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16.6.08

ये लहरों की नाव है

जमीं पर आफताब है
हाथ में जब शराब है
ये सच हमेशा बोलती है
तभी तो खराब है
हमसे मिलाए आंख
ये किसमें ताब है
समंदर से खेलती हुई
ये लहरों की नाव है
लिक्खी गई जो खून से
ये वो किताब है
अपना तो प्यार दोस्तो
बस बेहिसाब है।
मृगेन्द्र मकबूल

2 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

मकबूल मियां,क्या नारको टैस्ट दे रहे हो :) लेकिन ये पिछली पोस्ट्स में हेडिंग के अलावा कुछ नजर नहीं आया क्या कुछ गोपनीय है??? :)

Anonymous said...

भाई,

इस बेहिसाब प्यार को रखिये मत लुटा दिजीये तभी जमाना याद करेगा।

लुटाते रहिये।