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1.12.09

छिः ऊपरवाले.....

..... जाना तो तय था उनका। मुंबई में डाक्टरों ने कोई १५ दिन पहले जवाब दे दिया था। सो हारकर परिजन उन्हें कलकत्ता ले आये। एक दिसंबर २००९ को वे इस नश्वर संसार को अलविदा कह गए। विनोद बैद मेरे दूर के रिश्ते में चाचा हुआ करते थे।कहने को तो उन्होंने जीवन में ५० बसंत देखे, पर इस कमबख्त जिंदगी में रोग ने उन्हें जिस तरह परेशान किया, उसे देखते हुए तो यही कहा जा सकता है की ५० साल की उनकी जिंदगी में बसंत के साथ पतझड़ का भी बराबर का हिस्सा बना रहा. पिछले दिनों मुंबई में डाक्टरों ने जब उनकी बाकी साँसों का हिसाब थमा दिया, तब घरवालों के पास न कोई उम्मीद बची और न कोई चारा....चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते थे. विनोद चाचा गर्दन में हुए घाव से परेशान थे. इस बिमारी की डाक्टरी भाषा कुछ अलग हो सकती है, पर मूल बात यही है की जालिम गर्दनिया रोग ने उन्हें संसार छोड़ने को विवास कर दिया. इसके पहले उन्होंने देस के तमाम बड़े शहरों में ओपेरेसन करवाए.जिस बात पर आज ऊपरवाले से झगड़ने को दिल करता है, वह विनोद चाचा की कम उम्र में हुई मौत कत्तई नहीं है. ओशो को पढने के बाद जीवन को उत्सव मान ने लगा हूँ, इसलिए कोई बड़ी शिकवा -शिकायत नहीं रखता. पर अगर मुझे दुख है तो इस बात का की कमीने कमबख्त ऊपरवाले ने जिस दिन विनोद चाचा को मौत दी, उसी दिन उनके इकलौते बेटे प्रशांत का जन्मदिन भी है. यानि ऊपरवाले ने बेटे के जन्मदिन पर पिता का साया छीन लिया. यही नहीं, उनकी मृत्यु एक दिसंबर को हुई, और इसके दुसरे दिन, यानी २ दिसंबर २००९ को उनके विवाह की रजत जयंती थी. अब विनोद चाचा की विधवा पत्नी किसे कोसे ?कई विद्वानों को पढता हूँ तो कभी कभी तसल्ली मिलती है. जिंदगी का सार भी कभी समझ में आता है. पर आज की घटना के बाद ऊपरवाले को उसके गुनाहों के लिए कैसे माफ़ करूं.१८ साल का प्रशांत अब अपने पिता की दुर्लभ मुस्कान कभी नहीं देख सकेगा. १ दिसंबर की हर शाम पिता ने प्रशांत को जन्मदिन की बधाईयाँ दी होंगी, दादा-दादी, मम्मी-पापा, इकलौती बहन और दुसरे सदस्यों ने मूंह मीठा कराया होगा. पर एक दिसंबर २००९ की काली शाम प्रशांत कभी नहीं भूल सकेगा. इस दिन शाम को ६.३० बजे वह अपने प्यारे पापा को मुखाग्नि दे रहा था. जिस पिता ने हर एक दिसंबर को प्रशांत का मूंह मीठा कराया होगा, वही प्रशांत आज इश्वर की काली लीला के आगे मजबूर था.कोलकाता के नीमतल्ला महास्म्शान घाट पर लोग आपस में यही चर्चा कर रहे थे. प्रशांत की जिंदगी में एक दिसंबर का दिन कई बार आएगा. पर इस दिन उसकी आँखों से ऊपरवाले के क्रूर कारनामों के लिए कुछ आंसू भी टपकेंगे. छि ऊपरवाले.....
प्रकाश चंडालिया

1 comment:

Roshani said...

kabhi kabhi jindgi kaisi majak ban jati hai...
aadmi samay ke sath hadson ko bhool jata hai par yahan to samay hi aisa hai ki wah chah kar bhi naa bhool payega....