जिन्दगी में पतजड़ लाता है -"तालमेल का अभाव"
जब भी हम आर्केस्ट्रा पार्टी को सुनते हैं तो दिल झुमने लग जाता है ,क्यों होता है ऐसा? मन पर सकारात्मक
प्रभाव पड़ता है मधुर संगीत से .तनाव गायब हो जाता है और चेहरा खिल उठता है .मधुर संगीत की धुन के
पीछे संगीत पार्टी का सुन्दर तालमेल ही मुख्य कारण है .ठीक इसी प्रकार विचारो का तालमेल अपना प्रभाव
हमारे जीवन में छोड़ता है .तालमेल का आभाव हमारे जीवन को पतजड़ में बदल देता है और जिन्दगी वीरान
लगती है
जब भी हम किस खेल की टीम को खेलते हुए और जीतते देखते हैं तो उसके पीछे भी खिलाड़ियों का सुन्दर
तालमेल ही मुख्य होता है .तालमेल का अभाव हमें पराजय की और धकेल देता है .बड़ी -बड़ी कम्पनियों को
गर्त से शिखर पर स्थापित होता देखते हैं तो इसका कारण भी सभी कर्मचारियों का तालमेल ही प्रमुख रूप
से दिखाई देता है.
सवाल यह है की क्या तालमेल बनाने के इतने सुन्दर परिणाम आते हैं तो फिर हम बहुधा तालमेल बनाने
में असफल क्यों हो जाते हैं .
तालमेल टूटने के कुछ कारण -
१. अपरिपक्व नजरिया -अक्सर हम वही परिणाम देखना पसंद करते हैं जो हमें प्रिय लगता हो ,चाहे
हम प्रयास परिणाम के विरुद्ध ही कर रहे हो .किसी बात को समझाने का नजरिया भी हम इतना छोटा कर
लेते हैं की सामने वाले की बात यदि तर्क पूर्ण या सार्थक भी हो तब भी हम अपनी जिद्द पर ही अड़े रहते हैं.
२.स्वार्थ से भरी सोच - यदि किसी भी पक्ष की सोच अपने ही स्वार्थ से जुडी हुयी हो तो तालमेल टूट जाया
करता है . हम जीओ और जीने दो के सिद्धांत के विपरीत अपना ही हित साधने की कोशिश करते हैं तब
आपस के तालमेल की लय टूट जाती है .
३.गलाकाट प्रतिस्पर्धा -जब हम स्वस्थ स्पर्धा को छोड़ कर एक दुसरे से अहित से परिपूर्ण स्पर्धा करने
लग जाते हैं ,एक दुसरे को नीचा दिखाने की भावना रखते हैं तब हम बिखर जाते हैं .
४.लोकव्यवहार में कमी - यदि कोई व्यक्ति लोक व्यवहार के दैनिक नियमों को ताक पर रख कर स्वयं
को सर्वेसर्वा समझने की भूल कर बैठता है तब सुन्दर आनेवाले परिणाम भी खराब आ जाते हैं .हम अपनी
हेकड़ी के कारण दूसरों के सम्मान की जब परवाह करना छोड़ देते हैं तब हम अकेले पड़ जाते हैं ,टूट जाते हैं.
५.जलन और इर्ष्या -जब हम अपने ही परिवार ,भाई बन्धु,दोस्त,मातहत या बॉस की प्रगति पर प्रसन्न होने
की जगह जल उठते है तब हम तालमेल बनाने की जगह तोड़ने की कोशिश में लग जाते हैं क्योंकि हम स्वयं
की कमियों का मूल्यांकन नहीं करके दुसरे पक्ष की सफलता को पचा नहीं पाते और हमारे लूटे पिटे हावभाव
से सामने वाला हमसे कन्नी काटने लग जाता है
६.नुक्ताचीनी की आदतें -जब मनुष्य अच्छी या बुरी ,सकारात्मक या नकारात्मक हर बात में दुसरे पक्ष की
कसर निकालना शुरू कर देता है तब दुनियां उस प्राणी को नकचढ़ा कह कर अलग कर देती है .आलोचना
यदि सार्थक बात की हो तो लोग उस व्यक्ति को मुर्ख या बेवकूफ समझ कर उसे अकेले रोने के लिए छोड़
देते हैं.
७.गलतफहमी,वहम या भ्रम - जब भी हम मन ही मन विचार करके किसी के प्रति भी अपना व्यवहार गलत
बना लेते हैं या परिस्थिति को समझे बिना ही भ्रम या वहम में फँस जाते हैं तब तालमेल चाहे पारिवारिक हो
या व्यावसायिक टूट के बिखर ही जाता है
८.मुस्कराने के स्वभाव का नहीं होना -यदि हम हर समय धीर गंभीर बने रहते हैं किसी का भी मुस्करा कर
स्वागत करने में असमर्थ होते हैं ,स्वभाव से शुष्क बने रहते है ,उदासीन रहते हैं तब हमारे प्रयास चाहे
कितनी ही लगन से क्यों नहीं किये गए हो उनका परिणाम पूर्ण रूप से नहीं पाते हैं .
विचारों में तालमेल बनाने के तरीके
१.सामान लक्ष्य का निर्धारण
२.लोक व्यवहार में निपुणता
३.हंसमुख स्वभाव
४.सकारात्मक सोच
५.दूरदर्शिता पूर्ण निर्णय
६.खुलकर प्रशंसा करने की आदत बनाना
७.मतभेदों पर शांतिपूर्ण चर्चा
८.जीओ और जीने दो
९.कडवी बात को कहने से पहले शब्दों का सही प्रयोग
१०.दुसरे पक्ष के सम्मान को ठेस नहीं पहुंचाए
११.साम नीति का भरपूर उपयोग
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