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9.4.08

विशाल श्रीवास्तव की कविताएँ

1. प्रकाश

हमें चाहिए धूप
कि हम पढ़ सकें जीर्ण पन्नों को
सुधार सकें नये लिखे के हिज्जे

हमने बोई है आसमानी खेत पर
उजाले की कुँवारी हरी दूब
हमारा रक्त पहले से है वातावरण में
देखा है हमने आकाश के आईने में
अपने पीले चेहरों का अक्स
हम पोंछते हैं नारंगी सूरज पर जमी गर्द
इस तरह हमने आकाश को दिया है
हर ज़रूरी सामान
कि वह बना सके उजाला

हम एक पुराने लोहे जैसे
काले दिन के नागरिक हैं
हमें थोड़ा प्रकाश चाहिए


2. मुन्नू मिसिर का आलाप

बहुत पक्का गला है मुन्नू मिसिर का
अद्भुत गाते हैं मुन्नू मिसिर
फिर भी भव्य सभाओं में नहीं जाते मुन्नू मिसिर
कहीं किसी किताब में नहीं छपा है उनका नाम
उनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं


अयोध्या के नयेघाट पर गली जैसा कुछ
गली जैसे कुछ में मोड़ जैसा कुछ
मोड़ जैसे कुछ पर पीपल एक पुराना
वहीं कुछ कुछ घर जैसा
और भीतर झुलनी खटिया पर मुन्नू मिसिर


छोटी कोठरी में फैला मुन्नू मिसिर का अथाह एकान्त
बातें करता रहता उनके तरल अंधेरे से
जब बहुत कम कुछ याद रहता है मुन्नू मिसिर को
जैसे वे भूल जाते हैं कि वे शाकद्वीपीय हैं या सरयूपारीण
या फिर कितने साल हुए उन्हें रिटायर हुए


तब उनसे ज्यादा दु:ख सामनेवाले को होता है
कभी-कभी याद आ जाता है उन्हें कोई विचलित राग
कोठरी के अंधेरे में तब टिमटिमाता है
उनके बुजुर्ग गले का सुर
चारपाई का सरकता ढीला निवाड़
डगमगाता है एक प्राचीन हारमोनियम
सीली कोठरी में सन्न-सन्न हवा दु्रत
सांवली बिटिया बारती है एक अरूणाभ ढिबरी
रौशनी को परनाम कर आलाप लेते हैं मुन्नू मिसिर
साधते हैं एकसाथ सुर और अपनी चिरन्तन खांसी को
शहर के उदास पीलेपन को मुग्ध करता है
उनका खरखराता सधा गला
गाना धीमे से शामिल होता है दुनिया में
दुनिया से अचानक थोड़ा दूर जाते हैं मुन्नू मिसिर
वे अपने दुखों से दूर जाते हैं इस तरह


अपने सुरों की नाव पर चढ़ वे घूम आते हैं नदी पार
कभी उनके साथ होते हवा में शामिल
तैरते रहते तमाम प्रतिबन्धित जगहों के ऊपर
कभी दुबक जाते किसी जीर्ण प्राचीन खिड़की पर
कान लगाकर सुनते उसकी जर्जर कुण्डी का संगीत
फिर वे जाते टेढ़ीबाज़ार अपने सुरों के साथ समोसा खाने
कहकहे लगाते उनके कन्धों पर रखकर हाथ
थककर लौटते अंतत: अपनी उसी संकरी गली में
विलम्बित आलाप में याद करते जीवन का अवरोह
नष्ट छन्द नष्ट गद्य नष्ट संगीत
जीवन एक बहदहवास भौंरे की चीख जितना शोर
जीवन डूबती झलमल झपल रौशनी


अचानक खांस पड़ते हैं मुन्नू मिसिर
हारमोनियम के कोने से छिल जाती है कुहनी
एक ताज़ा दर्द सम्मिलित होता है
मुन्नू मिसिर के आलाप में



3. वो आई


वो आई
उसके आने ने जैसे
रात के आसमान में फेंका कंकड़
खिड़की के आकाश में
पहले चाँद थरथराया
फिर जल काँपा आसमान का
फिर एक एक करके झिलमिलाये तारे
सबने कहा देखो वो आई
उसके आने से जागा मेरे कमरे का ऍंधेरा
उसकी तांबई रंगत से खुश हुआ दरवाजा
खुश हुए मेरे गन्दे कपड़े और जुराबें
खिल उठीं बेतरतीब किताबें
सब खुसफुसाये ... वो आई
वो आई मेरे मनपसन्द पीले कपड़ों में
जिनके हरेक तन्तु की गन्ध मुझे परिचित
मैंने जैसे कपड़ों से कहा - बैठो
कपड़े बैठे ... वो बैठी
जैसा कि उसकी आदत है, उसने कहा
कि मन नहीं लगता मेरे बिना उसका
जीना असम्भव है
उसने कहा ... मैंने सुना
फिर
मैंने कहा - बीत गया है अब सब कुछ
मैंने कहा ... उसने सुना
उसने कहा - बीतना भूलना नहीं होता
दर्द को सम्मिलित करना होता है जीवन में
मैंने कहा दर्द .. हाँ दर्द कहाँ बीतता है
सिर्फ हम बीतते हैं थोड़ा-थोड़ा समय के साथ
वह थोड़ा और उदास हुई
गीली हो गईं उसकी ऑंखें
आखिर वह उठी
मैंने उठते हुए देखा पीले कपड़ों को
मैंने देखा पीले कपड़ों को जाते हुए
काँपना बन्द हुआ आसमान का
सो गया फिर से कमरे का ऍंधेरा
दुखी हुए कपड़े और जुराबें
दुखी हुआ दरवाजा
इस बार
सब जैसे चीखकर बोले
वो गई .... वो गई .... वो गई
मैंने सिगरेट सुलगाई
और आहिस्ते से कहा
जाने दो


