DIL KI BAT: वो बरगद का पेड़ मुझे अब भी छाया देता है
घर की बुनियादें , दीवारें , बामों - दर थें बाबू जी
सबको बाँधे रखने वाला ख़ास हुनर थें बाबू जी
तीन मुहल्लों में उन जैसी कद - काठी का कोई न था
अच्छे - खासे , ऊँचे - पूरे कद्दावर थें बाबूजी
अब तो उस सूने माथे पर कोरेपन की चादर है
अम्मा जी की सारी सज - धज , सब ज़ेवर थें बाबू जी
भीतर से ख़लिस जज़्बती और ऊपर से ठेठ पिता
अलग - अनूठा , अनबूझा सा इक तेवर थें बाबू जी
कभी बड़ा सा हाथ खर्च थें कभी हथेली की सूजन
मेरे मन का आधा साहस आधा डर थें बाबू जी.........
अनुराग जी बातें दिल को छू गयीं
18.6.08
DIL KI BAT: वो बरगद का पेड़ मुझे अब भी छाया देता है
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2 comments:
Aap ko kavi kaa naam awashya likhna chaahiye tha....
बढिया है, वैसै ये अनाम महोदय तकनिकि के कम जानकार हैं नही तो लिंक पर जरूर क्लिक करके पता कर लेते।
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