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22.5.19

चुनाव आयोग की नीयत में खोट!

चुनाव आयोग भी रूल 49MA  के तहत यह स्वीकार करती है कि ईवीएम में खराबी हो सकती है और मतदाता ने अपना मत जिस राजनीति पार्टी को दिया है उसे ना जाकर किसी ओर राजनीति दल को जाने पर क्या करना होगा इसकी व्यवस्था की है। परन्तु जिन-जिन जगहों से ऐसी शिकायतें आई उसे दबाने का काम आयोग की भूमिका पर फिर एक नया प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है। 

देश के लोकतंत्र में यह शायद यह पहली बार हो रहा है कि देश की 70 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाला विपक्ष, चुनाव आयोग के सामने इतना कमजोर और बौना साबित हो चुका है जो कहीं न कहीं लोकतंत्र के किसी खतरे का संकेत भी दे रहा है। पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी  ईवीएम की सुरक्षा को लेकर उठ रहे सवालों लेकर अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहे कि  " ईवीएम की सुरक्षा  की पूरी ज़िम्मेदारी चुनाव आयोग की है कि किसी को शक  करने की  कोई जगह ना मिले। " यानि कि देश की जनता पिछले दो-तीन दिनों की ईवीएम की हलचलों से काफी चिंतित है।

रूल 49MA : चुनाव आयोग कि भूमिका को लेकर खुद चुनाव आयोग के एक सदस्य ने जो सवाल जनता के सामने रखे, उससे भी चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल खड़े हो चुके हैं। चुनाव के दौरान बार-बार और बड़ी संख्या में ईवीएम  मशीनों की खराबी को लेकर शोर-शराबा होता रहा। चुनाव आयोग अपनी कारस्थानियों को छुपाने के लिये लोगों को धमकाता रहा। उनके ऊपर एफआईआर करता रहा।  शरद पावर का बयान सामने आया कि "ईवीएम से गलत वोट पड़ रहें हैं" यानि कि जिसे वोट दिया जा रहा है उसे ना जाकर किसी अन्य राजनीतिक दल को वह वोट जा रहा है । ऐसी ही कई ख़बरें विभिन्न राज्यों से आती रही।  चुनाव आयोग भी रूल 49MA  के तहत यह स्वीकार करती है कि ईवीएम में खराबी हो सकती है और मतदाता ने अपना मत जिस राजनीति पार्टी को दिया है उसे ना जाकर किसी ओर राजनीति दल को जाने पर क्या करना होगा,  इसकी व्यवस्था की है। परन्तु जिन-जिन जगहों से ऐसी शिकायतें आई उसे दबाने का काम आयोग की भूमिका पर फिर एक नया प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है।    रूल 49MA   के लिये चुनाव आयोग ने क्या प्रचार किया ?  जबकि इस बार चुनाव आयोग ने प्रचार में काफी धन खर्च भी किया है।  क्या रूल 49MA  के विषय में जनता को जागरूक नहीं किया जाना चाहिये  था कि ऐसी कोई बात हो तो जनता चुनाव आयोग को तुरन्त इत्ला करें ताकि चुनाव में परदर्शिता लाई जा सके। इसके विपरित चुनाव आयोग उन लोगों को जेल भेजने का काम करती पाई गई।

आयोग की नियुक्ति :  चुनाव आयोग की नियुक्ति पर भी कांग्रेस पार्टी की तरफ से बयान आया कि इस बात पुनः विचार करने की जरूरत है कि आयोग की नियुक्तियाँ कैसे की जाए । यानि कि आयोग की नियुक्तियाँ भी सवाल के घेरे में आ चुका है। वहीं आयोग को इस बार सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा जमा कर यह स्वीकार करना पड़ा कि उनके पास विशाल शक्ति है । कहने का अभिप्रायः यह है कि आयोग के हर हरकतों पर कहीं ना कहीं प्रश्न खड़ा होना शुभ संकेत तो नहीं माना जा सकता ।

