
समाजवादी चिंतक और नेता डा. राममनोहर लोहिया हमेशा परिवारवाद की मुखालफत की लेकिन उन्ही के चेले मुलायम सिंह ने इसे खूब आगे बढ़ाया। पेशे से शिक्षक रहे मुलायम सिंह यादव का जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के सैफई में 22 नवम्बर, 1939 को हुआ था। इनके पिता का नाम सुघर सिंह और माता का नाम मूर्ति देवी है। पांच भाइयों में तीसरे नंबर के मुलायम सिंह के दो विवाह हुए हैं। पहली शादी मालती देवी के साथ हुई। उनके निधन के पश्चात उन्होंने सुमन गुप्ता से विवाह किया। अखिलेश यादव मालती देवी के पुत्र हैं, जबकि मुलायम सिंह यादव के छोटे बेटे प्रतीक यादव को उनकी दूसरी पत्नी सुमन ने जन्म दिया है।
वर्ष 1954 में पंद्रह साल की किशोरावस्था में ही मुलायम के राजनीतिक तेवर उस वक्त देखने को मिले, जब उन्होंने डॉ. राम मनोहर लोहिया के आह्वान पर ‘नहर रेट आंदोलन’ में भाग लिया और पहली बार जेल गए। डॉ. लोहिया ने फर्रुखाबाद में बढ़े हुए नहर रेट के विरुद्ध आंदोलन किया था और जनता से बढ़े हुए टैक्स न चुकाने की अपील की थी। इस आंदोलन में हजारों सत्याग्रही गिरफ्तार हुए। इनमें मुलायम सिंह यादव भी शामिल थे। इसके बाद वे 28 वर्ष की आयु में 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर पहली बार जसवंत नगर क्षेत्र से विधानसभा सदस्य चुने गये। इसके बाद तो वे 1974, 77, 1985, 89, 1991, 93, 96 और 2004 और 2007 में उत्तर प्रदेश विधानसभा सदस्य चुने गए। इस बीच वे 1982 से 1985 तक उत्तर प्रदेश विधान परिषद् के सदस्य और नेता विरोधी दल रहे। पहली बार 1977-78 में राम नरेश यादव और बनारसी दास के मुख्यमंत्रित्व काल में सहकारिता एवं पशुपालन मंत्री बनाए गए। इसके बाद से ही वे करीबी लोगों के बीच मंत्री जी के नाम से जाने जाने लगे। मुलायम सिंह यादव पहली बार 5 दिसंबर, 1989 को 53 वर्ष की उम्र में भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। लेकिन बीजेपी की रामजन्मभूमि यात्रा के दौरान उनके और भारतीय जनता पार्टी के संबंधों में दरार पैदा हो गई। इसका कारण था मुलायम सिंह यादव द्वारा आडवाणी की इस यात्रा को सांप्रदायिक करार दिया जाना और इसे अयोध्या नहीं पहुंचने देने की जिद पर अड़ जाना। 2 नवंबर, 1990 को अयोध्या में बेकाबू हो गए कारसेवकों पर यूपी पुलिस को गोली चलने का आदेश देकर मुलायम विवादों में आ गए। इस फायरिंग में कई कारसेवक मारे गए थे। इसके बाद मुलायम को मुल्ला मुलायम भी लोग कहने लगे।
मुलायम सिंह यादव 1989 से 1991 तक, 1993 से 1995 तक और साल 2003 से 2007 तक तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे चुके हैं। वर्ष 2013 में एक बार फिर जब उनके मुख्यमंत्री बनने का मौका आया तो उन्होंने अपने बेटे अखिलेश यादव के हाथों में उत्तर प्रदेश की कमान सौंप दी और स्वयं दिल्ली की सियासत में जुट गये। वैसे, मुलायम 1996 से ही केंद्र की राजनीति में सक्रिय हो गए थे और उन्होंने अपनी महत्ता भी अन्य राजनैतिक पार्टियों को समझा दी थी। मुलायम सिंह यादव 1996, 1998, 1999, 2004 और 2009 में लोकसभा के सदस्य चुने गया।
