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3.3.11

टूट रही है भारत की कमर


बीपीओ कॉल सेंटर हमारे देश की कमर तोड़ रहे है। इस सेक्टर में १८ से ३० साल के युवा लोगों को ही काम मिलता है। भारत के कई बड़े महानगरों बंगलूर, हैदराबाद, कोलकाता, मुंबई, पुणे, चेन्नई और नई दिल्ली में इसने जाल बिछा लिया है। हमारा देश भले ही धनी माना जाता है लेकिन यहां के नागरिक गरीब ही है। इसका फायदा विदेशी कम्पनियों भुनाने में लगी है। यहां का युवा वर्ग कम पैसों में ८ घंटों से ज्यादा समय तक काम करने को तैयार है, यहीं कारण है कि ये कम्पनियां देश में फल-फूल रही है। भले ही इस इंडस्ट्री से देश को लाभ होत रहा है... भारत को बीपीओ से राजस्व 10.9 अरब अमरीकी डालर और आई टी व संपूर्ण बीपीओ से राजस्व 30 अरब अमरीकी डालर है (2008 वित्तीय वर्ष में अनुमानित) | इस प्रकार भारत का कुल बीपीओ उद्योग में हिस्सा कुछ 5-6 प्रतिशत है, भारत में पिछले वर्ष की तुलना में 38 प्रतिशत उद्योग बढ़ा है ।

लेकिन इसके बदले देश को अपनी युवा पीड़ी खोनी पड़ रही है। इस सेक्टर में नईं उम्र के लड़के लड़कियां को, १२ वीं या अन्डर ग्रंजुऐट की न्यूनटम शिक्षा वालों को काम मिल जाता है। जिसके बदले उन्हें १० हजार रुपये से ज्यादा सैलरी मिल ही जाती है। इसी लालच में ये बच्चे ना तो आगे ठीक से पढ़ पाते है और ना ही इनके मां-बाप इनको पढ़ने में दबाव डालते है। इसका खामियाजा यकिकन इन्हें बढ़ती उम्र के बाद उठाना पड़ेगा। क्योंकि अब उनके पढ़ने लिखने का समय बीत चुका है। आज उनका परिवार और जिम्मेंदारियां उनके साथ है। यानी, भविष्य में बेरोजगारी और बेकारी से देश की हालात खस्ता होने वाली है। जवानी में ही जब बैठ कर खाने की बुरी आदत ने अब उनकी कमर तोड़ दी है। समस्या और जटील तब हो जाती है, जब अधिक सैलरी से उनका लाइफ स्टाईल पश्चिम संस्कृति में ढ़ाल लिया है।
ऐसे में क्या होना चाहिये, यह एक बड़ा सवाल है ?

कहीं ऐसा तो नहीं कि ये विकसित देशों की भारत के खिलाफ कोई गहरी साजिश हो। जिसमें ये एक ही तीर से दो निशाने लगा रहे है। एक ओर तो ये देश की युवा पीड़ी को बेहकाकर खुद लाभ ले रहे है, वहीं दूसरी ओर यही उनकी कमर तोड़ रहे है। भारत ने चंद पैसों के राजस्व के बदले, देश की जवानी विदेशी कम्पनियों को बेच दी है। देश को बचाने के लिए कुछ ठोस कदमों की आवश्यकता है।

सूरज सिंह।

4 comments:

Alka Sharma said...

बिलकुल सही बात की तरफ इशारा किया है आपने सूरज जी यह कॉल सेंटर आज हमारे युवा वर्ग को खरीद चुका है इनके अंदर काम करने वालों की हालत बाद से बदतर होती है ! बाहर से पैसे की चमक भले ही दिखाई देती है इसमें लेकिन अंदर काम करने वाला एक एजेंट हज़ार गालियाँ सुनता है ना सिर्फ कस्टमर की बल्कि अपने बॉस की भी! उनका पानी पीने का समय बाथरूम जाने का समय और कैसे बैठना है ये सब वहां के बॉस बताते हैं ! और एक उम्र सीमा के बाद उनको धकेल दिया जाता है बाहर की तरफ ! वह रे कॉल सेंटर !

Shikha Kaushik said...

suraj ji -you are very right .it is the need of the hour that govt.must given special concern over this issue .

SHASHIKALA said...

i think u raise very serious issue and i m totally agree with u r comments.

Suraj Singh Solanki said...

thanx to all of you