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4.12.09

खुशबू की लकीर ही है----डॉ.कुंअर बेचैन की काव्य-यात्रा

शुक्रवार, ४ दिसम्बर २००९


खुशबू की लकीर ही है----डॉ.कुंअर बेचैन की काव्य-यात्रा. कल यानी १ दिसंबर ०९ को राजभाषा मंच की ओर से आयोजित साहित्य अकादमी के कर्यक्रम---कुंअर बेचैन के एकल काव्य -पाठ में शामिल होना एक सुखद -अनुभूति की तरह था.सचमुच बेहद सुरीली आवाज के मालिक कुंअर बेचैन को माँ सरस्वती ने अपनी कृपा से समृद्ध किया है.लगभग दो घंटे के इस कर्यक्रम में --------

कल पुनः बेचैन जी को सुनाने का मौका मिला.एक सुखद एहसा है उनको सुनना.दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मलेन की ओर से हिंदी भवन में --एक शाम कुंवर बेचैन के नाम ---कार्यक्रम में उनके एकल काव्य पाठ में हम डूबते चले गए.डॉ.व्यास ने ठीक ही कहा की पिछले पांच दशक की गुटबंदी के दौर में बिना किसी गुट का होते हुए भी खुद को साहित्य में प्रासंगिक बनाये रखना उनकी सबसे बड़ी सफलता है.परन्तु मेरी नजर में उनके काव्य संसार में अभिव्यक्त वदना और प्रेम के स्वर ने ही उनको प्रासंगिक बनाये रखा.उनके पूर्ववर्ती के रूप में पंकज के काव्य में भी जिजीविषा ,संघर्ष और प्रेम के भाव को ही प्रमुखता मिली है.पंकज और बेचैन की कविताओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है

3 comments:

निर्मला कपिला said...

मैने भी देखा था उनका ये प्रोग्राम् देख को जो सुखद अनुभूति हुयी उसे ब्यान नहीं कर सकी कुछ पँक्तियाँ मैने नोट भी की थी कुअँर जी को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें

मनोज कुमार said...

अच्छी जानकारी। धन्यवाद।

Dr.Aditya Kumar said...

कुँअर बैचैन जी का साहित्य मैने भी पड़ा है .वे एक सशकी रचनाकार हैं .उरई में मेरे बड़े भाई सुकवि स्व०आदर्श 'प्रहरी' का भी उनसे संपर्क था . मै अनुमान लगा सकता हूँ कि उनके काव्य पथ का कार्यक्रम कितना गरिमापूर्ण रहा होगा. साहित्य जगत उनके योगदान से सदैव समृद्ध होता रहे . बैचैन जी को मेरी हार्दिक मंगलकामनायें.