हिंदी की प्रगतिशील कविता की अंतिम कडी त्रिलोचन शास्त्री का रविवार शाम उनके निवास पर निधन हो गया. 91 वर्षीय त्रिलोचन पिछले कई महीनों से बीमार चल रहे थे. कविता संग्रह ताप के ताए हुए दिन के लिए उन्हें 1981 का साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था. उत्तरप्रदेश के सुल्तानपुर जिले के कठघरा चिरानी पट्टी में 20 अगस्त 1917 को जन्में त्रिलोचन का मूल नाम वासुदेव सिंह था. उनके पुत्र अमित प्रकाश ने बताया कि त्रिलोचन ने गाजियाबाद में वैशाली स्थित निवास पर शाम साढे सात बजे अंतिम सांस ली.
प्रमुख रचनाएं
धरती, गुलाब बुलबुल, दिंगत, ताप के ताये हुए दिन, शब्द, उस जनपद का वासी हूं, तुम्हें सौंपता हूं, आत्मालोचन इत्यादि त्रिलोचन की प्रमुख रचनाएं हैं. वे हिंदी दैनिक आज, जनवार्ता, साहित्यिक पत्रिका, हंस, कहानी, चित्रलेखा से भी जुडे रहे. वृहद हिंदी कोष और हिंदी-उर्दू कोष तैयार करने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा.
त्रिलोचन के निधन को नामवार सिंह, केदारनाथ सिंह, अशोक वाजपेयी, मंगलेश डबराल, विष्णु खरे समेत कई लेखकों और कवियों ने हिंदी साहित्य के एक युग का अंत बताया है.
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2 comments:
हिंदी का एक और महारथी चला गया....मेरी श्रद्धांजलि....
त्रिलोचन जी को निधन पर तात्कालिक रचना/सूचना के लिए धन्यवाद
अरविंद कुमार
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