अगर उंगली खबरियां न्यूज चैनल्स पर उठे तो मजाल है किसी न्यूज़ चैनल पर भूत-प्रेत, काँमेड़ी और दहशत फैलाने वाले प्रोग्राम दिखाई दें... मै बात कर रहा हूं हाल ही में मनमोहन सिंह द्वारा रोके गए मीड़िया सेंशरशिप पर । जैसे ही यह बिल पास होने की कगार पर था मीड़िया ने अपने पांव बंधते देख झटपटाना शुरू कर दिया और अपने साथ ले लिया विपक्ष को । अब संवाददाताओं के पास समय नही क्योकि वो जुटे है नेताओ की राय लेने में की कितना जरूरी है लोकतंत्र के चोथे पावं पर बेड़िया डालना... कही हड़बड़ी में बाईट लेते वक्त हमारे संवाददाता भूल न जाए की कुछ महीने पहलें घुस खोरी पर इसी नेता का स्टिंग किया था ...और लोगों को दिखाना शुरू किया कि इससे हमारे समाज पर कितना बुरा असर पड़ सकता है शायद एनसीआर में जहाँ 5-6 रेप होते थे अब १० या १२ हो सकते है सरकार के लिए एक अच्छा तरीका था मीड़िया को सरकारी भोपू बनाने का क्योकि इस बिल के तहत मीड़िया -हमलों या अन्य परिस्थति में लाइव कवरेज नही दिखा सकता सरकार जो फुटेज देगी उसे ही दिखाना होगा....और तो और एक डीएम लेवल का आँफिसर चैनल्स के उपकरण और खबर को बाधित कर सकता था पर मीड़िया ने एकजुटता दिखाकर इस बिल को टलवा दिया ।
बात सिर्फ इतनी है कि कोई भी सरकार या नेता या पार्टी 'मीड़िया ' के पांव नही बाधं सकता मीड़िया को खुद अपनी सीमाएं और उद्देश्य बनाने होंगे... अब कौन समझाएं इन अकलवरों को......
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