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16.2.21

अपने बुने जाल में खुद ही फंसते जा रहे हैं प्रधानमंत्री मोदी, बड़ी चुनौती बने राकेश टिकैत

CHARAN SINGH RAJPUT-
    
किसान नेताओं ने प्रधानमंत्री के आंदोलनकारियों को आंदोलनजीवी और परजीवी कहने को किसान आंदोलन से जोड़ा है। देश में बड़े किसान नेता के रूप में उभरे भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत ने इसे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया है। अब वह अक्टूबर तक किसान आंदोलन चलाने की बात कर रहे हैं। मतलब दो अक्टूबर महात्मा गांधी की जयंती पर वह देश में ऐसा कुछ करने जा रहे हैं जो न केवल मोदी सरकार बल्कि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के लिए भी भारी पडऩे वाला है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, हरियाणा के साथ ही दूसरे राज्यों में किसान आंदोलन के समर्थन में हो रहीर महापंचायतें और इनमें राकेश टिकैत का प्रमुखता से पहुंचना मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ा रही हैं। गाजीपुर बार्डर लगातार किसान आंदोलन के समर्थन में साधु संतों के साथ ही विभिन्न वर्ग और धर्मों के लोगों का पहुंचना जारी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्मिलों और जाटों में बढ़ी दूरी का कम होना अगले साल उत्तर प्रदेश में हो रहे चुनाव के लिए खतरे की घंटी माना जा रहा है। महात्मा गांधी की पोती तारा गांधी ने भी आंदोलन में पहुंचकर किसान नेताओं को पूरा समर्थन दिया है।


अब प्रधानमंत्री ने सहानुभूति बटोरने के लिए अपने समर्थकों से कहलवाना शुरू कर दिया है कि देश बड़े आंदोलनों को झेलने की स्थिति में नहीं है। मतलब किसान आंदोलन भाजपा के लिए लगातार परेशानी बनता जा रहा है। मोदी सरकार के लिए चिंता की बात यह भी है कि अब फिर से सीएए और एनआरसी के विरोध में आंदोलनों की भूमिका बन रही है। श्रम कानूनों में किये गये संशोधन के खिलाफ सीटू की अगुआई में मजदूर संगठनों ने कमर कस ली है। किसान और मजदूर संगठनों को प्रधानमंत्री के आंदोलनकारियों को आंदोलनजीवी और परजीवी कहने पर उनसे लडऩे एक बड़ा हथियार उनसे ही मिल गया है। प्रधानमंत्री के इस बयान को देश में विभिन्न मुद्दों पर उठने वाली आवाज को दबाने के रूप में देखा जा रहा है।

दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो कुछ भी बोलते हैं उसके पीछे उनकी बड़ी रणनीति छिपी होती है। कांग्रेस के खिलाफ लोगों के गुस्से को भुनाने के लिए वह लगातार कांग्रेस के शासनकाल पर हमला बोलते रहते हैं। नेहरू परिवार को टारगेट करना भी उनका इसी रणनीति का हिस्सा होता है। समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता का मजाक बनाना उनका कांग्रेस, सपा, राजद, रालोद, तृमूंका के साथ ही सेकुलर दलों को टारगेट करना था। बाबरी-मस्जिद के साथ ही मुस्लिम शासकों पर अत्याचारी होने का आरोप लगा-लगाकर भाजपा ने जो मुस्लिमों के प्रति हिंदूओं के एक विशेष तबके में नफरत पैदा की है उस नफरत को और आगे बढ़ाने के लिए प्रधनमंत्री ने बड़ी चालाकी से अपने बयानों में समाजवादियों को मुस्लिम परस्ती से जोड़े रखा है। आज के समाजवादियों के गिरते स्तर का फायदा प्रधनामंत्री ने कांग्रेस के साथ ही सपा, राजद, रालोद पर वंशवाद को बढ़ावे का आरोप लगाते हुए उठाया, जिसका फायदा उन्हें 2019 के आम चुनाव में मिला। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक रणनीति रही है कि मोदी सरकार के खिलाफ उठने वाली हर आवाज को उन्होंने बदनाम कर दबा दिया। इन सब बातों का फायदा उठाते हुए वह आरएसएस का एजेंडा लागू कर रहे हैं। चाहे एनआरसी, सीएए पर बनाये गये कानून हों या फिर तीन नये कृषि कानून ये सब तमाम विरोध के बावजूद लागू किये गये। सीएए और एनआरसी के खिलाफ देश में बड़े आंदोलन हुए पर कोरोना की आड़ में ये आंदोलन दबा दिये गये। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने डंडे के बल पर आंदोलनों को कुचल दिया। 

अब जब नये किसान कानून के खिलाफ देश में किसान आंदोलन ने बड़ा रूप ले लिया है। 26 जनवरी को निकाली गई किसान परेड पर लालकिला पर तिरंगे का अपमान करने और हिंसा फैलाने का का आरोप भी काम न आ सका तो प्रधानमंत्री ने एक सधी राजनीति का इस्तेमाल करते हुए राष्ट्रपति अभिभाषण के बाद राज्यसभा में बोलते हुए बुद्धिजीवी और श्रमजीवियों पर हमला बोलते हुए आंदोलनकारियों को आंदोलनजीवी और परजीवी तक कह दिया। 

दरअसल प्रधानमंत्री ने यह बयान कुछ नेताओं को टारगेट करते हुए किसान आंदेालन में फूट डालने के लिए दिया था, जिसमें वह माहिर माने जाते हैं। उनका टारगेट स्वराज इंडिया के नेता योगेंद्र यादव और कम्युनिस्ट विचारधारा के किसान नेता दर्शनपाल सिंह और भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत थे। जब देश में कांग्रेस, सपा, तृमूकां के साथ ही वामपंथियों ने स्वतंत्रता संग्राम को भी आंदोलन से जोड़ते हुए प्रधानमंत्री पर हमला बोला तो प्रधानमंत्री की समझ में आ गया कि इस बार का दांव उन्हें भारी पड़ सकता है। इसका बड़ा कारण यह रहा कि विपक्ष के साथ ही सामाजिक संगठनों के साथ ही किसान, मजदूर और दूसरे संगठनों के नेताओं ने इसे अपना अपमान समझा है। 

जब स्वतंत्रता सेनानियों, क्रांतिकारियों और देश में बदलाव के लिए हुए बड़े आंदोलनों जेपी क्रांति, अन्ना आंदोलनों का ब्यौरा देते हुए प्रधानमंत्री को घेरा गया तो उन्होंने लोकसभा में सफाई देते हुए किसान आंदोलन को पवित्र आंदोलन की संज्ञा देते हुए इस बदनाम करने वालों को आंदोलनजीवी और परजीवी कहने की बात कही। उनका इशारा जेलों में बंद लोगों को छुड़ाने के लिए किसान आंदोलन में इस्तेमाल किये गये बैनरों व पोस्टरों की ओर था। उनकी यह सफाई भी उन्हें भारी ही पड़ी। क्योंकि जेलों में बंद अधिकतर सोशल एक्टिविस्ट दुर्भावनावश फंसाये गये हैं। सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री को अडानी, अंबानी जीवी, भाषणजीवी, जुमलेबाज जीवी, कांग्रेसजीवी, चंदाजीवी जाने क्या-क्या नामों की संज्ञा दी जा रही है।

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