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2.3.11

कविता -मुनादी

-राजेश त्रिपाठी

राजा ने करायी मुनादी

ये जो है देश की

गरीब आबादी।

ये हो गयी है पेटू बड़ी

आ खड़ी हुई है इससे

देश में मुश्किल घड़ी।

इसके चलते बढ़ गये

जिंसों के दाम

जिससे तबाह है

देश का हर खासोआम।

बड़े हो गये हैं इसके सपने

हद से आगे बढ़ गयीं

इसकी उम्मीदें।

व्यंजन जीम रही है

वह आबादी जो थी

सूखी रोटी की आदी।

राजा साहब हैं परेशान

देश की समस्या का

भला क्या हो समाधान।

मंत्री से कहा निकालो कोई राह

यह बढ़ती महंगाई

मुल्क को कर रही तबाह।

मंत्री ने कहा हुजूर

एक रास्ता है जरूर

पर क्या वह होगा सबको मंजूर।

राजा बोले मुंह तो खोलो,

सबकी छोड़ो

तरकीब तो बोलो।

मंत्री बोला जनाब

जो देख रहे हैं बड़े ख्वाब

उनके ख्वाबों के

कतर दे पंख।

उन पर लगा दें ऐसी पाबंदी

जिसकी सोच से हो जाये

उनका जीना हराम

न रातों को नींद न दिन को आराम।

ऐसे में वे भूल जायेंगे

हर सुख-चैन

आंसुओं में डूब जायेंगे ।

उनके नैन।

खाना तो क्या वे

खुद को जायेंगे भूल

तब न उनकी आंखों में

सपने संजेंगे

न वे चैन से रहेंगे।

तब वे न गा सकेंगे

न बजा सकेंगे

चैन का बाजा।

ये सुन मुसकराये

खुश हुए राजा।

2 comments:

डा. मनोज रस्तोगी , मुरादाबाद said...

अच्छा व्यंग,बधाई ।
rastogi.jagranjunction.com

निर्मला कपिला said...

बहुत सुन्दर कविता। आभार\