CHARAN SINGH RAJPUT
जो एग्जिट पोल के झूठे होने की उम्मीद लगाए बैठेे हैं। वे जमीनी हकीकत को समझें। विपक्ष के कई नेता भी मोदी और अमित शाह के डर से एक तरह से भाजपा का ही साथ दे रहे थे। मुलायम सिंह यादव का संसद में विपक्ष के हारने की बात कहते हुए मोदी के फिर से प्रधानमंत्री बनने की कामना करने को क्या कहा जाएगा। 2013 में मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति मामले का चुनाव में गर्माना और एग्जिट पोल भाजपा के पक्ष में आते ही उन्हें क्लीन चिट मिल जाने को क्या कहोगे।
दरअसल उत्तर प्रदेश में बसपा और सपा के गठबंधन के बाद भाजपा सबसे अधिक चिंतित थी। इसके लिए मोदी और अमित शाह का सारा जोर सपा और बसपा को ही दबाव में लेने पर था। आप उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा गठबंधन का चुनाव प्रचार देख लीजिए। अखिलेश यादव के साथ ही मायावती ने भी भाजपा से ज्यादा निशाना कांग्रेस पर साधा। इसे क्या कहोगे। मतलब भाजपा ने उत्तर प्रदेश में अपना खेल कर दिया है।
उधर महाराष्ट्र में शिव सेना पूरे पांच साल तक मोदी सरकार की आलोचना करती रही और अंत में भाजपा के साथ ही मिलकर चुनाव लड़ी। एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार बीच-बीच में मोदी की तारीफ करते रहे। ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल ने भी भाजपा से ज्यादा हमला कांग्रेस पर बोला। गैर संघवाद का नारा देने वाले नीतीश कुमार पहले से ही एनडीए में शामिल थे। दलितों के बड़े पैरोकार बनने वाले रामविलास पासवान, रामदास अठावले भी एनडीए सरकार की मलाई चाट रहे थे।
वैसे भी राहुल गांधी, ज्योतिरा ङ्क्षसधिया, सचिन पायलट, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव सब चांदी की चम्मच लेकर ही तो पैदा हुए हैं। संघर्ष किया तो इनके पिताजी ने किया था। इन लोगों से आप नरेंन्द्र मोदी और अमित शाह जैसे मंझे और तपे हुए नेताओं को हराने की उम्मीद कर कैसे सकते हैं। परिवारवाद और जातिवाद ने देश में नेतृत्व निखरने ही नहीं दिया। परिणाम कल सामने होगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अमित शाह सत्ता में होकर भी दो साल पहले चुनाव की तैयारी में लग गए थे। विपक्ष के नेता चुनाव में भी बस बड़ी रैलियों तक ही सीमित रहे। ऐसे में क्या सत्ता परिवर्तन का सारा का सारा ठेका जनता ने ही ले रखा था। वह भी इन जैसे नेताओं के सत्ता की मलाई चाटने के लिए। मोदी सरकार के खिलाफ जो लोग संघर्ष कर रहे थे उन्हें तो विपक्ष नहीं समझा ही नहीं। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने मेहनत की है। इसका फायदा कांग्रेस को होगा। वैसे भी मोदी सरकार के खिलाफ इन सूरमाओं ने ऐसा कोई आंदोलन नहीं किया कि जनता को इन पर विश्वास जगता। ऐसे में सत्ता परिवर्तन की उम्मीद लगाना कोई अकलमंदी नहीं है।
CHARAN SINGH RAJPUT
जो एग्जिट पोल के झूठे होने की उम्मीद लगाए बैठेे हैं। वे जमीनी हकीकत को समझें। विपक्ष के कई नेता भी मोदी और अमित शाह के डर से एक तरह से भाजपा का ही साथ दे रहे थे। मुलायम सिंह यादव का संसद में विपक्ष के हारने की बात कहते हुए मोदी के फिर से प्रधानमंत्री बनने की कामना करने को क्या कहा जाएगा। 2013 में मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति मामले का चुनाव में गर्माना और एग्जिट पोल भाजपा के पक्ष में आते ही उन्हें क्लीन चिट मिल जाने को क्या कहोगे।
दरअसल उत्तर प्रदेश में बसपा और सपा के गठबंधन के बाद भाजपा सबसे अधिक चिंतित थी। इसके लिए मोदी और अमित शाह का सारा जोर सपा और बसपा को ही दबाव में लेने पर था। आप उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा गठबंधन का चुनाव प्रचार देख लीजिए। अखिलेश यादव के साथ ही मायावती ने भी भाजपा से ज्यादा निशाना कांग्रेस पर साधा। इसे क्या कहोगे। मतलब भाजपा ने उत्तर प्रदेश में अपना खेल कर दिया है।
उधर महाराष्ट्र में शिव सेना पूरे पांच साल तक मोदी सरकार की आलोचना करती रही और अंत में भाजपा के साथ ही मिलकर चुनाव लड़ी। एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार बीच-बीच में मोदी की तारीफ करते रहे। ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल ने भी भाजपा से ज्यादा हमला कांग्रेस पर बोला। गैर संघवाद का नारा देने वाले नीतीश कुमार पहले से ही एनडीए में शामिल थे। दलितों के बड़े पैरोकार बनने वाले रामविलास पासवान, रामदास अठावले भी एनडीए सरकार की मलाई चाट रहे थे।
वैसे भी राहुल गांधी, ज्योतिरा ङ्क्षसधिया, सचिन पायलट, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव सब चांदी की चम्मच लेकर ही तो पैदा हुए हैं। संघर्ष किया तो इनके पिताजी ने किया था। इन लोगों से आप नरेंन्द्र मोदी और अमित शाह जैसे मंझे और तपे हुए नेताओं को हराने की उम्मीद कर कैसे सकते हैं। परिवारवाद और जातिवाद ने देश में नेतृत्व निखरने ही नहीं दिया। परिणाम कल सामने होगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अमित शाह सत्ता में होकर भी दो साल पहले चुनाव की तैयारी में लग गए थे। विपक्ष के नेता चुनाव में भी बस बड़ी रैलियों तक ही सीमित रहे। ऐसे में क्या सत्ता परिवर्तन का सारा का सारा ठेका जनता ने ही ले रखा था। वह भी इन जैसे नेताओं के सत्ता की मलाई चाटने के लिए। मोदी सरकार के खिलाफ जो लोग संघर्ष कर रहे थे उन्हें तो विपक्ष नहीं समझा ही नहीं। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने मेहनत की है। इसका फायदा कांग्रेस को होगा। वैसे भी मोदी सरकार के खिलाफ इन सूरमाओं ने ऐसा कोई आंदोलन नहीं किया कि जनता को इन पर विश्वास जगता। ऐसे में सत्ता परिवर्तन की उम्मीद लगाना कोई अकलमंदी नहीं है।
CHARAN SINGH RAJPUT
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