गौरव
मीना
यह लेख श्री एम. एल. गुर्जर का लिखा हुआ है जिसे मैं यहां उनकी अनुमति से प्रस्तुत कर रहा हूं।
एक और निहत्थे शेर का शिकार...
आखिर कार कई वर्षों तक लीबिया पर एक छत्र राज करने वाला तानाशाह कर्नल मुअम्मर गद्दाफी लीबिया के ही विद्रोही लड़कों द्वारा पकड़ा गया और फिर उन्हें मार दिया गया ..अमरीका के परोक्ष सहयोग से चल रहे सिविल वार में विद्रोहियों की जीत हुई और एक युग का अंत हुआ ..अमरीका की आदत रही है की इस प्रकार के देशों में जहां तानाशाह लम्बे समय तक राज करते हैं ..और अमरीका की चाटुकारिता नहीं करते ..अपने बाज़ार उसके लिए नहीं खोलते तो अमरीका उनके खिलाफ जंग छेड देता है ..और पूरी ताकत से प्रचार करता है की वहां लोकतंत्र और मानव अधिकारों का हनन हो रहा है ,कर्नल गद्दाफी भी इसी भेंट चढ़ गया .और खादी देशों में चल रहे कई देशो के गृह युद्ध का भी यही परिणाम होगा ..इजिप्त का नतीजा भी आ चूका है जहाँ हुस्नी मुबारक को अपदस्थ होना पड़ा ..सीरिया. जोर्डन. कतर आदि देशों में गृहयुद्ध जारी है .उल्लेखनीय है ये सब देश तेल से भरपूर है ..
ये ध्यान देने योग्य है की तानाशाहों को अमरीका और उसके समर्थक पूंजीवादी देशों ने उनकी छवि को गलत तरीके से प्रचारित किया और प्रायोजित माहोल बना कर उन देशों के भीतर गृह युद्ध के हालत पैदा किये ताकि वो उन देशी की इकोनोमी को हथिया सके ..नाटो वारसा की संधि के बाद धीरे धीरे उसने नाटो में अपने समर्थक देशों की संख्या में बढ़ोतरी की है ..और आज इस संधि का कोई अर्थ नहीं रहा ये संधि शीत युद्ध और सोवियत संघ के खात्मे के साथ ही अप्रासंगिक हो गई है ..
सबसे पहले अमरीका ने स्टालिन को तानाशाह के रूप में प्रचारित किया ,,जबकि स्टालिन की वजह से ही वो हिटलर को खत्म कर सका था ,,फिर स्टालिन अमरीका के लिए तानाशाह केसे हो गया जबकि स्टालिन के शःसन में सोवियत संघ ग़ुरबत से निकल कर आसमान तक पहुंचा था ,,..अमरीका ने वियतमान पर हमला किया और मुह की खाई ....अमरीका ने पूर्वी जर्मनी के समाजवादी शासन को खत्म करने के लिए जर्मनी का एकीकरण करवा दिया पर उससे पहले पूर्ण पूंजीवादी रास्ट्र पर सहमती नहीं बनने के कारण कोरिया के टुकड़े करवा दिए ..अमरीका ने रूमानिया , हंगरी, च्कोस्लावाकिया में से समाजवादी शासन को खत्म करवाया ..मार्शल टीटो के जाने के बाद चेक रिपब्लिक के टुकड़े करवा दिए .. अमरीका ने बाल्कन इलाके में अपनी फौंजे भेज कर सहयता करने की आड़ में हर्जेगोविना , बोस्निया, में भारी हमले करवाए .और जितना मुसलमानों पर अत्याचार वहां हुआ शायद और कहीं हुआ हो ..पर कोई नहीं बोला ..इसी तरह सद्दाम हुसेन जेसे प्रगतिवादी पर खुद्दार तानाशाह को खत्म किया ..सद्दाम हुसेन ने महिलाओं को कई अधिकार दिए जितने शायद कई कथित तरक्की पसंद देशों में भी नहीं है .इससे पहले अमरीका ने इरान और इराक के बीच सीमा पर एक सुखी नदी में अथाह तेल होने की अफवाह फेला कर दोनों देशो को भिड़ा दिया था और हथियार बेच कर खूब चांदी काटी थी ,.और नतीजा ये हुआ की दोनों देश थक कर टूट गए और गिर पड़े और अमरीका को ईराक पर कुवेत के बहाने चढ़ दौड़ने का मौका मिल गया और इरान पर हमला करने की तेयारी है ,,मैं ये अमरीका से पूछना चाहता हूँ की जिस लोकतंत्र की अवमानना करने के जुर्म में अमरीका इराक पर चढ़ दोड़ा वो लोकतंत्र कुवेत में कहां है ,,खेर .