4. मित्र

मित्र थे
जो चुनते थे
शर्ट की आस्तीन से अदृश्य भुनगे
कन्धे से साफ़ करते थे धूल
ख्याल से भरकर छूते थे माथा
ध्यान रखते थे मित्र

झूठ बोलकर बचाते थे मित्र
क्रूर शिक्षक और क्रुध्द पिता से

मित्र थे
जिन्होंने सिखाया प्रेम करना
जो हमें चौराहों पर मिलते थे
जिनसे गलबहियाँ कर घूरते थे हम
शहर की सुन्दर लड़कियों का दुपट्टा
और अकसर पीछा करते थे
गुलाबी हुड वाले रिक्शों का

मित्र थे
जो हमें दूर ले गये वर्जनाओं से
जिनके साथ सीखा सिगरेट पीने का हुनर
जिनके साथ हाइवे ढाबों पर छुपकर शराब पी
देखीं उनके साथ तमाम मसाला फिल्में
बहुत मौज की जिनके साथ हमने

मित्र थे
जिन्होंने सिखाया क्रोध करना
जिनके लिए हम दूसरों से लड़े और वे हमारे लिए
मित्रों ने छीनी भी प्रेमिकाएँ
तब जी भर कर गरियाया हमने उन्हें
बदले में हुआ बेशुमार गालियों का विनिमय
अद्भुत विरेचक थे हमारे मित्र

हमारी ज़रूरत थे मित्र
बहन की शादी कैसे होती उनके बिना
कैसे होता दादी का अन्तिम संस्कार
माँ की बीमारी में साथ दिया उन्होंने
पहली नौकरी पर स्टेशन छोड़ने गए मित्र

हमारा जीवन थे मित्र
जब गले से लगते थे
तो जीवन मित्रता से पोसा हुआ लगता था

अब दूर हैं मित्र
मिलते हैं इंटरनेट के चैटरूमों में
या फोन पर बाँटते हैं दुख दर्द
पर ऐसे उनके गले नहीं लगा जा सकता
नहीं जमाया जा सकता है धौल
उनकी पीठ पर

इस तरह मित्रता अब भी
बची हुई है हमारे जीवन में
पर जीवनाधार वो
मादक यारबाशियाँ नहीं हैं

--------------

विशाल श्रीवास्तव : फैजाबाद में 1978 में जन्म। हिन्दी में पी-एच.डी. और पत्रकारिता तथा जनसंचार में परास्नातक उपाधि के बाद फिलहाल राजकीय महाविद्यालय में प्राध्यापक।
कविताओं के लिए लिए 2005 में 'अंकुर मिश्र स्मृति पुरस्कार'संग्रह "पीली रोशनी से भरा कागज" शीघ्र प्रकाश्य। आजकल कविता के साथ-साथ ब्लांगिंग भी।
विशाल का मोबाइल नंबर - 09415468684

11 comments:

चंद्रभूषण said...

कई कविताएं एक साथ डाल दीं हरे बाबू। 'प्रकाश' बहुत ही अच्छी लगी। विशाल श्रीवास्तव की और भी कविताएं पढ़नी पड़ेंगी।

Anonymous said...

vishal ji ki rachna kafi achchi lagi .aise lekhakon ko is manch par jarur parichay karvate rahie hare dada.

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

पंडित जी, विशाल भाईसाहब ने दिल को छू लिया आपने हौले से और आदरणीय मुन्नू मिश्र जी के बारे में तो जो अभिव्यक्ति दी है उसका क्या कहना......
साधु.....साधु....

VARUN ROY said...

विशाल जी ,
अर्ज किया है-
बीते दिनों की बात थी वो
कि जब 'मित्र' हुआ करते थे
खुशी में गले मिलते थे
गम में दुआ करते थे
स्वार्थ की अंधी गलियों में
भटक गए हम कहीं
नहीं तो हम भी किसी के
कभी मित्र हुआ करते थे .
वरुण राय

Anonymous said...
This comment has been removed by the author.
Anonymous said...

bade bhai,

vishal jee to bade aamad kisim ke nikle inse kahen ki jaldi se bhadasi ho jayen. or aapko bahot bahot sadhuvaad in panktiyoun se ru ba ru karwane ko.

Unknown said...

aap sbka aabhar....
bhvishy me smbhav huaa to vishal bhaee ki aur kvitaen hm log padhenge...

विशाल श्रीवास्तव said...

हरे को धन्यवाद कि उन्होंने कविताएं भड़ास पर डालीं .... भड़ास पर अपनी कविताएं व आप सबकी टिप्पणियां पढ़कर अच्छा लगा
जय भड़ास !!!

विशाल श्रीवास्तव said...

हरे को धन्यवाद कि उन्होंने कविताएं भड़ास पर डालीं .... भड़ास पर अपनी कविताएं व आप सबकी टिप्पणियां पढ़कर अच्छा लगा
जय भड़ास !!!

विशाल श्रीवास्तव said...

हरे को धन्यवाद कि उन्होंने कविताएं भड़ास पर डालीं .... भड़ास पर अपनी कविताएं व आप सबकी टिप्पणियां पढ़कर अच्छा लगा
जय भड़ास !!!

Unknown said...

vishal ka sahi mobile no. hai-09415468684