(1)
सुर्ख फूलों में किसी तौहार को जिंदा किया
एक तितली ने सभी के प्यार को जिंदा किया
तुम हुए सागर तो मैं भी एक बादल की तरह
मिट गया मिट कर नदी धार को जिंदा किया
बागबाँ से आपने फूलों की कीमत पूछ कर
खुशबुओं के देश में बाजार को जिंदा किया
जिंदगी ने एक भूखे से निवाला छीन कर
फिर किसी शैतान के किरदार को जिंदा किया
था मैं पत्थर खुरदरा तुमने नदी बन कर मुझे
छू लिया छूकर किसी फनकार को जिंदा किया
ग़ज़लों से ही कुछ शेर
(1)
कहानी एक अंजानों में चुप है
नदी आकर के मैदानों में चुप है
लम्बों पर सिर्फ दुनिया की कहानी
तुम्हारी बात अफसानों में चुप है
(2)
कभी गाता कबीरा का है, इकतारा मेरे भीतर
कभी में देखता हूँ, ये जहाँ सारा मेरे भीतर
हुआ आँखों के आगे कत्ल मैं बोला नहीं कुछ भी
ये कब से रह रहा था एक हत्यारा मेरे भीतर
(3)
बड़ा आसान-सा यूँ है किसी से प्यार कर देना
मगर मुश्किल बहुत है प्यार का इजहार कर देना
मुझे अच्छा नहीं लगता है दिल की डायरी को यूँ
सरे बाजार, लाकर के फकत अखबार कर देना
(4)
राज-भवनों में कंस ही होंगे
कृष्ण जेलों में पल रहा होगा
प्रश्न की रीढ़ तब झुकी होगी
सामने तन के हल रहा होगा
(5)
ढ़ाई आखर से कुछ नहीं बाहर
पढ़ के गीता-कुरान को देखा
(दिनेश सिंदल जी जोधपुर में ही बैंकिंग के फील्ड में सेवारत हे.मगर समय निकाल कर साहित्य की सेवा कर रहें है. वे बड़े सरल स्वभाव के हे. मेरी उनसे मुलाक़ात आकाशवाणी चित्तौड़ में एक रेकॉर्डिंग के दौरान हुयी थी.)
संकलन माणिक का है
1 comment:
सुर्ख फूलों में किसी तौहार को जिंदा किया
एक तितली ने सभी के प्यार को जिंदा किया
वाह दिनेश भाई
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