प्रिय दोस्तो,
मेरे पिता का निधन हो जाने से बहुत दिन तक आपके साथ नहीं रह सका इसके लिए क्या कहूं। अब मैं फिर आपके साथ हूं। पिता की याद में यह कविता....
एक पेड़ था हमारे घर में,
विशाल, उन्मुक्त और उत्साही
ताजी हवा का एक झौंका
और वह झूम उठता था
अपने पूरे यौवन के साथ
उसकी ताजी हंसी जीवन देती थी
हमारी शिराओं और धमनियों को
उसकी डाल-डाल पर दौड़ते-भागते
हम न जाने कब बड़े हो गए
इतने बड़े कि उसका कद छोटा पड़ने लगा
फिर एक दिन उसने समेट लिया खुद को
उसका उत्साह उसकी हंसी खो सी गई कहीं
हम समझ ही नहीं सके उसके मौन की भाषा
उस मौन में भी हमे वह अपना सा लगता
यह अपना न जाने कब थम गया
फिर एक दिन समेट ली उसने अपनी छाया भी
आज वह पेड़ नहीं रहा
नहीं रहे उसके बोल
उसकी अबोल भाषा आज हमें बोल देती है।
6.6.08
एक पेड़ था हमारे घर
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2 comments:
भाई,
आपके दुख में हम सब आपके साथ हैं। आपका आपके पिता जी के लिये स्नेह ओर प्यार, आस्था आपकी लेखनी से झलकता है।
चलिये अब अपने कलम से अपने पिता जी को जिन्दा रखिये।
जय जय
कठिन घड़ी में हौंसला अफजाई के लिए शुक्रिया
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