मुलायम ने समाजवाद के साथ जो शुरुआत की, वह आगे चलकर परिवारवाद को बढ़ावा देने का कारण बना। मुलायम के इस सहकारिता आंदोलन के चलते उनके सबसे छोटे भाई शिवपाल को राजनीति में आने का रास्ता मिला। सहकारी क्षेत्र में अपनी पैठ बनाते हुए 1988 में शिवपाल पहली बार इटावा के जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष चुने गए। 13 वर्षों तक सहकारी बैंक का अध्यक्ष रहने के बाद 1991 में दो वर्षों के लिए यह पद शिवपाल से दूर रहा और वह दोबारा 1993 में सहकारी बैंक के अध्यक्ष बने। शिवपाल पिछले 20 वर्षों से इस पद पर बने हुए हैं। शिवपाल की पत्नी सरला भी 2013 में जिला सहकारी बैंक की राज्य प्रतिनिधि के रूप में लगातार दूसरी बार चुनी गई हैं। यही नहीं शिवपाल के बेटे आदित्य यादव उर्फ अंकुर को भी उत्तर प्रदेश प्रादेशिक को-ऑपरेटिव फेडरेशन का निर्विरोध अध्यक्ष चुना गया है। मुलायम सिंह यादव ने 5 नवम्बर, 1992 को लखनऊ में अपना अलग दल बनाते हुए समाजवादी पार्टी की स्थापना की थी। भारत के राजनैतिक इतिहास में यह एक महत्वपूर्ण अध्याय था, क्योंकि लगभग डेढ़-दो दशकों से हाशिये पर जा चुके समाजवादी आंदोलन को मुलायम ने पुनर्जीवित किया था। इसके अगले वर्ष ही 1993 में हुए विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी का गठबंधन बीएसपी से हुआ। इससे पूर्व मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश लोकदल और उत्तर प्रदेश जनता दल के अध्यक्ष भी रहे। मुलायम सिंह यादव 1996 से 1998 तक एचडी देवेगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल की सरकारों में भारत के रक्षामंत्री के पद पर भी रहे। समाजवादी पार्टी की बुनियाद रखने वाले राममनोहर लोहिया और बाबू जय प्रकाश नारायण की वास्ताविक विचार धारा को जिन्दा रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले देश के पूर्व रक्षा मंत्री और वर्तमान में समाजवादी पार्टी के मुखिया, मुलायम यादव के जमाने मेें अच्छे पहलवान हुआ करते थे। अखाड़े में अपने से दुगुने कद के लोगों को धोबी पाट दांव लगाकर चित कर दिया करते थे और वे कई दंगल के विजेता है।
अखिलेश यादव
मुलायम सिंह के पुत्र अखिलेश यादव 15 मार्च, 2012 को उत्तर प्रदेश के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बने,लेकिन उनके मंत्रिमंडल में उन नेताओं की संख्या ज्यादा थी जो या तो पूर्व में मुलायम सरकार में मंत्री रह चुके थे या मुलायम के करीबी थे। इसी वजह से अखिलेश कभी खुल कर सरकार नहीं चला पाये। उनकी सरकार पर साढ़े चार मुख्यमंत्री का ठप्पा तो लगा ही चचा टाइप नेताओं की वजह से उन्हें कई बार यूटर्न भी लेना पड़ता था। इस सियासत को समझने में खुद अखिलेश नाकाम रहे। नतीजा आज प्रदेश में हो रही उथल-पुथल के रूप में सामने है। अखिलेश यादव का जन्म एक जुलाई, 1973 को इटावा जिले के सैफई में हुआ था। मां मालती देवी का बचपन में ही देहांत हो गया था। अखिलेश ने प्राथमिक शिक्षा इटावा के सेंट मेरी स्कूल में पूरी की। आगे की पढाई के लिए उन्हें राजस्थान में धौलपुर स्थित सैनिक स्कूल भेजा गया। वहां से 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद अखिलेश ने मैसूर के