ग्वालियर मैं मीडिया की क्या ओकात है ये प्रशाशन ने मीडिया को दिखा दिया। एक के बाद एक २ बड़े मीडिया हाउस को प्रशाशन ने बंद कर दिया और ग्वालियर का मीडिया मूक दर्शक बना देखता रहा।
यहाँ ये बता दें उन पत्रकार साथियों को जो बड़े बेंनर मैं हैं और अपने आपको बहुत बड़ा पत्रकार समझते है की आज आपके ही बिरादरी के सेकड़ो पत्रकार साथी बेरोजगार हो गए हैं और आप चुप हैं।
अखबार अखबार होता है फिर वो चाहे किसी भी संसथान से जुड़ा हो।
अरे प्रशाशन को कार्यवाही करनी थी तो करे लेकिन अखबार बंद करे ये तो अंग्रेजों के ज़माने मैं भी नहीं हुआ था।
हमारे पत्रकार साथी ये क्यों नहीं सोच पा रहे हैं की ग्वालियर मैं मीडिया की इस तरह से दुर्गति से क्या कोई मीडिया हाउस ग्वालियर मैं अख़बार लौंच करने की सोचेगा। क्या ग्वालियर मैं फिर एक बार जेसिमिल के मजदूरों की तरह हमारे पत्रकार साथियों को भूखों मरना पड़ेगा।
ये हमारे पत्रकार साथियों के सोचने का विषय है.
23.7.11
ग्वालियर मैं मीडिया की कोई ओकात नहीं
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