Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

9.3.11

काश!

सपनें गिरवी रख कर

नींद उधार मिल जाती

पुरानी फिल्मों की तरह

याददाश्त चली जाती

और कोई कोशिस भी न करता

वापिस लाने की

दोस्त शिष्टाचार की क्लास छोड

अपनेपन को बचाने की सोचतें

दुश्मन डर कर योजनाएं बनाने की बजाए

खुल कर ललकारता युद्द के लिए

बोलता..... आक्रमण.... महाभारत की तरह

पत्नि बेवजह फिक्र करना छोड देती

और दोस्तों पर तंज कसना भी

माँ कभी-कभी बीमारी न बताकर

जो मेरी बडाई वो सुनती है

उसका कोई किस्सा सुनाती

पिता की अपेक्षाएं घट जाती

स्वीकार कर लेता मेरा नालायक होना

प्रेमिका मुझे अपना मोबाईल नम्बर

बदलने का एसएमएस कर देती

पुराना दोस्त मिलने पर

बच्चों की खैरियत न पूछता

बच्चा मेरी हैसियत से ज्यादा

कोई चीज़ लाने की जिद न करता

भाई मुझे ले जाता एकांत में

और समझाता अपनी मजबूरी

जो नाराज़ है बरसो से वो

बिना किसी सफाई के मान जाता

जिनके चेहरे नापसंद हैं बेहद

उनसे रोज़ाना मिलना न होता

शुभकामनाओं के औपचारिक

फोन/एसएमएस न आतें नये साल/जन्मदिन पर

रिश्तेंदार कद,पद और कर्जे की

तफ्तीश न करते पाये जातें

तब शायद इस बेवजह मशरुफ

रहने वाली दूनियादारी में

कुछ दिन और जी सकता था मैं...।

डा.अजीत

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