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19.10.07

यूपी में कभी जरूरत ही नहीं पड़ी डीएल-ऊएल दिखाने की...

आजकल मुसीबत है। मजा भी इसी में है। मुसीबत चुनौती देती है। और चुनौती स्वीकारने पर देनी होती है आत्मविश्वास की परीक्षा। आत्मविश्वास तगड़ा रहे तो मुसीबतें को मार-मार कर पलीता लगाया जा सकता है। अब जैसे एक दिन हुआ क्या कि रात में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से ज्यों मुड़ा वापस आने के लिए, भाई लोगों ने पकड़ लिया। दिल्ली पुलिस की टीम जुटी थी चेकिंग में। सामने नंबर प्लेट न देखकर एक हरियाणवी जवान ने गाड़ी रुकने का इशारा किया। पूछा- नंबर प्लेट कहां है? मैंने कहा- पीछे लगी है। उसने बोला- गाड़ी किनारे करो, आगे भी लगवाता हूं। मुझे लग गया, साले छोड़ेंगे नहीं। खैर, रजिस्ट्रेशन के कागजात तो दिखा दिए पर डीएल खोजे नहीं मिला। यूपी में कभी जरूरत ही नहीं पड़ी डीएल-ऊएल दिखाने की। अगले दिन हालांकि डीएल गाड़ी में ही पड़ा मिल गया लेकिन चार पैग लगाने की वजह से उस समय मैं खोज नहीं पाया। अंत में सबने मिलकर तय किया कि इस गाड़ी वाले ने पांच तरह के नियमों का उल्लंघन किया है। मैंने भले बच्चे की तरह पूछ लिया- अंकल, कौन-कौन से नियम तोड़े हैं मैंने। उन्होंने कहा- पहला- डीएल नहीं, दूसरा- आगे नंबर प्लेट नहीं, तीसरा- मोबाइल पर बात कर रहे थे गाड़ी चलाते हुए, चौथा - म्यूजिक चलाए हो, पांचवां- ड्रिंक किए हो। मैंने सारे अपराध स्वीकार कर लिए क्योंकि ये सभी सच थे। मुझे लगा अब बचना मुश्किल है। उधर से आवाज आई, १० हजार रुपेय जुर्माना और एक साल जेल की सजा का प्रावधान बनता है। सुनते ही नशा हिरन हो गया। स्वामी विकास मिश्रा के वचन याद आए, जहां कोई तरकीब काम न करो वहां शब्दाडंबर पर खेल जाओ। मैंने दरोगा की नेम प्लेग देखी। सरदार जी थे, नाम के आखिर में गिल लिखा था। उम्रदराज थे। मैं बोल पड़ा- गिल साहब, देश में दो ही गिल हुए, एक केपीएस गिल और दूसरे आप। केपीएस गिल साहब ने कर्तव्य निष्ठा, बहादुरी और विजन का जो उदाहरण पेश किया वो एक मिसाल है और देश उन्हें गर्व से याद रखता है। उन्होंने कही किसी दबाव के आगे न झुकते हुए सदा सच्चाई और कर्तव्य के रास्ते पर आगे बढ़े। दूसरे आप हैं- जो बिना किसी दबाव के अपने काम को अंजाम दे रहे हैं। ऐसे जज्बे को मैं सलाम करता हूं। मुझे खुशी होगी इस सजा को भुगतने में क्योंकि मैं वाकई अपराधी हूं, यातायात कानून तोड़ने के घोर पाप का भागीदार हूं, मुझे जेल भिजवा दीजिए. लेकिन अंकल एक बात सोच लीजिए....मैं अभी नया आया हूं, बास ने बांस किया तो उन्हें छोड़ने स्टेशन पहुंचा था, पहली बार दिल्ली में घुसा था मुझे खुद पता था नियम तोड़ रहा हूं लेकिन मजबूरी थी। और पहली बार किए गए अपराध को अपराध नहीं माना जाता, सुधरने का मौका देकर छोड़ दिया जाता है। रही ड्रिंक करने की बात तो अंकल गांधी के बेटे ने बाप के सिद्धांत को नहीं माना और जमकर दारू पी। आपके बेटे की तरह हूं, आपका बेटा भी पीकर आता होगा, उसे पीने की जुर्म में जुर्माने का शिकार नहीं होना पड़ता होगा, तो फिर मैं भी पुत्र की ही तरह हूं। बाकी आपकी मरजी, जो हुक्म देंगे वह शिरोधार्य होगा।
वो अनुभवी सरदार इस दौरान लगातार लिखता-पढ़ता रहा। मुझसे आंखें नहीं मिलाईं। उसने धीरे से कहा- यहां साइन कर दो। मेरी तो पूरी तरह फट गई। गए बेटा पानी में। झेलो जेल। हो गई पत्रकारिता। अब पीसो जेल की चक्की। बीवी बेटे कल सुबह सुबकते हुए जेल गेट पर मिलने आएंगे। तभी सरदार जी की आवाज आई..बेटा, छह सौ रुपये का जुर्माना करके छोड़ रहा हूं। अगली बार से ध्यान रखना। मैंने तुरंत छह सौ दिए और जुर्माने की रसीद लेकर चला आया। गिल साहब का नंबर ले लिया ताकि इस एहसान के बदले उन्हें धन्यवाद दे सकूं।
अगले दिन ये किस्सा कइयों को बताया तो लोगों ने कहा बेटा सस्ते में छूट गए। सिर्फ मोबाइल पर बतियाते पकड़े जाने पर १५०० रुपये का जुर्माना देना पड़ जाता है।
तो भाइयों, दिल्ली में कभी दारू पीकर और बिना कागज पत्तर के गाड़ी न चलाना वरना मारे जाओगे। मैंने तो भुगत लिया। अब दिल्ली वाली गलियों में नहीं टहलना।
जय भड़ास
यशवंत

1 comment:

Rakesh Kumar Singh said...

बिल्कुल सही सलाह है. दारू पीकर दारू पिए चालक के साथ आधी रात में सवारी करने का अंजाम पिछले हफ़्ते ही भुगता हूं. बची हुई आधी रात थाने के हाते में कार की अगली सीट पर लेटकर गुज़ारनी पड़ी थी. अगली सुबह छूटा. अब नहीं होगी वैसी ग़लती.