एसजे कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग की डिग्री ली। इसके बाद वे एनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग में मास्टर्स करने ऑस्ट्रेलिया चले गए। सिडनी यूनिवर्सिटी से पढ़ाई खत्म करने के बाद अखिलेश वापस आकर अपने पिता मुलायम सिंह यादव के साथ राजनीति में जुड़ गये। अखिलेश की शादी डिंपल यादव से 24 नवम्बर, 1999 को हुई। आज उनके तीन बच्चे अदिति, अर्जुन और टीना हैं। इनमें अर्जुन और टीना जुड़वां भाई-बहन हैं।
डिंपल यादवः
यूपी के सीम अखिलेश यादव की पत्नी और कन्नौज से देश की पहली निर्विरोध सांसद डिंपल यादव किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं।वह हमेशा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते दिख जाती हैं।
अर्पणा यादवः
मुलायम सिंह की छोटी बहू अर्पणा यादव भी राजनीति में सक्रिय हो गई हैं। 2017 का विधान सभा चुनाव वह लखनऊ की कैंट विधान सभा सीट से लड़ने जा रही हैं।
रामगोपाल यादव
प्रो. रामगोपाल यादव समाजवादी पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई हैं। पेशे से अध्यापक रहे श्री यादव वर्तमान में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के सांसद हैं। सपा के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल को पिछले दिनों नेताजी के खिलाफ कथित टिप्पणी करने को और अखिलेश का समर्थन करने के चलते पार्टी से बाहर किया जा चुका है। प्रोफेसर साहब के नाम से चर्चित रामगोपाल सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के थिंक टैंक भी कहे जाते थे। यादव परिवार में सबसे पढ़े-लिखे केवल प्रो. रामगोपाल यादव ही हैं। वह परिवार में अंतर्कलह से पूर्व तक पार्टी में मजबूत हैसियत रखते हैं। प्रोफेसर को भीं राजनीति में लाने का श्रेय बड़े भाई मुलायम सिंह यादव को जाता है। रामगोपाल यादव ने अपने भाई शिवपाल यादव के साथ 1988 में राजनीति में कदम रखा। वह इटावा के बसरेहर ब्लॉक प्रमुख का चुनाव जीते। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। प्रो. रामगोपाल ने वर्ष 1989 में जिला परिषद का चुनाव जीतकर अध्यक्ष की कुर्सी थामी। वर्ष 1992 में राज्यसभा के सदस्य बने। इसके बाद रामगोपाल लगातार राज्यसभा पहुंच रहे हैं। अब भी राज्यसभा के सदस्य हैं। प्रोफेसर और शिवपाल यादव ने सियासत तो एक साथ शुरू की लेकिन दोंनो के बीच हमेशा छत्तीस का आंकड़ा रहा। इसी के चलते प्रोफेसर को पार्टी से बाहर का भी रास्ता दिखा दिया गया।
शिवपाल यादवः
सपा प्रमुख मुलायम सिंह के छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव का जन्म 6 अप्रैल 1955, सैफई, इटावा जिला मे हुआ था। शिवपाल को मुलायम के सहकारिता आंदोलन की देन बताया जाता है। मई 2007 में सम्पन्न हुए उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में वे इटावा जिले के जसवन्तनगर विधान सभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के टिकट पर विधायक चुने गये और मायावती सरकार के कार्यकाल में 5 मार्च 2012 तक प्रतिपक्ष के नेता रहे। वर्तमान समय में वे समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं और कुछ दिनों पूर्व तक भतीजे अखिलेश यादव के नेतृत्व में गठित समाजवादी पार्टी की सरकार में मन्त्री हुआ करते थे। पर अब बर्खास्त कर दिया गया है। समाजवादी परिवार में जो कलह-कलेश मचा हुआ है उसके लिये काफी लोग शिवपाल की अति महत्वाकांक्षा को जिम्मेदार मानते हैं।
