हिंदी सिनेमा का इतिहास-11
राजेश त्रिपाठी
महिलाओं पर केंद्रित कथाओं पर हृषिकेश मुखर्जी की ‘ अनुपमा’, ‘अनुराधा’, सत्यजित राय की ‘चारुलता’, वी. शांताराम की ‘ अमर ज्योति’ (1936) उल्लेखनीय फिल्में कही जायेंगी। ‘बॉबी’ (किशोर प्रेम की किशोर वय कलाकार जोड़ी की फिल्म), ‘तराना’ (एक बनजारन और एक रईस युवक की प्रेमकथा), नासिर हुसेन की ‘ जब प्यार किसी से होता है’, ‘हम किसी से कम नहीं’(1978), बाल विवाह पर कारदार की ‘शारदा’ (1942), वी. शांताराम की 1937 में बनी ‘दुनिया न माने’ (वृद्ध व्यक्ति से युवा लड़की के विवाह के कथानक पर),अज्ञातयौवना की कहानी ‘बालिका वधू’, ‘उपहार’, दहेज प्रथा पर वी. शांताराम की ‘दहेज’ (1950) भी यादगार फिल्में हैं।
इसके अलावा बी. आर. चोपड़ा की गीतविहीन फिल्में ‘कानून’, और ‘इत्तिफाक’ सस्पेंस फिल्म के रूप में व राजश्री प्रोडक्शंस की ‘तपस्या’ बड़ी बहन के त्याग की कहानी के लिए याद की जाती रहेंगी। राज कपूर की ‘श्री 420’ में चार्ली चैपलिन की तर्ज पर व्यंग्य करने की कोशिश की गयी थी। 1947 में बनी ‘दूसरी शादी’ दूसरी पत्नी की सांसत झेलती पहली पत्नी की व्यथा-कथा थी। ‘बूटपालिश’ राज कपूर द्वारा निर्मित सफल बाल फिल्म थी। ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ और ‘सौतन’ बलिदान होनेवाली दूसरी औरत की कहानी थी। अवैध संतान की कहानी पर 1959 में बी.आर. चोपड़ा की यश चोपड़ा निर्देशित फिल्म ‘धूल का फूल’ आयी , जिसका मोहम्मद रफी द्वारा गाया गीत- तू हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा, इनसान की औलाद है इनसान बनेगा’ काफी लोकप्रिय हआ था। ‘कुआंरा बाप’ और ‘मस्ताना’ में भी यही कथानक दोहराया गया। (क्रमशः)
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