बेशर्मी मोर्चा छोटे कपड़ों को गलत नहीं मानता .मैं इन तथाकथित समाजसुधारकों जैसे नफीसा अली आदि से पूछना चाहूँगा जिस प्रकार से हानिकारक गैस वातावरण को प्रदूषित करके प्राणियों पर मानसिक व शारीरिक दुष्प्रभाव डालती हैं.ऊँची ध्वनियों से ध्वनि प्रदूषण होता है.जिस प्रकार से किसी बच्चे के अबोध मन मस्तिष्क पर अश्लील चित्र गलत असर डालते हैं.अगर आप अपने किसी भी मकान दूकान ,वाहन,वस्तु,रुपये पैसे या अन्य भौतिक संशाधन को उचित देखरेख व सुरक्षा में नहीं रखोगे तो हरेक व्यक्ति का हौंसला बढ़ जाता है कि वह मौका मिलते ही उपरोक्त चीजों पर हाथ साफ़ करदे.छेड़खानी की घटनाओं में अभिवृद्धि के पीछे गलत कपड़ों का पहनना भी एक कारण है.सही सोच वाला पुरुष भी यदि छोटे कपड़ों में महिलाओं को बार बार देखेगा तो कभी न कभी उसकी मानसिक कलुषिता इतने खतरनाक स्तर पर पहुँच जायेगी कि वह कोई दुर्व्यवहार कर बैठेगा.जब मुनि विश्वामित्र जैसे तपस्वी ऋषियों का तप भंग हो सकता है तो आज के वातावरण में,जहाँ विभिन्न माध्यमों से वैचारिक प्रदूषण चरम पर है, इसकी सम्भावना कई गुणा बढ़ जाती है.मोर्चा के संयोजकों का एक और बेहूदा तर्क कि हम क्यों नहीं पुरुषों की तरह अपनी छाती को खुला रख सकते,हमें भी पुरुषों की तरह अपने शरीर पर पूरा अधिकार है.समाज और परिवार में इसप्रकार आपस में कोई तुलना या प्रतिस्पर्धा नहीं होती,फिर तो बच्चे,नौजवान व बूढ़े हरेक यह सवाल उठा सकता है कि अमुक काम वह क्यों नहीं कर सकता.विश्व की प्राचीन मानव सभ्यताओं का निर्माण इसप्रकार की बेतुकी प्रतिस्पर्धा से नहीं हुआ है.तदुपरान्त इससे एक कदम और आगे यह भी कहने में कोई बुराई नहीं है कि यदि पशु पक्षी जीव जन्तु स्वच्छंद जीवन शैली जीते हैं तो हम क्यों नहीं .हम तो सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ हैं..इस प्रकार की तथाकथित आधुनिकता पता नहीं भारत को कहाँ पहुँचा कर छोड़ेगी ?
31.7.11
तथाकथित आधुनिकता पता नहीं भारत को कहाँ पहुँचा कर छोड़ेगी ?
(राजेश तोशामिया,भिवानी 9215923655)
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