20 लाख ईवीएम मशीनें  :  एक आरटीआई से पता चला की चुनाव आयोग के पास 20 लाख ईवीएम मशीनें कम है जिसके जबाब में चुनाव आयोग की प्रवक्ता शेफाली शरण ने कहा कि ‘‘हकीकत में चुनाव आयोग एक-एक ईवीएम को अपनी निगरानी में रखता है। यहां तक कि एक भी ईवीएम को इधर से उधर नहीं किया जा सकता है। किसी भी ईवीएम को कहीं ले जाने के लिए चुनाव आयोग से आधिकारिक इजाज़त लेनी पड़ती है। चुनाव आयोग के पास ‘ईवीएम मैनेजमेंट साफ्टवेयर’ EMS है, इसके जरिए हरेक ईवीएम और वीवीपैट मशीन की हर वक्त मॉनिटरिंग होती है।’’ परन्तु वह उस बात को स्पष्ट नहीं कर रही कि उनके पास कितनी ईवीएम आयी और वर्तमान में उसकी क्या स्थिति है और किस राज्यों में कितनी ईवीएम खराब है कितनी सही ? साथ ही भी सवाल उठता है कि जब आयोग इतनी सख़्त निगरानी रखता है तो चुनाव के पश्चात उत्तरप्रदेश और बिहार में इतनी बड़ी तादाद में ट्रकों में लोड इतनी मशीनें एक साथ क्या करने जा रही थी। इससे पूर्व तो ये मशीनें कभी इस प्रकार ना तो पकड़ी गई ना ही कभी कोई शिकायत मीडिया में किसी पार्टी ने लगाया था। यदि किसी ‘मोक’ ट्रेनिंग के लिए भी ये मशीनें भेजी जा रही थी या वहां से वापस आ रही थी तो जैसा कि चुनाव आयोग खुद कह रहा है कि उसके पास सभी मशीनों पर निगरानी ‘ईवीएम मैनेजमेंट साफ्टवेयर’ कर रही है तो उसकी सूचना उम्मीदवारों को क्यों नहीं दी गई ताकि यह जो अफवाहें बाजार में फैल रही है उसपर लगाम लगाया जा सके। परन्तु इन ईवीएम मशीनों के अवैध हरकतों पर आयोग की चुप्पी किसी नये शक को जन्म दे रही है। क्या कहीं ‘‘एक्जिट पोल’’ के आँकड़ों से इसका कोई संबंध तो नहीं ?

नेचुरल जस्टीस :  आयोग किसी के नामांकन पत्र को वैध कारण बता कर रद्द कर सकती है परन्तु वह ‘‘ नेचुरल जस्टीस’’ का पूरा अवसर उस उम्मीदवार को देना होगा। जबकि इस बार चुनाव आयोग ने सिर्फ रात का वक्त देकर  ''नेचुरल जस्टीस'' को भी ताक पर रख दिया। किसी भी पत्र के जबाब के लिये कम से कम एक दिन का कार्यकारी दिवस देना उस व्यक्ति उस व्यक्ति का संवैधानिक हक बनता है जबकि एक ही दिन में आयोग ने उस उम्मीदवार को दो नोटिस जारी कर दी और शाम छह बजे की नोटिस का जबाब वह भी 500-500 किलोमीटर की दूरी तय कर के दूसरे दिन ग्यारह बजे तक जबाब देने को कहा जाना आयोग की निष्पक्षता पुनः सवाल तो खड़े कर ही जाता है। भले ही चुनाव आयोग उनकी सुनाई पूरी कर के भी उस उम्मीदवार के नामांकन को रद्द कर सकती थी। जल्दबाजी में किसी के दबाव में लिया गया निर्णय एक प्रश्नचिन्ह अपने पीछे छोड़ देता है।

 तीन सदस्यीय पीठ :  चुनाव आयोग को यह पूरा अधिकार है कि वह राजनीति पार्टियों को विभिन्न शिकायतों का समय पर निपटारा करे, परन्तु यहां भी सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ता है। अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी के मामले में लगातार चुनाव आयोग की चुप्पी और फिर उनको सभी मामलों में बरी कर देना भी चुनाव आयोग कि निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर रहा है । जिसका उल्लेख चुनाव आयोग के एक सदस्य ने अपने आरोप में लगाया कि उनके विचारों को मिनट बुक में नहीं दर्शाया गया है। तब सवाल यह भी उठता है कि तीन सदस्यीय पीठ का निर्णय था कि दो सदस्यीय पीठ का निर्णय?

वीवीपेट की पर्ची :  इसी प्रकार आज पुनः 22 विपक्षी दल के प्रतिनिधियों ने वीवीपेट की पर्ची  की गनती को लेकर अपनी स्थिति को स्पष्ट करने की मांग की कि किस प्रकार इसकी गिनती की प्रणाली क्या अपनाने जा रही है? यानि कि चुनाव आयोग किसी घपले को अंजाम देने की ताक में तो नहीं है? विपक्ष को अब चुनाव आयोग की हर हरकतों पर शंका का होना लोकतंत्र के लिये शुभ तो नहीं माना जा सकता ।
2019 के चुनाव में एक बात तो धीरे-धीरे साफ होती जा रही है कि चुनाव आयोग किसी भी प्रकार से निष्पक्ष नहीं हैं जो लोकतंत्र के लिये किसी खतरे का संकेत दे रहा है कि कोई एक व्यक्ति लोकतंत्र को जब चाहे अपना ग़ुलाम बना सकता है।  जयहिन्द ।

लेखक शंभु चौधरी स्वतंत्र पत्रकार और विधिज्ञाता हैं।

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