हमारे देश में आजादी के बाद लोकतंत्र तो स्थापित हो गया लेकिन यह जमीनी स्तर पर लागू होने से अभी भी कोसों दूर है। तभी तो यहां अपना अधिकार मांगने पर लोगों की हत्या कर दी जाती है। देश की नौकरशाही और सत्ता का चरित्र अब भी वही है जो गुलामी के समय था। यही वजह है कि झारखंड में सामाजिक कार्यकर्ता ललित मेहता की हत्या इसलिए कर दी गई क्योंकि उन्होंने सूचना के अधिकार के जरिए राष्ट्रीय ग्रामीण गारंटी अधिनियम का सोशल ऑडिट करने का प्रयास किया था। वह इस योजना के तहत किए गए खर्च को आधिकारिक और वास्तविक धरातल पर जांचना चाहते थे। लेकिन सोशल ऑडिट से एक दिन पहले ही उनकी बेरहमी से हत्या कर दी गई। इंजीनियर से कार्यकर्ता बने 36 वर्षीय ललित मेहता की किसी से जातीय दुश्मनी नहीं थी। वह तो पलामू जिले में भोजन के अधिकार अभियान के प्रमुख सदस्य थे।
पुलिस ने उनके मृत शरीर का जल्दबाजी में पोस्टमार्टम कराया और घटनास्थल से 25 किमी दूर ले जाकर दफना दिया। ललित मेहता की हत्या के 12 दिनों बाद सोशल ऑडिट हुआ और पाया गया कि जिले में योजना के तहत खर्च किए गए 73 करोड़ रूपये की राशिः का एक बड़ा हिस्सा ठेकेदारों, अधिकारियों और विकास माफिया के हिस्से में गया है। सोशल ऑडिट से पलामू के लोगों ने जाना कि किस प्रकार उनके हिस्से के धन का हिस्सा गलत तरीकों से भ्रष्ट लोगों के पास पहुंच रहा है। रांची के थियोलाजिकल कॉलेज ग्राउंड में हजारों की तादाद में लोग इस हत्या के विरोध में एकत्रित हुए। इन लोगों ने ललित मेहता की हत्या की सीबीआई जांच की और दोषियों के खिलाफ कार्यवाई की मांग की।ललित मेहता के अलावा देश के अनेक हिस्सों में इस प्रकार की घटनाएं हो रही हैं। अनेक स्थानों पर सूचना मांगने पर कार्यकर्ताओं को धमकियां मिल रही हैं। राजस्थान के झालावाड़ और बेन्सवाडा जिलों में पिछले 6 महीनों के दौरान सोशल ऑडिट करने वाली टीमों पर कई नियोजित हमले हुए हैं। कर्नाटक में भूमि घोटाले को उजागर करने कर सामाजिक कार्यकर्ता लियो सलदान्हा और उनकी पत्नी डॉण् लक्ष्मी नीलकांतन को कर्नाटक पुलिस और फोरेस्ट डिपार्टमेंट ने चंदन की लकड़ी की तस्करी और चोरी के मामले में उन पर निशाना साधा। इन्होंने विवादास्पद बंगलौर-मैसूर इंफ्रास्ट्रक्चर कोरिडोर प्रोजेक्ट में भूमि घोटाले का पर्दाफाश करने में प्रमुख भूमिका निभाई थी।
इसी प्रकार झारखंड के ही गिरीडीह में कमलेश्वर यादव नामक कार्यकर्ता की इन्हीं कारणों के चलते हत्या कर दी गई। उडीसा के कोरापुट जिले के नायब सरपंच और उडीसा आदिवासी मंच के सदस्य नारायण हरेका को भ्रष्टाचार उजागर करने पर मौत के घाट उतार दिया गया। हत्या से पहले उन्होंने ब्लॉक कार्यालय से राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम की जानकारी मांगी थी। ये सभी मामले दिखाते हैं कि लोकतांत्रित तरीकों से अपना अधिकार मांगना कितना खतरनाक है।
दरअसल हमारी व्यवस्था में एक बड़ा तबका ऐसा है जो शक्तिशाली है और सूचना देने से घबराता है क्योंकि इससे उसका नुकसान हो सकता है। ये तबका सूचना के प्रवाह को हर तरह से रोकने का प्रयास करता है। और इसके लिए उसे जो भी हथकंडे अपनाने पड़ें वह अपनाने से नहीं चूकता। यही वजह है कि लोगों की हत्याएं कराईं और उन्हें धमकाया जा रहा है। ऐसे लोगों से सख्ती से निपटने की जरूरत है ताकि असल में जनतंत्र स्थापित हो सके। लोगों को कल्याणकारी योजनाओं और कानूनों से लाभ हो सके व पारदर्शिता और जवाबदेही तय हो सके। ऐसे लोगों से निपटने की जिम्मेदारी सरकार और नौकरशाह की है लेकिन जब यहां भी एक बड़ा वर्ग ऐसा हो तो भ्रष्टाचार से लड़ने वाले इन लोगों के पास क्या विकल्प बचता है ?
19.6.08
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
3 comments:
bhagirath ji,
behad satik sawal uthae hain aapne. lekin isme media ki kitni jabawdehi hai, darasal jo beeda samajik karyakarton ne uthayen hai, usme media ko bhi sahyog karna chaiye, aaj kitne mediakarmi vikas patrakarita me ruchi dikhaten hain, yeh bhi ek jwalant prashna hai, jis par gambhirta se baat honi chahiye, nahi to jo kuchh ho raha hai wahi desh ki niyati ban jayegi.
Priyanka Kaushal
अपने ठीक कहा की ऐसे मामलों में मीडिया के सहयोग की जरूरत है लेकिन में आपकी इस बात से सहमत नहीं हूँ की आज के पत्रकार विकास पत्रकारिता नहीं करना चाहते. दरअसल हमारे देश के मीडिया संस्थान इस प्रकार की ख़बरों को तवज्जो ही नहीं देना चाहते.देश में विकास पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों की कमी नहीं है. सब कुछ बाज़ार तय कर रहा है.
आप पूँछ रहे हैं, भ्रष्टाचार से लड़ने पर ह्त्या क्यों? बहुत ही आसान जवाब है. ह्त्या भी एक तरह का भ्रष्टाचार है. किसी की जिंदगी छीन लेना इन के लिए ऐसा ही है जैसे किसी की जेब से पैसे छीन लेना. इस देश में ज्यादा तर लोग भ्रष्टाचारी है. कभी कभी कोई ईमानदार आदमी जोश में आ जाता है और नादानी कर बैठता है. जिस प्रकार छिपकली रौशनी के पास आए कीड़े को जीभ निकाल कर झटके से मुहं के अन्दर खींच लेती है उसी प्रकार यह भ्रष्टाचारी उस ईमानदार आदमी को मौत के मुंह में खींच लेते हैं. लोग अपने घरों में छिपकली द्वारा की गई हत्या को देखते रहते हैं पर उस कीड़े को बचाते नहीं. इसी प्रकार सरकार, पुलिस, मीडिया, जनता उस ईमानदार आदमी को मौत के मुंह में खिंचते देखते रहते हैं और कोई उसे बचाने आगे नहीं आता. बाद में जलूस निकालते रहिये, रेलियाँ करते रहिये, मरने वाला तो गया. भ्रष्टाचारियों की विशाल सेना के सामने एक ईमानदार सिपाही और कम हो गया.
Post a Comment