इन सब घटना क्रम में तालिबान खड़ा हुआ वेसे तालिबान को सोव���यत संघ के खिलाफ खड़ा करने में अमरीका का ही हाथ रहा पर तालिबान के अमरीका के वर्ल्ड ट्रेड टावर पर हमला करने के इस कदम से . परिणाम में अमरीका अफगानिस्तान पर चढ़ दौड़ा और तालिबान को खत्म करने में लग गया ..इसी बीच पुरी दुनिया के संसाधनों ख़ास कर के तेल पर कब्ज़ा करो के इस इकलोते अभियान के तहत ..पुरे खाड़ी प्रदेश के सभी देशों में बरसों से शाशन कर रहे तानाशाहों के खिलाफ अमरीका वहां की जनता को लोकतन्त्र के हसीं सपने बता कर उन्हें वहां के तानाशाहों के खिलाफ खड़ा कर दिया .,,लोकतंत्र कौनसा ..वही जो अमरीका चाहे , अमरीका क्या चाहे ..अमरीका ये चाहे ,,अपने जीवन मूल्यों को खत्म कर दो ..अपनी संस्कृति को हमारे यहाँ गिरवी रख दो ..कपडे खोल दो नंगे हो जाओ ..दारु पियो और सुंदर महिलाओं की हाट लगाओ उन्हें मवेशियों की तरह बेचो और उनसे माल बनाओ .अपनी भाषा भूल जाओ ..और अंग्रेजी बोलो..पिज्जा हेमबर्गर होट डोग का पोषक अमरीका क्या .ये लोकतंत्र चाहता है.. अमरीका ..ने खाड़ी देशों में अभी यही किया है ..अमरीका लोकतंत्र की दुहाई दे रहा है कोई उससे ..पूछे की उसने यहूदियों को को सेकण्ड वर्ल्ड वार के बाद फिलिस्तीनियों की छाती पर क्यों बिठाया जो आज भी चेन से नहीं रह पायें है . लेबनान में भी शांति स्थापित नहीं हो सकी ..कोई लोकतंत्र पसंद अमरीका से ये पूछे .वो म्यांमार में बरसों से सेनिक शासन है क्यों नहीं बोलता ..वो खमेर रुज के खिलाफ कम्बोडिया क्यों नहीं गया ,, कई अफ़्रीकी देशों में ग़दर मचा हुआ है मानवता चीत्कार रही है ..जिसमे कांगो .अंगोला ,,लाइबेरिया ,,सोमालिया .आदि है वहां शांति बहाली में फेल क्यों हुआ ,,अमरीका को केवल दुनिया के संसाधनों पर कब्ज़ा करना है ..नाटो को इसके लिए मजबूत करना है ताकि वह जब चाहे फौंजे किसी भी देश में भेज सके .वो उन्ही देशों में रूचि लेता है जहां भरपूर संसाधन और बाज़ार की उपलब्धता हो ..अफगानिस्तान में वो इसीलिए जमा हुआ है ..ताकि पूर्व सोवियत से अलग हुए गण राज्यों के संसाधनों पर नियन्त्र कर सके ..पाकिस्तान की जमीन से वो इरान ,चीन, रूस और भारत पर नज़र रख सके ..अपना सेनिक अड्डा बनाये रख सके .. सहित युद्ध के दौरान अमरीका का एजेंडा था समाजवाद को खत्म कर पूंजीवाद की स्थापना करना ,,अब उसका एजेंडा है संसाधन और बाज़ार से भरपूर देशों में पूंजी लगाना और मुनाफा बटोरना ..कर्नल गद्दाफी इसी भेंट चढ़ गया ..और आगे कई नम्बर आने है
..दुनिया भर में क्रूरता का पर्याय और ज़ालिम तानाशाह बताए गए लीबिया के पूर्व शासक जनरल गद्दाफी आज इस दुनिया में नहीं हैं।गद्दाफी भले ही अपने शासन काल में बर्बर रहे हों लेकिन इस बात को भी नहीं झुटलाया जा सकता कि इस शासक ने अपनी प्रजा के लिए जो और जितना किया उतना शायद ही दुनिया में कोई किसी के लिए करता हो।
गद्दाफी से जुड़ी ऐसी ही कई बातें हैं जिन्हें जानते ही आप की आंखें भी खुल जाएंगी साथ ही इस 'कथित' तानाशाह को लेकर बनी आपकी सोच भी पूरी तरह परिवर्तित हो जाएगी। तो आईए जानते हैं गद्दाफी और लीबिया के बारे में कुछ ऐसी बातें जिन्हें आज तक दुनिया में बहुत ही कम लोग जानते हैं...।
