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15.7.11

मन पंछी... | कविता

मन पंछी... | कविता

मन पंछी क्यों चाहे
फुर-फुर-फुर उड़ जाऊं
बैठूं उस बादल में
सूरज को धर लाऊँ

1 comment:

रविकर said...

वाह भाई वाह ||
मजा आ गया --
हमें भी आनंदित किया इस प्रस्तुति ने ||
बहुत-बहुत बधाई --
जो मन----