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23.2.21

सूचना कानून का अनुपालन कराने वाला आयोग ही कर रहा है कानून का उल्लंघन

pardeep shukal-

सूचना आयोग के ही चिट्ठी से हुआ खुलासा... आरटीआई एक्ट के क्रियान्वयन  के लिए राज्य स्तर की सर्वोच्च  संवैधानिक  संस्था  उत्तर प्रदेश सूचना आयोग कि अपनी जिम्मेदारी एवं जवाबदेही के प्रति ढुलमुल रवैया के  बीच शिकायतें तो लगातार चर्चा में तो बनी ही रहती है। इस बीच आयोग के जन सूचना अधिकारी कार्यालय से आरटीआई कार्यकर्ता प्रदीप शुक्ला को प्रेषित एक पत्र ने  तो आयोग की पूरी पोल ही खोल दी है। पत्र ने कई तरफ इशारा करते हुए सबसे गंभीर सवाल यह खड़ा कर दिया है कि जब आरटीआई एक्ट का अनुपालन करने में आयोग ही नाकाम है तो वह प्रदेश के अलग-अलग विभागों में आरटीआई  का अनुपालन कैसे करा पाएगा। 



 


बताते चलें कि मिर्जापुर जिले के आरटीआई कार्यकर्ता प्रदीप शुक्ला ने उत्तर प्रदेश सूचना आयोग के जन सूचना अधिकारी को 26 दिसंबर 2020 को आरटीआई के तहत एक आवेदन प्रेषित  करके चार बिंदुओं  के आधार पर सूचनाएं मागी हैं। आगे इस आवेदन पत्र पर नियमानुसार एक माह की अवधि में अधिकतम 28 जनवरी 2021 तक  जवाब प्रेषित कर दिया जाना चाहिए था किंतु आयोग के जन सूचना अधिकारी ने नियत समयावधि में कोई जवाब न देकर कानून के नियम 7 का उल्लंघन किया।

आरटीआई कार्यकर्ता ने इसके उपरांत 1 फरवरी 2021 को सूचना आयोग के अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष प्रथम अपील प्रेषित की है। सूचना आयोग के सचिव जगदीश प्रसाद ने अपील स्वीकार कर सुनवाई हेतु 19 फरवरी 2021 की तिथि नियत कर अपीलार्थी सहित आयोग के जन सूचना अधिकारी को नोटिस जारी कर दिया।  इसके बाद पहला चौंकाने वाला तथ्य  उस समय सामने आया जब 19 फरवरी 2021 को आयोग के जन सूचना अधिकारी का एक रजिस्टर्ड पत्र प्राप्त हुआ। पत्र स्वयं इस बात की गवाही दे रहा है कि 10 फरवरी को अपीलीय प्राधिकारी के द्वारा नोटिस जारी की गई है।  दूसरी ओर जन सूचना अधिकारी के पत्र में भी  वही तिथि लिखा गया है, जो यह समझने के लिए पर्याप्त है कि जन सूचना अधिकारी ने अपील की सूचना मिलने के उपरांत यह कार्रवाई की गई है।

इतना ही नहीं जन सूचना अधिकारी ने नियम सात के उल्लंघन के आरोप के सफाई में जो तथ्य अपने पत्र में उल्लेखित किया है वह काफी हास्यास्पद है। आवेदक का 26 दिसंबर 2020 का पत्र आयोग के जन सूचना अनुभाग में 25 जनवरी 2021 को प्राप्त होना बताया गया है जबकि पोस्टल साक्ष्य को देखा जाए तो पत्र बुक करने की तिथि के 3 दिन बाद 28 दिसंबर को ही आयोग में वितरित होना बताया गया है।  पत्र मे सबसे चौंकाने वाला तथ्य यह है कि पत्र जन सूचना अधिकारी व उप सचिव उत्तर प्रदेश सूचना आयोग द्वारा प्रेषित की गई है किंतु उस पर जन सूचना अधिकारी का हस्ताक्षर ही नदारद है। इन अनियमितताओं एवं कानून के उल्लंघन के संबंध में आरटीआई कार्यकर्ता प्रदीप शुक्ला   ने जब उत्तर प्रदेश सूचना आयोग के सचिव से फोन पर बात करनी चाही तो  उनके निजी सचिव ने बताया कि कि सचिव महोदय कहीं बाहर हैं। उनके द्वारा वाद के संबंध में पूछने पर जब  आरटीआई कार्यकर्ता ने  सूचना आयोग की हकीकत बतानी शुरू की तो जवाब मिला कि पत्रावली को हम देख लेंगे उसके उपरांत कार्रवाई होगी।

ऐसे में सूचना आयोग अपने ही जन सूचना अधिकारी के द्वारा कानून के उल्लंघन तथा हास्यास्पद तथ्य प्रस्तुत कर अपनी सफाई देने जैसे गंभीर आरोपों का संज्ञान लेकर क्या कार्रवाई करता है यह तो आगे देखने को मिलेगा ही  किंतु सबसे गंभीर सवाल यह है कि आयोग द्वारा दूरस्थ जनपदों के  अपीलाथियो की सुनवाई हेतु नोटिस तो जारी कर दी जाती है  किंतु सुनवाई के लिए सैकड़ों किलोमीटर दूर लखनऊ  पहुंच कर सुनवाई में सम्मिलित होने तक कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा इसका आकलन को वही कर सकता है जो आयोग से उम्मीद लगाए बैठा है। इतना ही नहीं आयोग भी उनको सूचना दिलवा पाएगा कि नहीं दिलवा पाएगा अथवा नहीं  ऐसे कई सवालों का जवाब राम भरोसे दिखता है।

प्रदीप कुमार शुक्ला
आरटीआई कार्यकर्ता
मिर्जापुर
मोबाइल नंबर 73 7680 36 58

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