Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

5.12.09

मक्खन से भी आगे निकला लौंग का तेल

तथाकथित पत्रकारों का नया कारनामा


कबिरा तेरे देश में भांति-भांति के जीव
कुछ तेलू, पेलू और कुछ खबरनबीस।।

ऐसे ही जीवों की एक प्रजाति है पत्रकार। इनके बारे में क्या बताएं, बेचारे दुखिया हैं।।
इसीलिए इनको मेमना भी कहा जाता है। मेमना इसलिए क्योंकि मुलायम गोश्त खाने वाले कभी भी इन्हें हलाल कर सकते हैं। अब पत्रकार हलाल होगा या झटका, इस बहस में मत पड़िए। हर पत्रकार अपनी किस्मत लिखा के लाया है। उत्तर प्रदेश में पत्रकारों की अनेक नस्लें हैं। प्रदेश छोड़िए, शहर में ही नस्लों का अंबार मिल जाएगा। हर पत्रकार अलग ही नसल का होता है। अब किसकी क्या नसल है ये तो उसकी श्रद्धा पर ही निर्भर होता है। हालांकि नस्लीय पत्रकार की भी कई प्रजातियां हैं। अब ये तो अवसर की बात है। किसको क्या मिले ये भी मुकद्दर की बात है।
खैर वर्तमान में पत्रकारों की हाइब्रिड नसल ही सबसे अच्छी मानी जाती है। इस
नसल में मक्खन, घी, तेल सभी का प्रयोग किया जाता है। इसमें क्वालिटी मेनटेन करना ही प्रमुख उद्देश्य होता है। जैसे ही क्वालिटी डैमेज होती है, वैसे ही काम लग जाता है। फिर वही पत्रकार तथाकथित पत्रकार की श्रेणी में आ जाते हैं। एक सर्वे में पता चला है कि बाजार से घी, तेल, मक्खन तथा इनसे संबंधित तैलीय व चिकनाईयुक्त पदार्थ पहले ही बुक हो चुके हैं या खरीदे जा चुके हैं।
कुछ करिश्माई तथाकथित पत्रकारों ने नए आविष्कार खोज निकाले हैं और मंदी के इस दौर में मार्केट में नए प्रोडक्ट्स लांच कर दिए हैं। इन प्रोडक्ट्स में ज्यादा चिकनाई है। जैसे सांडे का तेल, लहसुन और लौंग का तेल। हमने ऐसे कुछ तथाकथित पत्रकारों से जानना चाहा कि मंदी के दौर में भी इतने महंगे और किफायती तेल की क्या जरूरत थी। झट से पलट कर बोले, सर्दी शुरू हो रही है। निष्कर्ष ये ही निकलता है कि सिस्टम की कितनी भी सफाई क्यों न कर ली जाए। ऐसी जंगली घास उगती ही रहेगी।

-ज्ञानेन्द्र, अलीगढ़

1 comment:

brijesh said...

guru baat kahani ke kabileyat paada kijeye jo kahana chaha use thik se kah nahi paye
puri baat is tarah se bhe likh sakte they ki patrakar mausham ke anushar tail lagane ka hunar janata hai

brijesh