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5.7.11

भगवान की मौत-ब्रज की दुनिया


doctor

मित्रों,जब भी हमारा शरीर बीमार होता है तो हमें दो शख्स याद आता है एक ऊपरवाला भगवान और दूसरा नीचेवाला भगवान यानि डॉक्टर.ऊपरवाले भगवान का किसी को स्वस्थ करने में कहाँ तक योगदान होता है मुझे तो नहीं पता लेकिन नीचेवाले भगवान का पूरा योगदान होता है यह पता है.परन्तु हमारे राज्य बिहार में चिकित्सा की जो स्थिति है उससे तो यही लगता है कि नीचेवाले भगवान की मौत हो गयी है या फिर वह अपने महान पद से नीचे गिर गया है.मानवता का यह पुजारी उपभोक्तावाद की गन्दी हवा से प्रभावित होकर पैसों का हवसी बन चुका है.हिप्पोक्रेतिज की शपथ को तो वह भुला ही चुका है वह यह भी भूल गया है कि वह ईन्सान है;कोई पैसा कमाने की मशीन नहीं.

                मित्रों,पिछले दिनों मेरा डेढ़ वर्षीया भांजा जो इन दिनों हमारे पास हाजीपुर में आया हुआ है बीमार पड़ गया.सुबह के ८ बजते-बजते वह नीचे और ऊपर दोनों तरफ से पानी उगलने लगा.हमारा पूरा परिवार घबरा गया और हम बच्चे को कंधे से चिपकाए हाजीपुर के मशहूर शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर राम वचन ठाकुर के घर सह क्लिनिक की तरफ भागे.वहां का नजारा बड़ा भयावह था.सैकड़ों माएँ अपने बीमार बच्चे को गोद में लिए अपनी बारी आने या नंबर लगने का इंतज़ार कर रही थीं.मेरा भांजा अब भी मेरे कंधे पर था और मुझे यह पता नहीं था वह होश में है या बेहोश है.मैंने कंपाउंडर से तत्काल डॉक्टर से मिलवाने की विनती की तब वह कहने लगा कि २ बजे से पहले ऐसा संभव नहीं है;आप बच्चों को इलेक्ट्राल पिलाईये.मेरे यह कहने पर कि बच्चा मुंह से कुछ भी नहीं ले रहा है तो उसने नाराज होते हुए कहा कि बच्चा अपने मन से थोड़े ही पिएगा आप जबरदस्ती पिलाईये.मैं सुनकर सन्न रह गया.तभी हम भीड़ में जहाँ खड़े थे वहां करीब साल भर के एक बच्चे ने माँ की गोद में ही ईलाज की प्रतीक्षा करते-करते दम तोड़ दिया.माँ के चित्कार से पूरा माहौल गमगीन हो उठा.मेरा मन भी खट्टा हो गया और मैंने वहां से खिसक लेने में ही अपने भांजे की भलाई समझी.
               मित्रों,ठाकुर जी के घर के पास ही एक मशहूर होमियोपैथी डॉक्टर का घर था.हताश-निराश हमने उन डॉक्टर बिजली सिंह के घर का दरवाजा खटखटाया.बिजली बाबू जो लगभग ८५ साल के होंगे खुद ही बीमार मिले.हालाँकि उन्होंने हमें हिम्मत बधाई और पत्नी को चाय बनाने के लिए कहा.साथ ही सदर अस्पताल के पास जाकर अपने बेटे से ईलाज कराने की सलाह दी.चाय को न तो आना था और न आई.इसी बीच एक अच्छी बात यह हुई कि मेरा भांजा वहीं बैठे-बैठे इलेक्ट्राल पीने लगा.हालाँकि मैं भी यही चाहता था कि उसे बिजली बाबू के बेटे से ही दिखाया जाए लेकिन पिताजी की राय थी कि सरकारी अस्पताल में दिखाना चाहिए.हम सरकारी अस्पताल में गए भी और पर्ची कटवाई लेकिन जैसे ही डॉक्टर से कहा कि मामला इमरजेंसी का है इसलिए जल्दी देख लीजिए;वह हड़क गया और देखने से ही मना कर दिया.नीतीश सरकार का एक नंगा सच मेरी आँखों के आगे था.मुझे सरकारी अस्पताल और सरकारी डॉक्टरों पर कितना गुस्सा आ रहा था मैं शब्दों में कह नहीं सकता.जी में आ रहा था कि सबकुछ नेस्तनाबूत कर दूं.