1)लीबिया में जनता को बिजली का बिल माफ़ रहता था,यहां लोगों को बाकी मुल्कों की तरह बिजली का बिल जमा नहीं करना पड़ता था(इसका भुगतान सरकार करती थी)।
2)लीबिया सरकार(गद्दाफी शासन)आपने नागरिकों को दिए गए ऋण(लोन)पर ब्याज नहीं वसूलता था। मानें आपको इंटरेस्ट फ्री लोन बड़ी आसानी से मिलता था और चुकाना केवल मूलधन पड़ता था।
3)लीबिया में 'घर' मानव अधिकार की श्रेणी में थे।लीबिया के प्रत्येक व्यक्ति को उसका खुद का घर देना सरकारी जिम्मेदारी थी। आप को बाते दें कि गद्दाफी ने कसम खाई थी कि जब तक लीबिया के प्रत्येक नागरिक को उसका खुद का घर नहीं मिलता वह अपने माता पिता के लिए भी घर नहीं बनवाएगा यही कारण था कि गद्दाफी की मां और पत्नी अज भी टेंट में ही रहती हैं।
4)लीबिया में शादी करने वाले प्रत्येक जोड़े को गद्दाफी कि तरफ से 50 हज़ार डॉलर की राशी दी जाती थी।(दुनिया में शायद ही कोई सरकार या शासक ऐसा करता हो)।
5)लीबिया में समस्त नागरिकों के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएँ पूरी तरह से फ्री थीं। जी हां लीबियाई नागरिकों द्वारा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर आने वाला सारा खर्चा गद्दाफी सरकार खुद वहां करती थी।
यह लेख श्री एम. एल. गुर्जर का लिखा हुआ है जिसे मैं यहां उनकी अनुमति से प्रस्तुत कर रहा हूं।
एक और निहत्थे शेर का शिकार...
आखिर कार कई वर्षों तक लीबिया पर एक छत्र राज करने वाला तानाशाह कर्नल मुअम्मर गद्दाफी लीबिया के ही विद्रोही लड़कों द्वारा पकड़ा गया और फिर उन्हें मार दिया गया ..अमरीका के परोक्ष सहयोग से चल रहे सिविल वार में विद्रोहियों की जीत हुई और एक युग का अंत हुआ ..अमरीका की आदत रही है की इस प्रकार के देशों में जहां तानाशाह लम्बे समय तक राज करते हैं ..और अमरीका की चाटुकारिता नहीं करते ..अपने बाज़ार उसके लिए नहीं खोलते तो अमरीका उनके खिलाफ जंग छेड देता है ..और पूरी ताकत से प्रचार करता है की वहां लोकतंत्र और मानव अधिकारों का हनन हो रहा है ,कर्नल गद्दाफी भी इसी भेंट चढ़ गया .और खादी देशों में चल रहे कई देशो के गृह युद्ध का भी यही परिणाम होगा ..इजिप्त का नतीजा भी आ चूका है जहाँ हुस्नी मुबारक को अपदस्थ होना पड़ा ..सीरिया. जोर्डन. कतर आदि देशों में गृहयुद्ध जारी है .उल्लेखनीय है ये सब देश तेल से भरपूर है ..
ये ध्यान देने योग्य है की तानाशाहों को अमरीका और उसके समर्थक पूंजीवादी देशों ने उनकी छवि को गलत तरीके से प्रचारित किया और प्रायोजित माहोल बना कर उन देशों के भीतर गृह युद्ध के हालत पैदा किये ताकि वो उन देशी की इकोनोमी को हथिया सके ..नाटो वारसा की संधि के बाद धीरे धीरे उसने नाटो में अपने समर्थक देशों की संख्या में बढ़ोतरी की है ..और आज इस संधि का कोई अर्थ नहीं रहा ये संधि शीत युद्ध और सोवियत संघ के खात्मे के साथ ही अप्रासंगिक हो गई है ..
