किसी ने सच ही कहा है की ' यह बड़े खौफ की मुनादी है, लोग कैसी खुशी के आदि हैं, डरा के खुश हो दूसरो को जो, वो अपने ढंग के आतंकवादी हैं ।
आज पत्रकारों पर भी यही बात लागु होती है, हम अपनी ख़बरों के जरिये क्या संदेश इस समाज को दे रहें हैं क्या संदेश देना चाहतें हैं, इसका जबाव किसी के पास नही हैसच पूछा जाए तो आज समाज के प्रति मीडिया अपनी कोई जबावदेही नही समझता, बस सबसे तेज की होड़ मी वह पाठकों को समाचार परोस रहा ही, इस बात से बेखबर की इसका लोगों पर, महिलों, पुरुषों पर, बच्चों पर, युवाओं पर, समाज-संस्कृति पर और देश पर क्या असर पड़ेगा, इससे न तो संवाददाताओ को न संपादकों को और न मीडिया मालिकों को को फर्क पड़ता है। जब मेरा कोई पत्रकार मित्र यह कहता है की देखना कल फलाने को कैसा मजा चखाता हूँ, तो मुझे क्षोभ होता है की क्या हम लोगों को मजा चखने के लिए पत्रकार बने हैं, बात यहीं ख़त्म नही हो जाती हैमैं पूर्व मे जिस संस्थान मे सेवाएं दे रही थी वहाँ के संपादक महोदय हर मीटिंग मे कहा करते थे की ख़बर ऐसी lao की जिस की बाजार मे चार दिन तक चर्चा हो, सकारात्मक नही नकारात्मक लयो, अब सोचिये की ऐसी मानसिकता के साठ हम समाज को क्या दे पाएंगे। मेरे कहने का यह तात्पर्य बिल्कुल नही की हम समाज के ठेकेदार हैं, पर हमे यह बिल्कुल नही bhulana चाहिए की समाज के प्रति हमारा कोल नेतिक दयित्वा नही है, नही तो आने vaalii nasal के लिए हम भी किसी आतंकवादी से कम नही होंगे , जिनका मकसद सिर्फ़ और सिर्फ़ खौफ फैलाना होता है ।
sath ही yashwant जी और bhadas taam को sadhuwaad की उनके prayas से दिल की बात कहने का manch मिला।
priyanka कौशल, lokmat समाचार, aurangabad.
17.6.08
यह बड़े खौफ की मुनादी है
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
साहस के साथ बिलकुल खरी खरी बात कही आपने। प्रियंका, भड़ासी बनने और पहली पोस्ट पब्लिश करने पर आपको बधाई। यूं ही धारधार और सकारात्मक भड़ास निकालते रहें....
जय भड़ास
Post a Comment