         मित्रों,वहां से हम जौहरी बाजार भागे जहाँ एक पंक्ति में कई निजी नर्सिंग होम हैं.वहां एक दलाल पीछे पड़ गया.हमने दोगुना फ़ीस देकर नंबर भी लगवा लिया लेकिन जब पूछा कि डॉक्टर राजेश कितनी देर में देखेंगे तो बताया गया कि कम-से-कम आधा घंटा लगेगा.मैं ईन्तजार नहीं कर सकता था,हालात भी ऐसे नहीं थे;इसलिए पैसा वापस ले लिया और डॉक्टर गौरव की क्लिनिक में आकर उसका इंतजार करने लगा.गौरव हमसे पूर्व-परिचित है और उसका ननिहाल मेरे भांजे के गाँव में ही है.उसको पटना से आने में दो घंटे लग गए.तब तक मैं बच्चे को इलेक्ट्राल पिलाता रहा.गौरव आया और आते ही स्लाइन चढाने की जिद करने लगा.मैंने कहा कि जब बच्चा मुंह से इलेक्ट्राल पी ही रहा है तो फिर नस से ग्लूकोज चढाने की जरुरत क्या है.मेरे काफी जिद करने पर उसने निराश मन से दवा लिखी.अब तक तो मैं सिर्फ सुनता आ रहा था कि हाजीपुर के डॉक्टर सर्दी-खांसी में भी स्लाइन चढ़ा देते हैं आज देखा भी.आखिर हम समकालीनों ने पैसे को ही सब-कुछ जो बना दिया है.इसलिए तो वह धरती के इस भगवान का भी भगवान बन गया है.
             मित्रों,यह युग पैसे के साथ-साथ मशीनों का युग भी है.भगवान तो भगवान नहीं ही रहा ईन्सान भी अब ईन्सान नहीं रह गया है.आप किसी से भी मिलिए तो ऐसा लगेगा जैसे किसी मशीन से मिल रहे हैं.ओढ़ी हुई मुस्कान होठों से चिपकी हुई होती ही है और होठ कुछ रटे-रटाए शब्द उगलते रहते हैं किसी ऑटोमैटिक आंसरिंग मशीन की तरह.आज की दुनिया में ऐसे व्यवहार को प्रोफेशनलिज्म कहा जाता है.मुझे इस प्रोफेशनलिज्म का कटु अनुभव तब हुआ जब मैं अपनी मामी जो पटना में डॉक्टर हैं से मिला.वही मामी जो एक समय मेरे बीमार पड़ने पर कई दिनों तक मेरे सिरहाने में खड़ी रह गयी थीं मुझे जैसे किसी औपचारिकता का निर्वहन करती हुई सी लगीं.अब उनकी प्रैक्टिस अच्छी-खासी चलने लगी है.शायद सफलता ने उनकी संवेदना को मार दिया है और इसलिए अब वे भी एक मशीन बनकर रह गयी हैं और हमेशा इसी प्रयास में रहती हैं कि सारी गर्भवतियों का सिजेरियन कर दिया जाए जिससे उन्हें कमाने का भरपूर अवसर मिले.ऊपरवाले भगवान की मौत की घोषणा तो फ्रेडरिक नित्स्चे ने कई दशक पहले १९६६ में ही कर दी थी अब बाजारीकरण के इस दौर में नीचेवाला भगवान भी जीवित नहीं रहा.यानि भगवान की मुकम्मल तौर पर मृत्यु हो चुकी है.अब हम सिवाय नवसृष्टि के इन्तजार करने के कुछ भी नहीं कर सकते.एक अंतहीन प्रतीक्षा!

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