विनय बिहारी सिंह
रामकृष्ण परमहंस से एक व्यक्ति ने पूछा था- हम संसारी लोगों का ध्यान ज्यादा देर तक नहीं लगता। आंख बंद करते हैं तो एक मिनट तक तो ध्यान कर पाते हैं लेकिन उसके बाद मन भटकने लगता है। तब क्या हम लोगों को जप करना चाहिए? तब रामकृष्ण परमहंस ने कहा- हां। जप में बहुत शक्ति है। जैसे- कोई नाव रस्सी से बंधी है तो अगर कोई रस्सी पकड़ ले तो नाव ( भगवान) तक पहुंच सकता है। जप वही रस्सी है। एकाग्र होकर जप करना चाहिए। किस देवता पर एकाग्रचित्त हों? इसका जवाब है- जो आपको पसंद हो। कहां ध्यान करें? इसका जवाब रामकृष्ण परमहंस ने दिया था- या तो हृदय में या दोनों भृकुटियों के बीच में। दोनों भृकुटियों के बीच को ही गीता में नासिकाग्र कहा गया है। नासिकाग्र पर ध्यान करना चाहिए। मान लीजिए यह भी संभव नहीं है। तो किसी भी देवता का ध्यान कर जाप कीजिए। कुछ नहीं तो सिर्फ- राम, राम, राम का हीजाप कीजिए। कुछ संतों ने कहा है कि सांस लीजिए तो मन ही मन रा.... कहिए औऱ सांस छोड़ते वक्त म..... कहिए। यह भी अजपा जाप है। इससे आपका मन शांत होगा। रामकृष्ण परमहंस ने कहा था- ईश्वर में भक्ति हो और मनुष्य जाप करता रहे तो उसका काम बन जाएगा। वे कहते थे- जाप आपके भीतर कई क्षमताएं पैदा कर देता है।
No comments:
Post a Comment