हास्य-गज़ल
जवानी का हंसी सपना तुझे जब याद आएगा
सिसककर टूटी खटिया पर पड़ा तू भुनभुनाएगा
पुराना ठरकी है बूढ़ा न हरगिज बाज आएगा
दिखी लड़की तो नकली दांत से सीटी बजाएगा
निकल जाए हमारा दम बला से चार बूंदों में
मग़र हमको हकीम अपनी दवा पूरी पिलाएगा
पहन पाया न बरसों से बिचारा इक नई निक्कर
बनेगा जब भी दूल्हा वो नई अचकन सिलाएगा
है अपना दूधिया जालिम मसीहा है मिलावट का
भले ही कोसते रहिए हमें पानी पिलाएगा
जड़ें काटेगा पीछे से जो हँस के सामने आया
खुदा ने दी न चमचे को वो दुम फिर भी हिलाएगा
मिली हैं हूर जन्नत में मगर मिलती नहीं लैला
खुदेगी कब्र जब तेरी तो चांद अपनी खुजाएगा
सनमखाने में दीवाने सजा ले अपने वीराने
खिला दे टॉफी बुलबुल को मज़ा जन्नत का आएगा
पुराना-सा फटा, मैला लिए हाथों में इक थैला
बढ़ा के अपनी दाढ़ी मंचों पर गजल तू गुनगुनाएगा
मिले मेले में दुनिया के थके, हारे, बुझे चेहरे
करामाती है बस नीरव जो रोतों को हँसाएगा।
पं. सुरेश नीरव
मो.-९८१०२४३९६६
( पिछली ग़ज़ल पर प्रतिक्रिया देने हेतु भाई अजीत कुमार मिश्र, शशिभुद्दीन थानेदार और मृगेन्द्र मकबूल का आभार...। )
।। जय भड़ास।। ।। जय यशवंत ।।
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12.6.08
जड़ें काटेगा पीछे से जो हँस के सामने आया
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6 comments:
जय नीरव, जय यशवंत, जय भड़ास।
यशवंत दादा के सम्मान में, महीने भर से मन में दबे गुबार के दबाव में एक हास्य गजल भेज रहा हूं। आशा है मंच देंगे, आभारी रहूंगा। भड़ास को घर-आंगन मानता हूं इसलिए भेज रहा हूं। मुलाहिजा-----
शीषॆक- पराठे में आइसक्रीम
त्वचा है भैंस की, चेहरे पर विनम्र बैल की मुस्कान है।
बख्शीश लेते देखा मोहल्ले में तो लगा वाकई महान है।।
विचार तस्करी के हैं, एनजीओ की आढ़त से थोक लाता है।
डाल के चुग्गा दिहाड़ी पर रेजा से फटकता, बिनवाता है।।
इंटलेक्चुअल है, रिभोलूसनरी है, ग्यान की बरखा है।
प्रभात से रात तक चलता चमचों का चरखा है।।
आदमी अच्छा है, बस एक पोशीदा बीमारी है।
जो इसके ईगो को आंख मार दे बलात्कारी है।।
नैतिक इतना है कि आइसक्रीम लपेटी है पराठे में।
इसका हर राजदार सिसकता मिला है घाटे में।।
बाप मास्टर है प्राइमरी का प्रोफेसर बताता है।
खाई मकुनी दरभंगा में दिल्ली में बर्गर ginata है।
कर्ज देते कहता- दोस्त है, दास है, दासानुदास है।
न आना फंदे में किसान यह कर्नाटक की कपास है।।
वीरेंदर गठवाला -किसान-। मुजफ्फर नगर यूपी।
नीरव जी लाजवाब कविता अभी तक की सर्वश्रेष्ठ कहे जाने योग्य!! इससे ज़्यादा कुछ नही कह सकता।
वाकई करामाती रचना है!!!
jeewantata se labalab neerav ji aur unki kavita....kya ab bhi kisi cheej ki jarurat mahsoos hoti hai...
aadarniya NEERAVJI
aapko BHIND ke NIRALA RANG VIHAR
men bhi kai baar suna hai..
BHADAAS par to rojana pad hi rha hun......
vah! bahut khoob likha apne- JADEN KAATEGA PEECHHE SE JO HUNS KE SAAMNE AAYA.
badhai neerav ji
regards
ABHISHEK
jaipur
बड़ी ही लज़ीज चीज है पूरी खा लिया पर अभी भी मन नहीं भरा, पंडित जी ऐसे ही जायकेदार-धमाकेदार पकवान कलम से चला-चला कर कागज की कड़ाही में पकाते रहिये.....
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