धर्मेंद्र यादवः
धर्मेंद्र यादव मुलायम सिंह के बड़े भाई अभय राम के बेटे हैं। वह इस वक्त बदायूं से सांसद हैं और इससे पहले मैनपुरी लोकसभा सीट से चुनाव जीत चुके हैं। तब वह 14वीं लोकसभा के सबसे युवा सांसद थे। धर्मेंद्र यादव का राजनीति से नाता छात्र जीवन के समय से ही है। इलाहाबाद में पढ़ाई के दौरान समाजवादी जनेश्वर मिश्र के सानिध्य में उन्होंने छात्र राजनीति की। इलाहाबाद में सपा का परचम लहराने का श्रेय जनेश्वर मिश्र को जाता है तो उनके सहायक के तौर पर धर्मेंद्र का भी नाम लिया जाता है।जब धर्मेंद्र एमए की पढ़ाई पूरी करने वाले थे, तभी वर्ष 2003 में मुलायम सिंह यादव ने उन्हें सैफई बुला लिया। तब धर्मेंद्र के चचेरे भाई व सैफई ब्लॉक प्रमुख रणवीर सिंह का हार्ट अटैक से अचानक मौत हो गई थी। उस समय स्थानीय राजनीति को संभालने का दायित्व मुलायम सिंह ने धर्मेंद्र को दिया।
अक्षय यादवः
मुलायम सिंह के खानदान के सातवें राजनेता अक्षय यादव हैं। वह सपा महासचिव रामगोपाल यादव के बेटे और मुलायम सिंह यादव के भतीजे हैं। अक्षय ने एमबीए किया है। जब अखिलेश यादव ने वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में फिरोजाबाद और कन्नौज से चुनाव लड़ा था, उस समय फिरोजाबाद के चुनाव प्रबंधन की कमान अक्षय यादव ने संभाली थी। इसके बाद अखिलेश ने फिरोजाबाद सीट छोड़ दी और उपचुनाव में पत्नी डिंपल यादव को खड़ा किया। अपनी भाभी डिंपल का चुनाव प्रबंधन भी अक्षय ने संभाला था। लेकिन कांग्रेस नेता व सिनेस्टार राज बब्बर ने डिंपल को हरा दिया। बाद में वर्ष 2012 में कन्नौज लोकसभा उपचुनाव में अक्षय ने ही चुनाव प्रबंधन किया। अक्षय यादव समाजवादी पार्टी महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव के सबसे छोटे बेटे हैं।
अंकुर यादवः
प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री शिवपाल सिंह यादव के पुत्र 25 वर्षीय आदित्य यादव उर्फ अंकुर उत्तर प्रदेश प्रादेशिक को-ऑपरेटिव फेडरेशन (यूपीपीसीएफ) के निर्विरोध अध्यक्ष हैं। सफेद कुर्ता-पाजामा से इतर पैंट, शर्ट, कोट और हाथ में महंगी रोलेक्स घड़ी पहने बीटेक डिग्रीधारी आदित्य समाजवाद के बदलते चेहरे की ओर इशारा कर रहे हैं। राजनीति में सफलता की पहली सीढ़ी चढ़ने के लिए आदित्य ने अपने पिता शिवपाल सिंह यादव के पद-चिन्हों पर चलते हुए सहकारिता का सहारा लिया है। खुद शिवपाल सिंह ने भी इटावा जिले के सहकारी बैंक के अध्यक्ष पद से सियासी पारी की शुरुआत की थी। यूपीपीसीएफ का अध्यक्ष बनने के साथ ही आदित्य का नाम मुलायम सिंह परिवार के उन सदस्यों की सूची में 13वें नंबर पर शुमार हो गया है, जो राजनीति में एंट्री कर चुके हैं।
अंशुल यादवः
