Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

12.7.11

सब धर्म एक सामान हैं, फिर क्यों पढ़ें ,

क्या रखा है धार्मिक पुस्तकों में , समय की बर्बादी.......भगवान तो मन में है ही .

मंगलवार, १२ जुलाई २०११

एक हिंदू को अपनी धार्मिक पुस्तकों को पढ़ने से क्या लाभ ......!

   

कहने की बात नहीं है,

हिंदुओं में विद्वानों की कमी नहीं है .

हिदू बड़े बड़े डाक्टर , इंजिनिअर , वज्ञानिक , I A S, ओर देश विदेश में हैं.

पुरे हिंदू रीती रिवाजों का पालन करते हैं.

पर जब हिंदू शाश्त्र पढ़ने की बात आती है , तो कहेते हैं इसकी क्या आवश्यकता , यानि अपने सांसारिक पढ़आई के लिए तो उन्हें १२+३+२+३= २० साल , रोज ८ से १० घंटे पढ़ना पड़ा .

मगर हिंदू का ज्ञान तो उन्हें बिना पढ़ए , अपने आप हो गया !

यानि वो लोग जो हिंदू शाश्त्र पढ़ते हैं वो तो सनकी लोग ही हुए . वे साम्प्रदायिक ही हुए.

हिंदू शाश्त्रों में है ही क्या , वो ही झूटी -सच्ची , अविश्वाश पूर्वक कहानियां .  हमें साब पता है , हमने टी.वी . पर सब देखा हुआ है, पढ़ने से कोई खास बात हो जायेगी .

भगवान तो मन में है, भगवान तो भाव से मिलते हैं.  ज्ञानी बन के क्या मिल जायेगा ? इस प्रकार के तर्क उनके पास होते हैं. बेकार समय व्यर्थ करना . क्या पुस्तक पढ़ने से विशेष हिंदू बन जायेंगे.

मुझे लगता है वे सही हैं,

क्या आप बता सकते हैं , कि हिंदू यदि आपनी कुछ पुस्तकें पढ़ ले तो उसको कोई लाभ है . जैसे गीता , रामायण , महाभारत , भगवत, पुराण , उपनिषद इत्यादि .

ये मेरे लिए भी एक महत्वपूर्ण आंकड़ा हो जायेगा. ओर में उनको संकलित करके सबके सामने पेश कर दूँगा.
(सच बताना, टिपण्णी लिखने से पहले , आपने कोई पुस्तक पढ़ई क्या ! पाठ नहीं,  जैसे कोर्स की किताब पढ़ते हैं.  .......)

आप जैसा ही एक हिंदू,
अशोक गुप्ता
दिल्ली
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एक टिपण्णी के उत्तर से मेरा आशय स्पष्ट हो जायेगा

धन्यवाद शुक्ल जी ,


आपने तो पूरा ही पढ़ लिया , पर में अपनी खोज के सिलसिले में ये जानना चाहता हूं , कि क्या पढ़ने से कोई लाभ हुआ , 


जो पढ़ें लिखे लोग धर्मग्रन्थ को पढ़ना बेकार समझते हैं , उनके लिए क्या कहना चाहेंगे. 


विनीत 
अशोक गुप्ता

    
You

9 comments:

https://worldisahome.blogspot.com said...

जाट देवता (संदीप पवाँर) said...
सिर्फ़ सत्यार्थ प्रकाश पढी है।

July 12, 2011 12:02
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tतो वही जानना चाहता हूं , कुछ लाभ हुआ, ऐसा जो नहीं पढ़ने वालों को नहीं मिला होगा.

रविकर said...

सुन्दर और प्रभावी प्रस्तुति ||

Unknown said...

maine mahabharat ka hindi anuvad, shri ramcharit manas ka poora path kai baar. srimadbhagadvita ka hindi anuvad. pantchantra ki kahaniyan. sri durgasahastra ka path..aksar navratri me... aur bhi kai granth... ramayan maine sri-radheshyam ji ka bhi padha hai... jo nepal me chhapi hai jiske aadharpar ramlila manchan hota hai.. lekin yeh sab 8th tak ki padhai ke dauran.. uske baad se kabhi mauka nahi mila... sri gita ji ki pocket boook aapne di hai.. bas 2-3 bar hi padh paya hu samay nahi milta.. lekin jab bhi padhta hu man me chain aur jeewan me aanand ki anubhooti hoti hai.. dil ko kitni shanti milti hai shabdon me bayan nahi kar sakta.. shayad aap mera manobhaav samajh sake.

https://worldisahome.blogspot.com said...

धन्यवाद शुक्ल जी ,

आपने तो पूरा ही पढ़ लिया , पर में अपनी खोज के सिलसिले में ये जानना चाहता हूं , कि क्या पढ़ने से कोई लाभ हुआ ,

जो पढ़ें लिखे लोग धर्मग्रन्थ को पढ़ना बेकार समझते हैं , उनके लिए क्या कहना चाहेंगे.

विनीत
अशोक गुप्ता
दिल्ली

तेजवानी गिरधर said...

महाशय, हम केवल अपने धर्मग्रंथों पर गर्व करते हैं, उनको पढने की जरूरत नहीं समझते, जहां तक मेरी समझ है हमारे देश में कोई एक हजार में से एक ने वेद देखे होंगे, पढना तो बहुत दूर की बात है, एक लाख में शायद ही कोई विरला होगा जिसने वेद पढा होगा

वनमानुष said...

