अजीब अक्से रूखे शीशये जहाँ निकलें
यहाँ हर शख्स में इक शख्से दीगरां निकले
वफ़ा की बात लिए
हम जहाँ जहाँ निकले
जमीनें तप गईं बगलों से आसमां निकले
ये कौन चाँद के रोज़न से झांकता है हमें
ये किसका चेहरा किताबों के दर्मियां निकले
हजार बार चुकाए हिसाबे दारो रसन
मगर सरों पे वही कर्जे इम्तिहाँ निकले
भटक रही है अंधेरे में जिन्दगी सौरभ
नयी सबील नए रास्ते कहाँ निकले
जगदीश त्रिपाठी 'सौरभ'
10.6.08
नए रास्ते कहाँ निकलें
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3 comments:
भाई सौरभ,
भटकिये मत, बस जहां से चलिये वहीं से रास्ता बनाते चलिये। गुरदेव का कहा याद रखिये "एकला चालो रे" ओर चल दिजिये।
जय जय भडास
bhai jha ji
aap ki ray sar maathe par. takniki gyan ke abhav me ab tak sampark nahin kar paya tha.apna mobile no. de to kripa hogi.
aap ka
jagdish tripathi
jagdish bhai,
mera number 9823835197 hai.
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