राजपाल और प्रेमलता से दो पुत्र हैं। एक हैं 26 साल के अंशुल यादव और दूसरे 19 साल के अभिषेक यादव। अंशुल यादव भी राजनीति का ककहरा सीख रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में अंशुल ने जसवंतनगर विधानसभा क्षेत्र के तहत आने वाले ताखा ब्लॉक में अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव के चुनाव प्रचार की कमान संभाली।
तेजप्रताप सिंहः
इंग्लैंड की लीड्स यूनिवर्सिटी से मैनेजमेंट साइंस में एमएससी करके लौटे तेजप्रताप सिंह सक्रिय राजनीति में उतरने वाले मुलायम सिंह के परिवार की तीसरी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं। मुलायम के बड़े भाई रतन सिंह के बेटे रणवीर सिंह के बेटे तेजप्रताप सिंह यादव उर्फ तेजू इस समय सैफई ब्लॉक प्रमुख निर्वाचित हुए हैं। क्षेत्र में समाजवादी पार्टी को मजबूत करने की पूरी जिम्मेदारी तेज प्रताप सिंह ने अपने कंधों पर उठा रखी है। परिवार के सदस्य इन्हें तेजू के नाम से भी पुकारते हैं।
प्रेमलता यादवः
मुलायम सिंह के छोटे भाई राजपाल यादव की पत्नी प्रेमलता यादव इस समय इटावा में जिला पंचायत अध्यक्ष हैं। आमतौर पर गृहिणी के तौर पर जीवन के अधिकतर वर्ष गुजारने के बाद 2005 में प्रेमलता यादव ने राजनीति में कदम रखा। यहां उन्होंने पहली बार इटावा की जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव लड़ा और जीत गईं। 2005 में राजनीति में आने के बाद ही प्रेमलता मुलायम परिवार की पहली महिला बन गईं, जिन्होंने राजनीति में कदम रखा। उनके बाद शिवपाल यादव की पत्नी और मुलायम की बहू डिंपल यादव का नाम आता है। प्रेमलता के पति राजपाल यादव इटावा वेयर हाउस में नौकरी करते थे और अब रिटायर हो चुके हैं। रिटायरमेंट के बाद से ही वह समाजवादी पार्टी में अहम भूमिका अदा कर रहे हैं।
सरला यादवः
शिवपाल की पत्नी सरला यादव परिवार की पहली महिला सदस्य हैं, जिन्होंने राजनीति में कदम रखा है। शिवपाल बताते हैं कि उस समय कुछ मजबूरी ही ऐसी थी कि पत्नी को राजनीति में उतारना पड़ा। हलांकि, वो सक्रिय राजनीति का हिस्सा कभी नहीं बनीं और घर की देख-भाल में ज्यादा समय बिताती थीं। यही कारण है कि अखिलेश के साथ-साथ दोनों बच्चों की भी जिम्मेदारी उसी पर थी।
अरविंद यादवः
वैसे परिवार की बात करें तो मुलायम सिर्फ अपने ही परिवार नहीं, चचेरे भाई प्रोफेसर रामगोपाल यादव के परिवार को भी पूरा संरक्षण देते रहते हैं। इसी क्रम में मुलायम की चचेरी बहन और रामगोपाल यादव की सगी बहन 72 वर्षीया गीता देवी के बेटे अरविंद यादव ने 2006 में सक्रिय राजनीति में कदम रखा और मैनपुरी के करहल ब्लॉक में ब्लॉक प्रमुख के पद पर निर्वाचित हुए। अरविंद क्षेत्र की जनता में काफी पहचान रखते हैं। करहल में अरविंद ने समाजवादी पार्टी को काफी मजबूती दिलाई है।
शीला यादवः
शीला यादव मुलायम के कुनबे की पहली बेटी है जिन्होंने राजनीति में प्रवेश किया. शीला यादव जिला विकास परिषद की सदस्य निर्वाचित हुई हैं, साथ ही बहनोई अजंत सिंह यादव बीडीसी सदस्य चुन गए हैं।
लेखक अजय कुमार लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं.
5.11.16
मुलायम का समाजवादी कुनबा : विजय की तैयारी, पर अंतर्कलह है भारी
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