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31.1.09

आरती "आस्था"


            आरती "आस्था"

तुम कहते हो कि

हर किसी कि

प्रार्थना के दौरान

जलना पड़ता है तुम्हे

और हर बार ही

होता है तुम्हारा अवमूल्यन

क्योकि प्राथना कि

स्वीकृति के साथ ही

ख़त्म हो जाता है

तुम्हारा महत्व...................

तुम्हारा अस्तित्व..............

जबकि सच यह है कि

कभी नही होता खत्म

मेरा अस्तित्व

क्योकि औरो से इतर

अनवरत चलने वाली है

मेरी अपनी प्रार्थना

जिसमे शामिल है

हर किसी की

अनसुनी प्रार्थना

और जिसे कहते हो

तुम अवमूल्यन मेरा

उसे मैं मूल्यवर्धन

क्योकि हर बार

प्रार्थना की स्वीकृति के साथ ही

बढ़ जाता है

मेरा मूल्य

मेरी अपनी नजरो मे ....................!

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