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16.6.25

तो पाकिस्तान के आग्रह पर सीजफायर क्यों कर लिया जयशंकर जी?

चरण सिंह- 

सीजफायर की जानकारी देश को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मिली। ट्रंप ने सीजफायर की घोषणा करते हुए यह भी कहा कि उन्होंने व्यापार रोकने की चेतावनी देकर सीजफायर कराया। उसके बाद ट्रंप लगातार सीजफायर का श्रेय ले रहे हैं। विदेश मंत्री एस. जयशंकर लगातार कह रहे हैं कि सीजफायर पाकिस्तान और भारत दोनों देशों की सहमति से होने की बात कर रहे हैं। किसी तीसरे देश की मध्यस्थता को नकार रहे हैं। 

अब फिर जब अमेरिका ने पाकिस्तान के परमाणु बम छोड़ देने की बात करते हुए सीजफायर कराने की बात की तो फिर से एस जयशंकर अमेरिकी दावों का खंडन करते हुए कह दिया कि भारत और पाकिस्तान के बीच हाल का संघर्ष विराम दोनों देशों की सीधी बातचीत का नतीजा था न कि किसी तीसरे पक्ष, जैसे अमेरिका की मध्यस्थता का। 

उन्होंने डच प्रसारक एनओएस को दिए साक्षात्कार में स्पष्ट किया कि पाकिस्तान ने 10 मई को हॉटलाइन के जरिए गोलीबारी बंद करने की इच्छा जताई, जिसके जवाब में भारत ने सहमति दी। जयशंकर ने जोर देकर कहा कि भारत आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख रखता है और पाकिस्तान को आतंकवाद पर रोक लगानी होगी।

ऐसे में प्रश्न उठता है कि यदि एस जयशंकर की बात सही मान भी ली जाए तो फिर इतनी आसानी से सीजफायर क्यों कर लिया गया ? क्या पहलगाम हमले के आतंकी गिरफ्तार कर लिए गए हैं ? क्या पीओके पर कब्ज़ा कर लिया गया है ? क्या बलूचिस्तान को अलग देश बना दिया गया है ?क्या पाकिस्तान स्थित सभी आतंकी शिविर तबाह कर दिए गए हैं ? यदि इनमें से कुछ नहीं हुआ तो फिर सीजफायर किस बात का ?

यदि अमेरिका ने सीज फायर नहीं कराया तो फिर पाकिस्तान या भारत में से किसी देश सीजफायर की घोषणा क्यों नहीं की ? यदि किसी देश ने मध्यस्थता नहीं की तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को सीजफायर का पता कैसे चला ? कैसे उन्होंने सीजफायर की घोषणा की ?   प्रधानमंत्री मोदी उनकी बयानबाजी पर चुप क्यों हैं ? 

प्रधानमंत्री के तो ट्रंप सबसे अधिक घनिष्ठ मित्र हैं। प्रधानमंत्री तो उनका  चुनाव प्रचार करने गए थे। अबकी बार ट्रंप सरकार का नारा लगाकर आये थे। अपने मित्र के स्वागत में अहमदाबाद में 100 करोड़ का नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम कराया। इन सबके बावजूद वह भारत के पीछे पड़े हैं। प्रधानमंत्री सिंदूर उजाड़ने वाले का मरना तय बता रहे हैं पर अभी तक पहलगाम हमले के आतंकी मारे नहीं गए हैं। थोड़ा बहुत 1965 और 1971 के युद्ध को भी याद कर लें जयशंकर जी। 

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