सबसे पहले अमरीका ने स्टालिन को तानाशाह के रूप में प्रचारित किया ,,जबकि स्टालिन की वजह से ही वो हिटलर को खत्म कर सका था ,,फिर स्टालिन अमरीका के लिए तानाशाह केसे हो गया जबकि स्टालिन के शःसन में सोवियत संघ ग़ुरबत से निकल कर आसमान तक पहुंचा था ,,..अमरीका ने वियतमान पर हमला किया और मुह की खाई ....अमरीका ने पूर्वी जर्मनी के समाजवादी शासन को खत्म करने के लिए जर्मनी का एकीकरण करवा दिया पर उससे पहले पूर्ण पूंजीवादी रास्ट्र पर सहमती नहीं बनने के कारण कोरिया के टुकड़े करवा दिए ..अमरीका ने रूमानिया , हंगरी, च्कोस्लावाकिया में से समाजवादी शासन को खत्म करवाया ..मार्शल टीटो के जाने के बाद चेक रिपब्लिक के टुकड़े करवा दिए .. अमरीका ने बाल्कन इलाके में अपनी फौंजे भेज कर सहयता करने की आड़ में हर्जेगोविना , बोस्निया, में भारी हमले करवाए .और जितना मुसलमानों पर अत्याचार वहां हुआ शायद और कहीं हुआ हो ..पर कोई नहीं बोला ..इसी तरह सद्दाम हुसेन जेसे प्रगतिवादी पर खुद्दार तानाशाह को खत्म किया ..सद्दाम हुसेन ने महिलाओं को कई अधिकार दिए जितने शायद कई कथित तरक्की पसंद देशों में भी नहीं है .इससे पहले अमरीका ने इरान और इराक के बीच सीमा पर एक सुखी नदी में अथाह तेल होने की अफवाह फेला कर दोनों देशो को भिड़ा दिया था और हथियार बेच कर खूब चांदी काटी थी ,.और नतीजा ये हुआ की दोनों देश थक कर टूट गए और गिर पड़े और अमरीका को ईराक पर कुवेत के बहाने चढ़ दौड़ने का मौका मिल गया और इरान पर हमला करने की तेयारी है ,,मैं ये अमरीका से पूछना चाहता हूँ की जिस लोकतंत्र की अवमानना करने के जुर्म में अमरीका इराक पर चढ़ दोड़ा वो लोकतंत्र कुवेत में कहां है ,,खेर .
इन सब घटना क्रम में तालिबान खड़ा हुआ वेसे तालिबान को सोव���यत संघ के खिलाफ खड़ा करने में अमरीका का ही हाथ रहा पर तालिबान के अमरीका के वर्ल्ड ट्रेड टावर पर हमला करने के इस कदम से . परिणाम में अमरीका अफगानिस्तान पर चढ़ दौड़ा और तालिबान को खत्म करने में लग गया ..इसी बीच पुरी दुनिया के संसाधनों ख़ास कर के तेल पर कब्ज़ा करो के इस इकलोते अभियान के तहत ..पुरे खाड़ी प्रदेश के सभी देशों में बरसों से शाशन कर रहे तानाशाहों के खिलाफ अमरीका वहां की जनता को लोकतन्त्र के हसीं सपने बता कर उन्हें वहां के तानाशाहों के खिलाफ खड़ा कर दिया .,,लोकतंत्र कौनसा ..वही जो अमरीका चाहे , अमरीका क्या चाहे ..अमरीका ये चाहे ,,अपने जीवन मूल्यों को खत्म कर दो ..अपनी संस्कृति को हमारे यहाँ गिरवी रख दो ..कपडे खोल दो नंगे हो जाओ ..दारु पियो और सुंदर महिलाओं की हाट लगाओ उन्हें मवेशियों की तरह बेचो और उनसे माल बनाओ .अपनी भाषा भूल जाओ ..और अंग्रेजी बोलो..पिज्जा हेमबर्गर होट डोग का पोषक अमरीका क्या .ये लोकतंत्र चाहता है.. अमरीका ..ने खाड़ी देशों में अभी यही किया है ..अमरीका लोकतंत्र की दुहाई दे रहा है कोई उससे ..पूछे की उसने यहूदियों को को सेकण्ड वर्ल्ड वार के बाद फिलिस्तीनियों की छाती पर क्यों बिठाया जो आज भी चेन से नहीं रह पायें है . लेबनान में भी शांति स्थापित नहीं हो सकी ..