बोर्डिंग स्कूल में होने की वजह से सभी धर्मों के लोगों के साथ रहा और सभी धर्मो का अध्ययन करने का और उनपर वाद विवाद करने का मौका मिला और उसी वक्त प्रत्येक धर्म और उनमे अवस्थित ईश्वर की अवधारणा से विश्वास उठ गया.

विज्ञान संकाय से मेट्रिक,ग्रेजुएशन,पोस्ट ग्रेजुएशन किया और हर चरण के साथ धर्म की 'काल्पनिकता' व 'अतार्किकता' का ज्ञान होता चला गया और इससे यह लाभ हुआ कि अब किसी भी विषय पर कोई भी धर्म मेरी तटस्थता को प्रभावित करने में अक्षम है.

https://worldisahome.blogspot.com said...

प्रिय तेजवानी जी ,रविकर , शुक्ल जी,

आप बनमानुष जी (काश इनका पूरा नाम पता चल पाता) के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे.

ये बे पढ़े लोगों में नहीं हैं. इन्होने तो सारे ही पढ़ रखे हैं.

ये गलत नहीं हैं . लाखों , करोरों हिंदू ऐसा ही सोचते हैं . फिर यदि जनम भूमि पर मंदिर न बने तो कोई आश्चर्य नहीं .

दासानुदास
अशोक गुप्ता
दिल्ली

वनमानुष said...

अच्छा तो असल मुद्दा ये था.

तो अयोध्या मुद्दे पर मेरी राय ये है कि जो तोडा गया था वही बनाया जाना चाहिए अर्थात मस्जिद. तभी इस देश के अल्पसंख्यकों का इस देश की न्याय व्यवस्था पर भरोसा बढेगा और साम्प्रदायिक समस्या ख़त्म होंगी. या फिर ये साबित करें किसी राम नाम के व्यक्ति का जन्म हुआ था उस स्थान पर और फिर बनाते रहें मंदिर.किसे फर्क पड़ता है.

उ.प्र.कोर्ट के आदेश की इस पंक्ति 'क्योंकि लाखों हिन्दुओं की आस्था है कि वहां रामजन्मभूमि है' को सुप्रीम कोर्ट ने भी अजीब करार दिया है और यह फैसला वाकई अजीब ही था.लाखों लोगों की आस्था तो बहुत कुछ होती है कि फलां भगवान् यहाँ बैठे,यहाँ उठे,यहाँ फारिग हुए,यहाँ सोये आदि आदि,यदि आस्था के आधार पर ही न्यायालय फैसले देने लगे और सबूतों को नज़रअंदाज करने लगे तो फिर इस देश में तो लोगों का जीना ही मुश्किल हो जाएगा.
कल को कोई आपका या मेरा घर आकर तोड़ देगा कि फलां देवताओं का सुलभ शौचालय यहाँ पर था और न्यायालय उसे वाजिब ठहरा देगा तो क्या मान लीजियेगा आप?

और जो ये दलील देते हैं कि कि मुसलमान आक्रमणकारियों ने मंदिरों को तोडा था किसी जमाने में ,उसका बदला हम ले रहें हैं तो फिर तैयार रहिये क्योंकि लाखों बौद्ध भी बदला लेंगे हिन्दुओं से पुष्यमित्र शुंग और गौड़ नरेश शशांक के धार्मिक अत्याचार का. और ये परंपरा चलती ही जाएगी.

हिन्दुस्तान के दो इतिहास हैं जनाब,एक अंग्रेजों के आगमन से पहले का और एक बाद का (अंग्रेजों के आने के बाद धर्म को परे रखकर हिन्दुस्तानियों ने एक होकर स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया और आजादी के बाद देश के विकास में अपना योगदान दिया).
अब आप निश्चित कर लीजिये कि किस इतिहास में जीना चाहते हैं आप और आने वाली पीढ़ी को कौन सी वैचारिक विरासत देना चाहते हैं, घृणा और हिंसा की या सदभाव और सौहार्द की?

https://worldisahome.blogspot.com said...

प्रिय श्री बनमानुष जी,

आपने टिप्पणी लिखी इसके लिए धन्यवाद .

मुद्दा केवल यही नहीं और भी बहुत हैं. पर इस पोस्ट में तो केवल यही जानना चाहते हैं, कि आपने कौन कौन से हिंदू ग्रन्थ पढ़े हैं, सिर्फ उनके नाम.

क्योंकि आधिकतर हिंदू सीधे ग्रन्थ पढ़ने में विश्वास नहीं रखते,केवल किसी किसी से उनके बारे में पढ़ लेते हैं.

वे वैसे नहीं पढ़ते जैसे, इस्लाम वाले या ईसाई अपने ग्रन्थ पढ़ते हैं

और पाठ कि तरह नहीं. बल्कि विद्यार्थी कि तरह . फिर उनका निष्कर्ष कुछ भी आप निकालें इसके लिए सभी स्वतंत्र हैं.

अयोध्या के बारे में आपके विचार बड़े महत्व पूर्ण हैं.

आशा है संपर्क बनाये रखेंगे व जानकारी से अवगत कराएँगे.

आप जैसे खुले दिमाग वाले ही तो आज की आवश्यकता है .

विनीत
अशोक गुप्ता
दिल्ली