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29.1.09

जिसमे इंसान को इंसान बनाया जाए


आग बहती हैं यहाँ गंगा में और झेलम में भी, कोई बतलाये कहा जाके नहाया जाए, अब तो मजहब कोई ऐसा भी चलाया जाए, जिसमे इंसान को इंसान बनाया जाए, विश्व विख्यात कवि पदमश्री गोपालदास नीरज ने जब ये पंक्तिया मंच से सुनाई तो सारा परिसर में तालियों से गूँज उठा। मौका था २६ जनवरी पर आयोजित कवि सम्मेलन का, जिसमे जाने माने कवियों ने हिस्सा लिया और शाम को यादगार बना दिया।सम्मेलन में लंबे अरसे बाद फिल्मी दुनिया के सफल गीतकार नीरज को मंच का संचालन करते देखा गया। नीरज ने अपनी सुविख्यात पन्तिया गीत खामोश है गजल चुप है रुबाई है दुखी इसे मौसम में नीरज को बुलाया जाए सुनाई। साथ ही मैं चलता हूँ चलता हूँ अभी चलता हूँ, गीत दो प्यार के झूम के गा लूँ तो चलूँ गुनगुनायी। सम्मेलन की शुरुआत आगरा से आई लोकप्रिय कवियत्री चेतना शर्मा ने सरस्वती वंदना से की। इसके बाद उन्होंने सिंगार की कविता पढ़ी बोले थे- जब टूटता कोई दिल आवाज नही होती। टूटे हुए पारो से परवाज नही होती। चाहत का मकबरा न ये ताजमहल होता। दुनिया में हर हसीना मुमताज नही होती।वीर रस के जाने माने कवि राजवीर सिंह क्रांतिकारी ने अपने ओज के अंदाज में कविता पढ़ी- जब तलक पीते रहे तुम खून हम खामोश थे। मेरठ से आए पुअपुलर मेरठी ने हास्य रस की कविता पढ़ लोगो को गुदगुदाया- याद आने लगे चाचा ग़ालिब भाई माजरा क्या है ताड़ता हूँ हरेक लड़की को वरना आँखों का फायदा क्या है आगरा से आए युवा कवि शशांक पभाकर ने देश की साम्प्रदायिकता पर व्यंग किया।
आज फ़िर आदमी नंगा हो गया गया है ।
दोस्त मेरे शहर में दंगा हो गया है ॥
बुलड़शाहर से आए ओज के कवि अर्जुन सिसोदिया ने वीर रस की कविता पढ़ी
दिल्ली दस घंटे की इजाजत हमे जो देदे
इंच इंच पाक में तिरंगा गाढ आयेंगे।
युवा कवि चेतन आनंद ने भी कविता पढ़ी। बोले थे -
न आंसू की कमी होगी
न आँहों की कमी होगी
कमी होगी तो बस तेरी निगाहों की कमी होगी
की मेरे कत्ल का चर्चा
अदालत में न ले जाना
तुझे ख़ुद को बचाने में
गवाहों की कमी होगी
राहुल कुमार

1 comment:

अमित द्विवेदी said...

rahul ji mazaa aa gaya. aapne ek kavi sammelan ki achhi tasveer logon tak pahunchayee hai