कोई लोकतंत्र पसंद अमरीका से ये पूछे .वो म्यांमार में बरसों से सेनिक शासन है क्यों नहीं बोलता ..वो खमेर रुज के खिलाफ कम्बोडिया क्यों नहीं गया ,, कई अफ़्रीकी देशों में ग़दर मचा हुआ है मानवता चीत्कार रही है ..जिसमे कांगो .अंगोला ,,लाइबेरिया ,,सोमालिया .आदि है वहां शांति बहाली में फेल क्यों हुआ ,,अमरीका को केवल दुनिया के संसाधनों पर कब्ज़ा करना है ..नाटो को इसके लिए मजबूत करना है ताकि वह जब चाहे फौंजे किसी भी देश में भेज सके .वो उन्ही देशों में रूचि लेता है जहां भरपूर संसाधन और बाज़ार की उपलब्धता हो ..अफगानिस्तान में वो इसीलिए जमा हुआ है ..ताकि पूर्व सोवियत से अलग हुए गण राज्यों के संसाधनों पर नियन्त्र कर सके ..पाकिस्तान की जमीन से वो इरान ,चीन, रूस और भारत पर नज़र रख सके ..अपना सेनिक अड्डा बनाये रख सके .. सहित युद्ध के दौरान अमरीका का एजेंडा था समाजवाद को खत्म कर पूंजीवाद की स्थापना करना ,,अब उसका एजेंडा है संसाधन और बाज़ार से भरपूर देशों में पूंजी लगाना और मुनाफा बटोरना ..कर्नल गद्दाफी इसी भेंट चढ़ गया ..और आगे कई नम्बर आने है
..दुनिया भर में क्रूरता का पर्याय और ज़ालिम तानाशाह बताए गए लीबिया के पूर्व शासक जनरल गद्दाफी आज इस दुनिया में नहीं हैं।गद्दाफी भले ही अपने शासन काल में बर्बर रहे हों लेकिन इस बात को भी नहीं झुटलाया जा सकता कि इस शासक ने अपनी प्रजा के लिए जो और जितना किया उतना शायद ही दुनिया में कोई किसी के लिए करता हो।
गद्दाफी से जुड़ी ऐसी ही कई बातें हैं जिन्हें जानते ही आप की आंखें भी खुल जाएंगी साथ ही इस 'कथित' तानाशाह को लेकर बनी आपकी सोच भी पूरी तरह परिवर्तित हो जाएगी। तो आईए जानते हैं गद्दाफी और लीबिया के बारे में कुछ ऐसी बातें जिन्हें आज तक दुनिया में बहुत ही कम लोग जानते हैं...।
1)लीबिया में जनता को बिजली का बिल माफ़ रहता था,यहां लोगों को बाकी मुल्कों की तरह बिजली का बिल जमा नहीं करना पड़ता था(इसका भुगतान सरकार करती थी)।
2)लीबिया सरकार(गद्दाफी शासन)आपने नागरिकों को दिए गए ऋण(लोन)पर ब्याज नहीं वसूलता था। मानें आपको इंटरेस्ट फ्री लोन बड़ी आसानी से मिलता था और चुकाना केवल मूलधन पड़ता था।
3)लीबिया में 'घर' मानव अधिकार की श्रेणी में थे।लीबिया के प्रत्येक व्यक्ति को उसका खुद का घर देना सरकारी जिम्मेदारी थी। आप को बाते दें कि गद्दाफी ने कसम खाई थी कि जब तक लीबिया के प्रत्येक नागरिक को उसका खुद का घर नहीं मिलता वह अपने माता पिता के लिए भी घर नहीं बनवाएगा यही कारण था कि गद्दाफी की मां और पत्नी अज भी टेंट में ही रहती हैं।
4)लीबिया में शादी करने वाले प्रत्येक जोड़े को गद्दाफी कि तरफ से 50 हज़ार डॉलर की राशी दी जाती थी।(दुनिया में शायद ही कोई सरकार या शासक ऐसा करता हो)।
5)लीबिया में समस्त नागरिकों के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएँ पूरी तरह से फ्री थीं। जी हां लीबियाई नागरिकों द्वारा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर आने वाला सारा खर्चा गद्दाफी सरकार खुद वहां करती थी।